शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

कहानी ---नटखट मटरू

एक गावं में एक किसान रहता था.किसान ने एक गाय पाल रखी थी.गाय का नाम था कबरी.कबरी बहुत सीधी थी.लेकिन कबरी का बेटा मटरू बछडा बहुत नटखट स्वभाव का था.वह हमेशा कबरी को परेशान करता रहता था.कबरी बेचारी उसे इतना समझाती ,पर मटरू उसकी कोई बात बहीं सुनता था.
किसान अक्सर कबरी को गाँव की दूसरी गायों के साथ गाँव के बाहर चरने भेजता था.एक दिन मटरू भी कबरी के साथ जाने की जिद करने लगा.कबरी ने उसे बहुत समझाया,पर मटरू नहीं माना.हार कर कबरी उसे ले जाने के लि राजी हो गयी.
घर से बाहर निकलने से पहले कबरी ने मटरू को समझाते हुए कहा---“मटरू बेटा,वहां एक बात का ध्यान रखना।”
“कौन सी बात मां?”मटरू ने पूछा.
“गाँव के बाहर तुम मेरे साथ ही रहना.कहीं इधर- उधर मत जाना,नहीं तो तुम रास्ता भूल जाओगे.”कबरी ने उसे समझाया.
“ठीक है मां…मैं आपके साथ ही रहूँगा।”—मटरू सर हिला कर बोला.
इसके बाद मटरू चल पड़ा---बाहर की सैर करने के लिए.रास्ते भर मटरू धीरे धीरे चलता रहा…मां के साथ.गाँव के बाहर पहुंचकर कबरी दूसरे जानवरों के साथ चरने लगी.अब मटरू उसके पास से हट गया.उसने सोचा कि जब तक मां घास खा रही है,तब तक मैं थोड़ा घूम लूँ.
मटरू चलते चलते दूसरे जानवरों से बहुत दूर निकल आया.जब वह रुका तो उसे एक घना जंगल दिखायी पड़ा.जंगल देख कर वह बहुत खुश हुआ.उसने सोचा कि लगे हाथों जंगल में भी घूम लिया जाय.बस फ़िर क्या था?वह चल पड़ा उछलता कूदता जंगल के अन्दर।
अभी मटरू जंगल के अन्दर थोड़ी ही दूर गया था कि उसे जोर की आवाज सुनायी पडी.आवाज सुन कर वह बहुत डर गया.उसने सामने देखा तो उसे सामने एक बड़ा सा भालू आता दिखायी पड़ा.भालू मटरू को देखते ही उसके चारों और घूमने लगा और उससे बोला---
“ऐ बछडे तू कहाँ से आया,
क्या है तेरा नाम,
इस जंगल में भटक रहा क्यूं,
किससे तुझको काम?”
भालू की बात सुनकर मटरू रोने लगा.रोते रोते बोला----
“मैं हूँ गाँव से आया भइया,
मटरू मेरा नाम है भइया,
रस्ता भूल गया हूँ घर का,
भटक रहा हूँ जंगल में भइया,
वापस घर पहुँचा दो मुझको,
मेरी मां से मिला दो मुझको.”
भालू उसकी बात सुनकर जोर जोर से हंसने लगा और बोला---
“हा ..हा..हा..,घर से भागा है तू,
रस्ता भूला है तू,
अपनी करनी की ही तो,
सजा पा रहा है तू.”
मटरू भालू की बात सुन कर फ़िर से रोने लगा.भालू उसे रोता छोड़ कर वहां से चला गया.कुछ ही देर बाद एक चीता उधर आ निकला.चीते से भी मटरू ने घर पहुँचाने के लिए कहा.चीता भी उसका मजाक उड़ाकर वहां से चला गया.
चीते के चले जाने के बाद मटरू बहुत घबराया.उसे अफ़सोस भी हो रहा था कि उसने अपनी मां का कहना क्यों नहीं माना.वह सोच रहा था कि किससे वापस घर जाने का रास्ता पूछे?अचानक उसे एक बन्दर सामने से आता दिखाई पड़ा.बन्दर को देखते ही मटरू दौड़कर उसके पास गया और जोर – जोर से रोने लगा.बन्दर को उसके ऊपर दया आ गयी.वह मटरू के पास आकर उसे चुप कराकर बोला---
“ ऐ बछडे तू कहाँ से आया,
क्या है तेरा नाम?
इस जंगल में क्यों रोता है,
मुझसे क्या है काम?
बन्दर से भी मटरू ने वही बातें कहीं जो उसने भालू और चीता से कहीं थीं.बन्दर उसकी बात सुनकर मुस्कुराने लागा और बोला----“मटरू ,मैं तुझे घर पहुँचा दूँगा.रास्ता भी बता दूँगा,पर तुझे मेरा एक कहना मानना होगा.”
“हाँ बन्दर काका, मैं आपकी हार बात मानूंगा.आप मुझे बस घर वापस लौटने का रास्ता बता दें.”मटरू रोते रोते बोला.
“देख मटरू तू अभी बहुत छोटा है.तेरा इस तरह अकेले घूमना ठीक नहीं.अब कभी ऐसा मत करना.”बन्दर ने उसे समझाया.
“हाँ काका आप ठीक कह रहे हैं.मां ने भी मुझे समझाया था,पर मैंने उनकी बात नहीं मानी थी.”---मटरू सिसक कर बोला.
“तो अब आगे से ऐसा कभी मत करना.बोलो मेरा कहना मानोगे न?”बन्दर ने उसे समझाते हुए पूछा.
“हाँ काका,अब मैं हमेशा बड़ों का कहना मानूंगा।”—मटरू बोला.
इसके बाद बन्दर ने मटरू को जंगल से बाहर तक पहुँचा दिया.मटरू तेजी से दौड़ता हुआ अपने गाँव की ओर भागा.और जल्द ही अपनी मां कबरी के पास पहुँच गया.दोनों एक दूसरे से मिल कर खूब खुश हुए.
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हेमंत कुमार


