मंगलवार, 3 अक्तूबर 2017

दानव से मानव


दानव से मानव
                                                                                                 प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव

                       वल्लभगढ़ के राजकुमार अक्सर घने जंगल में निकल जाते।उन्हें शिकार का कोई शौक नहीं था।बस,मित्रों के साथ घुड़दौड़ नदियों में तैराकी देखते देखते ऊंचे पेड़ों की चोटियों तक पहुंच जाना।ये ही थे उनके शौक।कोई भयानक जानवर आक्रमण कर बैठता तो उससे भी पीछे न हटते।सबसे बढ़कर अपनी मधुर वाणी और सुन्दर व्यवहार के लिये वे पूरे राज्य में प्रसिद्ध थे।
   उस जंगल में एक नरभक्षी राक्षस और उसका जादुई महल भी था।पिता ने उससे सावधान रहने के लिये बार बार कहा।पर राजकुमार हंस कर उत्तर देते, मैं उसे पा गया तो चुटकियों में मार गिराऊंगा।
                    एक दिन भालू जैसे एक जंगली जानवर ने अचानक उनके ऊपर हमला कर दिया।राजकुमार ने तुरन्त भाला निकाल लिया।भाला देखते ही वह जानवर भाग निकला।बेहद तेज गति से।राजकुमार उसे पकड़ नहीं पा रहे थे।वह घोड़े की गति से तेज भाग रहा था।एक एक कर सभी पीछे छूट गये।अंधेरा घिर आया। अचानक राजकुमार को उस अंधेरे में चमकता हुआ एक महल दिखाई पड़ा।दीवारों से लेकर कंगूरे तक एक दम जैसे बिजली में नहाया हुआ।उधर वह जानवर भी ना जाने कहां गायब हो गया।राजकुमार को लगा----शायद यही उस नरभक्षी राक्षस का जादुई महल हो।
   राजकुमार अब बुत थक गये थे।वे फ़ाटक के बाहर बने एक चबूतरे पर बैठ गये।सामने चबूतरे पर तीन टोकरियों में ताजे ताजे फ़ल रखे थे।भूख से बेहाल राजकुमार ने एक फ़ल उठा लिया।
    मगर तभी फ़ाटक के पीछे से एक मधुर स्वर सुनाई दिया—“सावधान राजकुमार,यह नरभक्षी राक्षस का महल है।ये जादुई फ़ल हैं।इन्हें खाते ही आप बेहोश हो जाएंगे।तब राक्षस आप को खा जाएगा।मैं दूसरे फ़ल लेकर आती हूं।
   इसी के साथ फ़ाटक का एक पल्ला खुला।एक सुन्दर लड़की थाली में ताजे फ़ल लेकर राजकुमार के पास आई।
    राजकुमार ने पूछा—“तुम कौन हो?
    मैं भी एक राजकुमारी हूं।आप की तरह मुझे भी फ़ंसा कर यहां लाया गया है।जल्दी से फ़ल खा लो।राक्षस के आने का समय हो रहा है।राजकुमारी बोली।
    मेरे बचने का क्या उपाय है?
    बताती हूं,पहले पेट में कुछ डाल लो।
        “तुम अभी तक कैसे बची हो?
वह मुझे अपना मन बहलाने के लिये रखे है।कभी गाने सुनता है कभी मेरा नृत्य देखता है।लेकिन मेरे शरीर को उसने कभी छुआ तक नहीं।महल के कैदखाने में सैकड़ों लोग बंद हैं।जिस दिन इसे बाहर शिकार नहीं मिलता इन्हीं में से किसी एक से अपनी भूख मिटाता है।
 अब तक राजकुमार फ़ल खा चुका था।
देखो आंगन में खड़ा यह ऊंचा पेड़ देखते हो?क्या तुम इस पर चढ़ सकते हो?
राजकुमार हंस कर बोला—“क्या तुम यह कहना चाहती हो कि मैं इस पेड़ पर चढ़ कर अपनी जान बचाऊं?राक्षस वहां नहीं पहुंच पाएगा?
