धूप
दिखी तो
जाड़े
में सूरज दिखते ही
मन
करता है नाचूँ गाऊँ।
पार्क
से थोड़ी धूप उठाकर
एक
छोटे डिब्बे में लाऊं।
दादी
बाबा के कमरे में
खोल
के डिब्बा धूप बिछाऊँ
गजक
रेवड़ियां मूंगफली भी
धूप
के संग मैं उन्हें खिलाऊँ।
बड़ी
देर से मेरा शेरू
कूद
रहा अपने बोरे पर
धूप
में ला कर शेरू को भी
धमा
चौकड़ी कुछ कर आऊं।
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हेमन्त
कुमार