शुक्रवार, 27 नवंबर 2009

दाने चुन चुन खाना रे


चिड़िया के दो बच्चे थे।पिंकू और चिंकू। आज वे उड़ने के लिये पहली बार घोसले से बाहर निकले थे। मां उनके पीछे थी।दोनों ने पेड़ से नीचे झांका।
“ऊं—हूं मैं नहीं उड़ूंगा।मुझे डर लग रहा है।” पिंकू चूं चूं कर बोला।
“ बाप रे---कितनी उंचाई पर रहते हैं हम।” चिंकू ने मां से कहा।
“बच्चों कोशिश करो।उड़ने लगोगे।” चिड़िया ने उन्हें प्यार से समझाया।दोनों ने एक साथ पंख फ़ैलाया। नीचे की डाली पर आ गये। चिड़िया भी उनके साथ आई।सामने वाले पेड़ पर बैठा बंदर जामुन खा रहा था। दोनों को देखकर खी खी हंस पड़ा।
“बच्चों सावधानी से,कौवों से बच कर उड़ना।” बंदर ने उन्हें समझाया।
पिंकू चिंकू ने दुबारा पंख फ़ैला कर उड़ने की कोशिश की।पिंकू तो उड़कर नीचे की डाली पर बैठ गया। चिंकू पत्तियों से टकराकर नीचे गिर पड़ा। उसे चोट तो नहीं लगी पर दिल अभी तक धक धक कर रहा था।चिड़िया के साथ एक कोयल भी चिंकू के पास आई। बंदर भी कूद कर उनके पास आ गया।
“बेटा चोट तो नहीं आई?” कोयल ने उसे पुचकार कर कहा।
“नहीं---पर अब मैं नहीं उड़ूंगा ड़र लग रहा है।”चिंकू चूं चूं कर रोने लगा।कोयल ने एक जामुन का टुकड़ा उसके मुंह में डाला। चिंकू खुश हो गया।
पिंकू चिंकू फ़िर उड़े।इस बार नीचे से ऊपर की ओर। नीम की नीची डाली पर दोनों बैठ गये।“बहुत खूब।”नीम के कोटर से झांकता तोता टांय टांय कर बोला।बच्चों का हौसला बढ़ गया।
दोनों ने फ़िर पंख फ़ैलाये।इस उड़ान में वे नीम की एक ऊंची डाल पर बैठ गये। कुछ देर रुक कर पिंकू बोला,“चलें फ़िर उड़ें?”
“गिर गये तो?”चिंकू अभी भी डर रहा था।
“घबराओ मतअम सब तुम्हें बचायेंगे।”जंगली मुर्गे ने बांग लगाई।वह बरगद की ऊंची डाल पर बैठा इनकी बातें सुन रहा था।
चिंकू पिंकू ने फ़िर पंख फ़ैलाया और उड़ान भरी। अब दोनों का डर दूर हो गया।

दोनों ने नीम का एक चक्कर लगाया।फ़िर दूसरा।फ़िर कई चक्कर।
अचानक एक कौवा उन पर झपटा।पिंकू तो नहीं डरा।पर चिंकू चिल्लाया।मुर्गे और कोयल ने कौवे को चोंच से घायल कर भगा दिया।
पिंकू चिंकू फ़िर उड़ने लगे।दोनों को उड़ता देख कर बंदर किलकारियां भर कर नाचने लगा।जंगली मुर्गा जोर जोर से बांग देने लगा।कोयल कुहू कुहू कर गीत गाने लगी।पिंकू चिंकू का हौसला बढ़ा।वे देर तक उड़ते रहे।कोयल के साथ मुर्गा,बंदर,चिड़िया सभी गाते रहे -------

पहले पंख फ़ैलाना रे
पंख हिलाते जाना रे
उड़कर नीचे आना रे
दाने चुन चुन खाना रे।
पहले पंख------------।
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हेमन्त कुमार


5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर बाल कथा और छोटा सा गीत...वाह हेमन्त जी!

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  2. हेमंत जी बहुत बहुत बहुत सुंदर लगा ये कहानी ! जब भी आपकी लिखी हुई कहानी और रचनाओं को पढ़ती हूँ मैं अपने बचपन के दिनों में लौट जाती हूँ! आपका ब्लॉग सही में बहुत ही सुंदर है और आते ही मन प्रसन्न हो जाता है!

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  3. बच्चे निसंदेह फ़रिश्ता होते हैं.आपने बहुत अच्छा संसार रचा है.हमने भी अपने बच्चों के बहाने इन मासूमों के लिए एक दुनिया बनाने की कोशिश की है.आपका स्वागत है!

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