गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

थाने में हंगामा

शेरू कुत्ता ले कर सोटा
सीधे पहुंचा थाने में
पटक के सोटा मेज पे बोला
क्या हंगामा थाने में।

थानेदार उठा बिस्तर से
झट से पहुंचा थाने में
हाथ जोड़ के बोला फ़िर वो
सारी सर, कुछ देर हुई बस आने में।

कुर्सी पर फ़िर चढ़ कर शेरू
लगा भौंकने थाने में
कहां मर गये सभी सिपाही
रपट लिखानी थाने में।

सभी सिपाही फ़ौरन भागे
गिरते पड़ते थाने में
शेरू ने फ़िर क्लास लगाई
सरे आम बस थाने में।

थानेदार से उट्ठक बैठक
हवलदार से झाड़ू पोंछा
मेज पे बैठा मुर्गा तोड़े
अपना शेरू थाने में।

शेरू कुत्ता ले कर सोटा
सीधे पहुंचा थाने में।
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कवियत्री--नित्या शेफ़ाली



रविवार, 18 अप्रैल 2010

बिल्ली मौसी



बिल्ली मौसी घर से चली
आंख पे चश्मा हाथ में थैला
बिल्ला मौसा को बाय कहा
और फ़ोन मिलाती आगे चली।

हंस के बोले मौसा जी फ़िर
चटक मटक कर कहां चली
झटक के अपनी झबरी पूंछें
आंख मटका कर झट से बोली।

पहले बालीवुड जाऊंगी
शाहरुख संग फ़िल्म बनाऊंगी
पैसा खूब कमाऊंगी
फ़िर बनारस जाऊंगी।






जा के गंगा में नहाऊंगी
चूहे पकड़ के लाऊंगी
पेट भरकर खाऊंगी
फ़िर वापस मैं आऊंगी।

कवि-कुलेश नन्दन
                        पुत्र श्री वीरेन्द्र सारंग
                     कक्षा-5 बाल गाइड इन्टर कालेज
                                        लखनऊ-

गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

कठफ़ोड़वा

घूम घूम कर पेड़ों पर ही
ठक ठक करता मैं कठफ़ोड़वा।

चोंच मेरी है बहुत ही लम्बी
बहुत ही लम्बी बहुत ही पैनी
मोटी से मोटी लकड़ी को
काटे जैसे लुहार की छेनी।

रंग मेरा है गाढ़ा भूरा
उस पर काली भूरी धारी
पर उससे भी अच्छी लगती
मेरे सिर पर कलगी प्यारी।

घूम घूम कर पेड़ों पर ही
ठक ठक करता मैं कठफ़ोड़वा।
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हेमन्त कुमार