बंधु कुशावर्ती जी से मेरा परिचय लगभग चार दशक से है।मैं उन्हें अभी तक बाल रंगमंच और बाल साहित्य के समीक्षा और आलोचना पक्ष के लिए ही जानता था।लेकिन उनके द्वारा वहाट्सऐप पर भेजी गयी एक बाल कविता पढ़ कर मुझे सुखद आश्चर्य हुआ।उन्होंने बताया कि उन्होंने यह बाल कविता लगभग बीस साल बाद लिखी है।बंधु जी इन दिनों अपने गाँव गए हुए हैं।यह सम्भवतः उनके गाँव प्रवास का ही असर है जो वहां की प्राकृतिक सुन्दरता से मुग्ध होकर उन्होंने यह प्यारी बाल कविता लिखी ।आप भी बंधु जी की इस रचना का आनंद उठाइये।
बारिश
में कुहरा छाया है!
गज़ब! गाँव
में बारिश के दिन।
कुहरा-धुँन्ध
भरे नभ
के दिन।
अजब सुबह
कुहरा छाया है !
जाड़े बिना, धुन्ध आया
है!
पेड़ दिख
रहे धुँधले - धुँधले !
हरियाली भी
धुँधली - धुँधली !
खेत धान
के धुँधले - धुधले!
प्रकृति
हुई सब , धुँधली-धुँधली!
सूरज अभी
नहीं निकला है!
दिखता सब धुँधला-धुँधला है !
पूरब में
जो पीला - धुँधला !
शायद यह
सूरज का गोला !
ताक-झाँक
की कोशिश में अब !
सूरज भी
बनने को बेढब!
पूरी ताकत
लगा रहा है !
अजमाता है
सब के सब ढब !
अब नीला
आकाश दिखा कुछ!
धुँन्ध औ' कुहरा
भी छँटता कुछ!
प्रकृति-खेत-तरु
भी कुछ दिखते!
दूर
क्षितिज भी, दिखता है कुछ !
सूरज में
भी चमक बढी़
है।
धमक धूप
की भी छितरी
है!
नभ में
भी आये हैं
बादल!
धुँन्ध औ' कुहरे हुए
बेदखल!
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कविता व चित्र--बंधु कुशावर्ती
परिचय:
०
अवध-क्षेत्रीय शहर सुल्तानपुर(उ०प्र०) के सांस्कृतिक पृष्ठभूमि वाले मध्यवर्गीय परिवार
में 5 अक्टूबर1949 को जन्म।14-15वर्ष की छात्रावस्था से ही लेखन की शुरुआत।मूर्धन्य
लेखकों का निरंतर सान्निध्य लाभ।विविध विधाओं में मुख्य-धारा के लेखन-प्रकाशन का
पत्र-पत्रिकाओं में अनवरत सिलासिला।समानांतर ही बाल साहित्य,बाल रंगमंच के बहुविध
लेखन व क्रियाकलापों में संलग्न।सांस्कृतिक-साहित्यिक पत्रकारिता से भी सघन-जुड़ाव।बाल-साहित्य
विषयक गहन मूल्यांकन व विवेचानापरक साहित्य इतिहास लेखन।समीक्षा-आलोचना केन्द्रित
3 खण्डों की लेखानाधीन शोधकृति।बाल्साहित्यालोचन:अभिनव हस्तक्षेप” प्रकाशित।2014में
उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा बाल साहित्य पत्रकारिता के लिए “लल्ली प्रसाद
पाण्डेय बाल साहित्य पत्रकारिता” सम्मान से समादृत।
संपर्क:456/247,दौलतगंज,(साजन
मैरिज हाल के सामने),डाकघर:चौक,लखनऊ-226003,मोबाइल-08840655314
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