मंगलवार, 21 अप्रैल 2009

बालगीत -- मुर्गे जी की बांग




मुर्गे जी ने एक दिन सोचा ,बहुत दे चुका बांग,
कुछ दिन मैं भी छुट्टी ले लूँ ,और करुँ आराम।

ओढ़ी चादर तान सुनो फ़िर,क्या हुआ था मामा,
सारे जंगल में मचा था, खूब खूब हंगामा।

बन्दर जी को हो गयी देर,दफ्तर पहुंचे फ़िर वो लेट,
चीते जी उन पर चिल्लाये,गेट आउट फ्राम द गेट।

मुर्गे जी की छुट्टी से ,उलट गए सब काम,
चुन चुन चिडिया ने सुबह की,सब्जी बनाई शाम।

डम्पी हाथी चिंकी बिल्ली,पहुंचे जब स्कूल,
भालू मियां को गुस्सा आया,मार दिया दो रूल।

बोले बच्चों इतनी जल्दी,याद तुम्हें है आई,
सुबह सुबह होती है कक्षा,अब शाम होने को आई।

हो रहा क्या उल्टा पुल्टा,कोई समझ न पाया,
पर बुद्धिमान हाथी काका ने,अच्छा गणित लगाया।

सूरज निकले सुबह सुबह क्यों,चंदा निकले शाम
कल कल करते नदी समंदर ,बिना करे आराम।

टिक टिक करती सुई घड़ी की ,क्यूं करती ना आराम,
क्यूं दिया है हमने इसको,समय सारिणी नाम।

ईश्वर ने सबको बांटे हैं,अपने अपने काम,
पहले अपना काम करो,फ़िर करो आराम।

बहुत हो गया मुर्गा जी,तुमने किए सब फेर,
सुबह का भूला शाम को आए,तो नहीं कहलाती देर।

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कवियत्री:पूनम

हेमंत कुमार द्वारा फुलबगिया पर प्रकाशित।



मंगलवार, 14 अप्रैल 2009

गर्मी आई

जाड़ा गया लो गर्मी आई
बरफ मलाई संग में लाई।

दिन छोटे से बड़े हुए अब
रातें हो गयीं छोटी
बन्दर जी ने सिल बट्टे पर
ठंढाई है घोटी।


भालू भी क्यों रहता पीछे
उसने ली अंगडाई
झट से पहुँचा नदी किनारे
डुबकी एक लगाई।

घोड़े को जब कुछ न सूझा
उसने दौड़ लगाई
गधे ने अपने पैर पटक कर
ढेरों धूल उड़ाई।

जाड़ा गया लो गर्मी आई
बरफ मलाई संग में लाई।
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हेमंत कुमार

शनिवार, 11 अप्रैल 2009

दादा जी की चिट्ठी


थोड़ी खट्टी थोड़ी मिट्ठी
दादा जी की आई चिट्ठी।

दादी जी को हुआ जुकाम
खाए थे दो कच्चे आम
उस पर पिया था ठंढा पानी
बोलो है न ये नादानी
अब ना करूंगी गलती ऐसी
कान पकड़ के उट्ठी बैठी
दादा जी की आई चिट्ठी।

नदिया बिल्कुल सूख गयी है
जाने वह क्यों रूठ गयी है
कोयल का कुछ पता नहीं है
बिना बताये चली गयी है
अमराई रहती उदास है
दिखे वहां तो लिखना चिट्ठी
दादा जी की आयी चिट्ठी।

ली है एक कलोरी गैया
बछड़ा मानो तेरा भइया
जब भी गाय को दुहने जाता
खूब जोर से शोर मचाता
तुम होते तो खुश हो जाते
आना जब भी होवे छुट्टी
दादा जी की आयी चिट्ठी।

अपने पापा जी से कहना
भले ठीक हो शहर का रहना
कभी कभी तो आवें गाँव
देखें बचपन के वे ठांव
मम्मी और तुम्हें भी लावें
याद कर रही खेत की मिट्टी
दादा जी की आयी चिट्ठी।
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रचनाकार
: कौशल पाण्डेय
हिन्दी अधिकारी
आकाशवाणी,पुणे(महाराष्ट्र)
मोबाईल न0:०९८२३१९८११६

