गुरुवार, 17 जून 2010

काले मेघा आओ ना



काले मेघा आओ ना

गर्मी दूर भगाओ ना।



गगरी खाली गांव पियासा

नदिया से ना कोई आशा।

सूख गये सब ताल तलैया

कैसे गायें छम्मक छैयां।

धरती को सरसाओ ना

काले मेघा आओ ना॥



सुबह सुबह ही सूरज दादा

गुस्सा जाते इतना ज्यादा।

कष्टों की ना कोई गिनती

सुनते नहीं हमारी विनती।

कुछ उनको समझाओ ना

काले मेघा आओ ना॥



हमने तुमको भेजी चिट्ठी

खतम करो अब अपनी छुट्टी।

जल्दी से जल्दी तुम आना

आने की तारीख बताना।

मस्ती के दिन लाओ ना

काले मेघा आओ ना॥

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कवि-कौशल पांडेय

हिन्दी अधिकारी

आकाशवाणी,पुणे(महाराष्ट्र)