धूप
दिखी तो
जाड़े
में सूरज दिखते ही
मन
करता है नाचूँ गाऊँ।
पार्क
से थोड़ी धूप उठाकर
एक
छोटे डिब्बे में लाऊं।
दादी
बाबा के कमरे में
खोल
के डिब्बा धूप बिछाऊँ
गजक
रेवड़ियां मूंगफली भी
धूप
के संग मैं उन्हें खिलाऊँ।
बड़ी
देर से मेरा शेरू
कूद
रहा अपने बोरे पर
धूप
में ला कर शेरू को भी
धमा
चौकड़ी कुछ कर आऊं।
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हेमन्त
कुमार
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (19-01-2022) को चर्चा मंच "कोहरे की अब दादागीरी" (चर्चा अंक-4314) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर पँक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावाभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सहज भावों की अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन।
सुंदर बाल रचना
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना आ0
जवाब देंहटाएंवाह! ठंडी की धूप-सी बहुत ही प्यारी रचना!
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