सोमवार, 17 जनवरी 2022

धूप दिखी तो

 

धूप दिखी तो


 

जाड़े में सूरज दिखते ही

मन करता है नाचूँ गाऊँ।

पार्क से थोड़ी धूप उठाकर

एक छोटे डिब्बे में लाऊं।

 


दादी बाबा के कमरे में

खोल के डिब्बा धूप बिछाऊँ

गजक रेवड़ियां मूंगफली भी

धूप के संग मैं उन्हें खिलाऊँ।


 

बड़ी देर से मेरा शेरू

कूद रहा अपने बोरे पर

धूप में ला कर शेरू को भी

धमा चौकड़ी कुछ कर आऊं।

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हेमन्त कुमार

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (19-01-2022) को चर्चा मंच     "कोहरे की अब दादागीरी"  (चर्चा अंक-4314)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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  2. बहुत सुंदर सहज भावों की अभिव्यक्ति।
    सुंदर सृजन।

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  3. वाह! ठंडी की धूप-सी बहुत ही प्यारी रचना!

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