(हमारे देश को आजाद कराने में बहुत सारे वीर पुरुषों और महिलाओं ने अपनी शहादत
दी। हम उनमें से कुछ को जानते हैं,उन्हें याद करते हैं। पर कुछ आज भी गुमनामी के अंधेरों में खोये हुये हैं।ऐसी ही एक वीरांगना थीं मुजफ़्फ़र नगर की कैराना तहसील के मुंडभर माजू गांव की
महाबीरी देवी।)
मुंडभर की महाबीरी
महाबीरी की आज फ़िर बापू से बहस हो गई।बात
बस इतनी कि बापू उससे ठाकुर साहब के घर सूप पहुंचाने
को कह रहे थे।महाबीरी ने मना कर दिया आखिर क्यों जाए वह उनके घर सूप या पंखा
पहुंचाने?ठाकुर साहब के घर इतने नौकर चाकर हैं।वह किसी को भेज कर मंगा नहीं सकते? बस इतनी सी बात
कहते ही बापू उससे नाराज हो गये और बिना दाना पानी किए खुद चले गए चिलचिलाती धूप में
परेशान होने के लिये।
बापू के जाने
के बाद महाबीरी बैठ कर पंखे बनाने के लिए बांस छीलने लगी।पर आज उसका मन बांस छीलने में
नहीं लग रहा था।उसके हाथ में हंसिया थी पर उसका दिमाग कहीं और उलझा था।वह सोच रही थी
कि आखिर हम लोग इन बड़ी जाति वालों से दब कर क्यों रहें।क्या सिर्फ़ इसलिए कि हम लोग नीची जाति के हैं? क्या हमारी समाज में कोई
इज्जत नहीं?क्या हम केवल बड़ों की चाकरी करने के लिये पैदा हुए हैं?उसका दिमाग
अक्सर इन्हीं सवालों में उलझ जाता था।लेकिन वह अपने बापू को कैसे समझाए?
महाबीरी जब
भी बापू को समझाने की कोशिश करती उनका एक ही जवाब होता,“बिटिया, हम लोग गरीब हैं।
हमारा जनम ही बड़े लोगों की गुलामी करने के लिये हुआ है।लेकिन किशोरी महाबीरी को बापू की यह बात हजम नहीं होती।वह हमेशा सोचती कि
कैसे इन बड़े लोगों का विरोध करे।
एक दिन महाबीरी
पंखे बनाने के लिये बांस काटने जा रही थी।रास्ते में उसने गांव के पांडे के लड़के को हरिया की लड़की से छेड़खानी करते देख लिया।बस महाबीरी
का तो खून खौल उठा। उसने पांड़े के लड़के को चार पांच झापड़ मार दिया।पांड़े का लड़का
उसे देख लेने की धमकी देकर भाग गया।
हरिया की लड़की उसके गले लग कर रोने लगी।महाबीरी ने उसे
समझाया, “अरे रोती काहे है पगली।रोने से काम नहीं चलेगा
हिम्मत दिखा और इन बड़े आदमियों का विरोध कर नहीं तो ये हमें जिन्दगी भर दबा कर
रखेंगे।”
इस घटना के बाद
से गांव भर में महाबीरी की चर्चा होने लगी। पुरुषों में भी,महिलाओं में भी।किसी के
ऊपर कोई मुसीबत आती तो महाबीरी के पास पहुंच जाता। कभी किसी गरीब को कोई सताता तो महाबीरी उसका जीना हराम कर देती। ऊंची जाति वाले भी महाबीरी से डरने लगे थे। हां,बापू जरूर
उसे बीच बीच में डांट देते थे।पर मन में वो भी उसके कामों की तारीफ़ करते थे।
धीरे-धीरे
महाबीरी ने अपने जैसी बहादुर युवतियों को इकट्ठा कर एक समूह बना लिया। इस समूह का
काम ही था गरीबों और असहायों की रक्षा और अमीरों के अत्याचारों से उन्हें बचाना।
महाबीरी ने एक दिन अपने समूह की सभी युवतियों की एक सभा बुलाई। इस बैठक में
उन्होंने अपनी सभी सहेलियों से कहा कि,“सखियों,हम सभी
मिलकर आज शपथ लेते हैं कि हम जीवन भर अपने अधिकारों के लिए लड़ते रहेंगे। गरीबों और
सहायों की रक्षा करेंगे। भले ही इसके लिये हमें जान क्यों न गंवानी पड़े।” उनकी
सभी सखियों ने उनका साथ देने का वचन दिया।
कुछ ही समय
में महाबीरी के समूह की चर्चा आस पास के गांवों में भी फ़ैल गयी। अपने समाज से तो
महाबीरी की लड़ाई चल ही रही थी। लेकिन इधर अंग्रेजों के साथ हो रही लड़ाइयों से भी
वह चिन्तित रहती थीं। पढ़ी लिखी न होने के बावजूद महाबीरी के अंदर देश,समाज और आम
जन के बारे में सोचने समझने की अद्भुत क्षमता थी। वह अक्सर अपनी सहेलियों से कहती
भी कि कभी मौका लगा तो हम लोग मिलकर इन गोरों के छक्के छुड़ाएंगे।
एक दिन
महाबीरी देवी गांव के बाहर अपने समूह के साथ कोई बैठक कर रही थीं। अचानक गांव की
ओर से बुधुआ दौड़ता हुआ वहां आ गया। दूर से दौड़ कर आने के कारण वह हांफ़ भी रहा था।
“क्या
हुआ बुधुआ?तू इतना घबराया क्यों है?हमारी बस्ती में तो सब ठीक है?”