नहीं नहीं---इस पेड़ की चोटी पर एक फ़ल लगा है।वह फ़ल तुम्हारे हाथ में आते ही राक्षस तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा।तुम उस फ़ल के जितने टुकड़े करोगे राक्षस के भी उतने टुकड़े होते जाएंगे।
देखो ,कैसे चुटकियों में वो फ़ल तोड़ कर लाता हूं?
राजकुमारी ने टोका—“यह काम इतना आसान नहीं है।पेड़ की एक एक डाल तुम्हें ऊपर चढ़ने से रोकेगी।
तुम उसकी चिंता मत करो।यह कह कर राजकुमार जल्दी से अपने से लिपटती हर डाल को तोड़ता मरोड़ता ऊपर पहुंच गया।क्षण मात्र में उसने फ़ल को तोड़ लिता।
    मगर यह क्या?पेड़ से फ़ल के अलग होते ही पेड़ पर चमकती रोशनी बुझ गई।पूरे महल की चमक गायब हो गई।राजकुमार समझ गया कि पेड़ से अलग होते ही अब इसमें कोई जादुई शक्ति नहीं।अब यह एक साधारण फ़ल मात्र है।
             इसी समय दूर से राक्षस के दहाड़ने की आवाज सुनाई पड़ी।दहाड़ से पूरा जंगल कांप रहा था।वह पागल की तरह भागा चला आ रहा था।
राजकुमार तुम जल्दी से छिप कर अपने प्राण बचाओ।राजकुमारी डर से कांपती हुई बोली।
  राजकुमारी तुम फ़ाटक बंद कर के भीतर जाओ।मैं उसे बाहर देखता हूं ड़रो मत। वह मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
      इधर राजकुमार को देखते ही राक्षस गरजा---कौन हो तुम?तुमने कैसे इस फ़ल को तोड़ने का साहस किया?चलो पहले तुम्हें ही अपना निवाला बनाता हूं।
    राक्षस राज,वल्लभगढ़ के राजकुमार का प्रणाम स्वीकार करें।मैं तो आपके पुत्र समान हूं।क्या अपने पुत्र को ही अपना ग्रास बनाएंगे?
    मुझे बातों से मत बहलाओ।यहां का सब कुछ तुमने नष्ट कर दिया।मेरे प्राण भी अब तुम्हारी मुट्ठी में हैं।राक्षस चिल्लाया।
     अच्छा,आप इसी बात से भयभीत हैं?तो लीजिये संभालिये अपने प्राणों को।कहते हुए राजकुमार ने वह फ़ल राक्षस की ओर उछाल दिया।
   राक्षस आश्चर्य से बोला—“अरे तुम्हें अपने प्राणों का भय नहीं। अब अगर मैं तुम्हें मार कर खा जाऊं?
आप ऐसा कर ही नहीं सकते।मैं अब बाहर नहीं आपके हृदय में हूं तात।
        अब राक्षस के चौंकने की बारी थी।आज तक किसी ने उसे इतना आदर नहीं दिया था।न ही राक्षस राज कह कर प्रणाम किया।न तात ही कहा।सब उससे डरते और नफ़रत करते थे।पर यह तो जैसे सचमुच मेरा बेटा बन गया।
    तभी राजकुमार बोले—“मेरे तात कहने का आप बुरा तो नहीं मान रहे हैं?
बिल्कुल नहीं बेटे।दानव के मुख से अचानक निकल पड़ा। उसके भीतर पता नहीं कहां की ममता उमड़ आई।
तात,मैं चाहता हूं कि आपका यह जादुई महल पहले से भी शानदार हो जाए।
वह कैसे?अब तो सब नष्ट हो चुका है।
मेरे ऊपर विश्वास कीजिये।
ऐसा है तो मेरी भी एक इच्छा पूरी कर दो।कहते हैं कन्यादान से सारे पाप धुल जाते हैं।मैं कन्यादान करना चाहता हूं।
राजकुमार और राजकुमारी प्रसन्न हो उठे।वो दानव का मतलब समझ गये।