हेमंत कुमार द्वारा प्रकाशित

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2009

विज्ञान---जीवों की निराली दुनिया










बच्चों हमारी इस धरती पर हजारों,लाखों तरह के जीव जंतु रहते हैं. कुछ जमीन पर चलने वाले कुछ पानी में तैरने वाले,हवा में उड़ने वाले या फ़िर जमीन पानी दोनों में रहने वाले.जिस तरह हमारी आदतें,रहन —सहन के ढंग अलग —अलग होते हैं.वैसे ही जानवरों की भी आदतें अलग —अलग तरह की होती हैं.हम आज तुम्हें इन्हीं में से कुछ की मजेदार बातें बता रहे हैं.
सबसे पहले हम बात करेंगे मानीटर छिपकली की.तुम्हारे घरों में दीवालों पर दिखने वाली छिपकली कितनी लम्बी होती है?तुम कहोगे ४ या ५ इंच.लेकिन हम जिस मानीटर छिपकली की बात कर रहे हैं इसकी लम्बाई होती है १० फीट और वजन लगभग १३६ किलोग्राम.चौंक पड़े न पढ़ कर.ये छिपकली इंडोनेशिया के कमोडो द्वीप समूह में पाई जाती है.इसीलिये पूरी दुनिया में इसे कमोडो ड्रैगन कें नाम से जाना जाता है.ये मानीटर छिपकली की ३० प्रजातियों में से एक है.

इसके मुंह में साँपों की तरह दो नोकों वाली जीभ होती है.इंडोनेशिया के आलावा ये अफ्रीका,पश्चिमी एशिया तथा आस्ट्रेलिया में भी पाई जाती है.मादा कमोडो ड्रैगन एक से तीन अन्डे एक बार में देती है.ये चिडियों,रेंगने वाले जीवों मसलन मेढक,काक्रोच,गिलहरी को अपना भोजन बनाती है.
एक मजेदार बात और है.इस छिपकली में कई विशेषताएं साँपों वाली होती हैं.ये साँपों की ही तरह अपने शिकार को समूचा निगलती है.ये जहरीली तो होती ही है.दूसरी छिपकलियों की तरह अपनी दुम भी नहीं गिराती .इन विशेषताओं को देख कर लगता है की साँपों और मानीटर छिपकलियों का परिवार कभी एक ही रहा होगा.

जब साँपों जैसी आदतों वाली छिपकली की बात चल रही है,तो हम तुम्हें साँपों की भी एक खास बात बता देते हैं.हम और तुम किसी गंध या महक को सूंघने के लिए अपनी नाक का इस्तेमाल करते हैं.क्या तुम जानते हो कि सांप किसी चीज को कैसे सूंघता है?सांप किसी चीज को सूंघता है अपनी जीभ से.हाँ,ये बात पूरी तरह सच है.सांप अपनी जीभ से एक तरह की भीनी गंध प्राप्त करते हैं.और इसी से वे शत्रु या अपने जोड़े की पहचान करते हैं.ये अपनी जीभ से हल्की से हल्की गंध को जितनी आसानी से सूंघ सकते हैं उतनी तेज कोई रेंगने वाला जीव नहीं सूंघ सकता.

छिपकली की ही तरह अपने घरों के बगीचों में या पौधों पर दौड़ते गिर्गिटान को तो तुम पहचानते ही हो.ये भी अपने आप में एक अलग तरह का जीव है.इसकी सबसे बड़ी खूबी तो यही है यह जगह के हिसाब से छिपने के लिए अपना रंग बदल लेता है.हरे पत्तों के बीच हरा,कभी गाढा भूरा या लाल.इसमें और भी कई खास बातें हैं.गिरगिट अपनी दोनों आँखों को अलग अलग किसी भी दिशा में घुमा सकता है.यानी दायी आँख से पूरब तो बांयी आंख से पश्चिम में देख सकता है.जब यह अपनी एक आंख खाने की तलाश में ऊपर घुमाता है तो दूसरी से नीचे किसी दूसरे शिकार या दुश्मन की टोह लेता है.मतलब कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना.

इसकी एक आश्चर्यजनक विशेषता और है.ये अपनी लम्बी जीभ को बहुत तेजी के साथ बाहर फेंक कर शिकार के साथ मुंह में खींच लेता है.और तुम्हें मालूम है इस काम में कितना समय लगता है? मात्र ०.०४ सेकेण्ड.अरे भाई इतने कम समय में तो हमारी पलक भी नहीं झपकती.सोचो कितना फुर्तीला होता है ये गिरगिट.

चलते -- चलते हम तुम्हें एक और जीव के बारे में बता देते हैं.इसे आग भी नहीं जला पाती.यह जीव है आस्ट्रेलिया में पाया जाने वाला एक छोटा सा गुबरैला.इसका असली नाम “मरीना अल्ट्राटा” है.इसकी खास बात यह है कि यह लाल दहकते कोयले पर भी रेंग सकता है.लेकिन इन गर्म कोयलों का इसके पैरों पर या इसके शरीर पर कोई असर नहीं होता है.
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हेमंत कुमार