महाबीरी ने पूछा।
“महाबीरी दीदी,बहुत बुरी खबर है। अंग्रेजों की सेना
की एक टुकड़ी बाज़ार में मार काट करती हुयी हमारे गांव कि ओर बढ़ रही है। लग रहा है
अब हमारे गांव में कोई जिन्दा नहीं बचेगा।” बुधुआ हांफ़ता
हुआ बोला।
“डरो
मत। जाकर गांव वालों से कह दो सब सुरक्षित जगहों पर पहुंच जाएं। हम आभी वहां पहुंच
रहे हैं।” महाबीरी ने बुधुआ को समझाया।
इसके बाद तो
महाबीरी के शरीर में बिजली भर गई। वह तुरंत खड़ी हो गयीं। उन्होंने अपने समूह की
सभी महिलाओं को गिना। कुल 22 महिलाएं थीं। महाबीरी ने तुरंत फ़ैसला कर लिया। युद्ध
करना ही एक उपाय है।
“सहेलियों,अब
समय आ गया है अपनी बहादुरी दिखाने का। हमारी संख्या केवल बाईस है। पर अंग्रेजों के
दांत खट्टे करने के लिये हम काफ़ी हैं। चलिये गांव से गंड़ासे,फ़रसे,भाले,हंसिया जो
भी मिले लेकर हमें गांव के बाहर पहुंच जाना है। गोरों को वहीं रोकना होगा।”महाबीरी
देवी जोश से बोलीं। “हमें किसी भी कीमत पर इन गोरों को गांव
में घुसने नहीं देना है।”
दस मिनट के
भीतर ही महाबीरी देवी गांव की 22 युवतियों की फ़ौज लेकर गांव के दूसरी ओर पहुंच
गयीं। उनके हाथों में गंड़ासे,फ़रसे,कुदाल,हंसिया जैसे हथियार थे। अंग्रेज इन मुट्ठी
भर औरतों को देख कर हंस पड़े। उन्हें लगा कि गांव की ये भोली औरतें भला क्या
करेंगी? लेकिन इससे पहले कि गोरे कुछ समझते महाबीरी देवी ने “जै
भारत माता” का नारा लगाया और सभी टूट पड़ीं अंग्रेजों पर।
अंग्रेज हतप्रभ रह गये। महाबीरी देवी के शरीर में तो मानो बिजली भर गयी थी। वह
दौड़-दौड़ कर अंग्रेजों पर वार कर रही थीं। लेकिन 22 महिलाएं अंग्रेजों की फ़ौज को
भला कब तक रोक पातीं। एक-एक कर सब शहीद होती गयीं। अन्त में महाबीरी देवी भी मारी
गयीं। अंग्रेज गांव में घुस गये लेकिन भारी नुक्सान उठाने के बाद। महाबीरी और उनकी
सहेलियों ने उनकी हालत पस्त कर दी थी।
बहादुर
तेजस्विनी महाबीरी देवी इतिहास बन गयीं।लेकिन वो अपने पीछे वीरता और बहादुरी की एक
अद्भुत मिसाल छोड़ गयीं। मुजफ़्फ़र नगर में कैराना तहसील के मुंडभर माजू गांव के लोग
आज भी उनकी बहादुरी और वीरता के किस्से अपने बच्चों को सुनाते हैं।
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डा0हेमन्त कुमार
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जवाब देंहटाएंइस गुमनाम शहीद को शत शत नमन !
जवाब देंहटाएंलेकिन क्या आजाद भारत उन शहीदों के सपनो को पूरा कर पाया है
mahabeeri devi ji ke bare me aaj jo bhi aapne bataya hai usse garv se ham sabhi ka sir uncha ho gaya hai. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें आभार तिरंगा शान है अपनी ,फ़लक पर आज फहराए
जवाब देंहटाएं.
देश के वीर शहीदों पर गर्व है.
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
जय हिंद!
इतिहास का यह पन्ना तो मेरी जानकारी में भी नहीं था. इस सामयिक जानकारी के लिए आभार हेमंत भाई.
जवाब देंहटाएंप्रेरक पोस्ट
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