राजकुमार मैं जन्म से राक्षस नहीं हूं।मेरा नाम नीलमणि है।मेरे नीच कार्यों ने मुझे दानव बना दिया।राजकुमार ने सब समाचार पिता जी को भेज दिया।शुभ घड़ी में वल्लभगढ़ से बारात आई।नीलमणि ने धूम धाम से कन्यादान किया।
   तात,मैं भी दहेज में कुछ मांगना चाहता हूं।
   कहो राजकुमार,मैं तुम्हें दुनिया की हर चीज दूंगा।
     मुझे बस आपसे एक वादा चाहिये।इस जंगल में सैकड़ों मुसाफ़िर राह भटक कर भूख प्यास से मर जाते हैं।अब ऐसा नहीं होना चाहिये। आप यहां उनके खाने पीने और ठहरने का प्रबंध कर दें।इससे आपकी कीर्ति और बढ़ जाएगी।लोग दानव नहीं मानव नीलमणि को याद करेंगे।इससे आपका महल भी पहले की तरह जगमगाने लगेगा।
नीलमणि के हामी भरते ही चमत्कार हो गया।पूरा महल फ़िर पहले की तरह चमकने लगा।
       नीलमणि की आंखों में प्रसन्नता के आंसू छलक आए।वह महाराज से बोला—“राजन,राजकुमार के कारण ही मैं आज फ़िर से मानव बन गया।वरना मैं पता नहीं कब तक दानवों के नीच कर्म करता रहता।
       महाराज बोले—“नहीं नीलमणि,इसके पीछे राजकुमार का नहीं,उनकी वाणी और व्यवहार का हाथ है।इससे इंसान दुनिया में सब कुछ प्राप्त कर सकता है।
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प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव
 11मार्च,1929 को जौनपुर के खरौना गांव में जन्म।31जुलाई 2016 को लखनऊ में आकस्मिक निधन। शुरुआती पढ़ाई जौनपुर में करने के बाद बनारस युनिवर्सिटी से हिन्दी साहित्य में एम0ए0।उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग में विभिन्न पदों पर सरकारी नौकरी।पिछले छः दशकों से साहित्य सृजन मे संलग्न।देश की प्रमुख स्थापित पत्र-पत्रिकाओं में कहानियों,नाटकों,लेखों,रेडियो नाटकों,रूपकों के अलावा प्रचुर मात्रा में बाल साहित्य का प्रकाशन।आकाशवाणी के इलाहाबाद केन्द्र से नियमित नाटकों एवं कहानियों का प्रसारण।
          नेशनल बुक ट्रस्ट से प्रकाशित बाल उपन्यास "मौत के चंगुल में " के साथ ही बाल कहानियों,नाटकों,लेखों की अब तक पचास से अधिक पुस्तकें प्रकाशित।वतन है हिन्दोस्तां हमारा(भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत)अरुण यह मधुमय देश हमारा”“यह धरती है बलिदान की”“जिस देश में हमने जन्म लिया”“मेरा देश जागे”“अमर बलिदान”“मदारी का खेल”“मंदिर का कलश”“हम सेवक आपके”“आंखों का ताराआदि बाल साहित्य की प्रमुख पुस्तकें।इसके साथ ही शिक्षा विभाग के लिये निर्मित लगभग तीन सौ से अधिक वृत्त चित्रों का लेखन कार्य।1950 के आस पास शुरू हुआ लेखन एवम सृजन का यह सफ़र 87 वर्ष की उम्र तक निर्बाध चला।बाल नाटकों का एक संग्रह नेशनल बुक ट्रस्ट से प्रकाशनाधीन।


3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  2. बचपन में बड़े-बुजुर्गों से इसी तरह की कहानी सुनने में बड़ा मजा आता था
    आज आपकी प्रस्तुति पढ़कर यादें ताज़ी हुई

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