कई जानवर
सच्चाई पता करने रामू हाथी के घर की ओर दौड़े।कुछ ने
सोचा चलो चीं चीं चींटी से पता कर लें।बात सही भी है या नहीं।
खबर उड़ते
उड़ते जंगल के राजा गबरू शेर तक भी पहुंच गयी।सुनते ही
माथे पर बल पड़ गये।उसने फ़ौरन खबर लाने वाले शेरू कुत्ते से पूछा,“क्या
जो बात तू कह रहा है वो सच है?”
“हां
महाराज,बिल्कुल सही खबर दी है मैंने आपको।”शेरू अपनी झबरी
पूंछ हिलाता हुआ बोला।
“गर्र----।”गबरू
की दहाड़ ने पूरे जंगल को हिला दिया।उसकी दहाड़ सुनकर शेरू कुत्ता भी कांप उठा।‘चीं
चीं चींटी तो गई काम से।अब उसे गबरू शेर के गुस्से से कोई नहीं बचा सकता।’शेरू
ने कांपते हुए सोचा।अभी गबरू शेर उससे कुछ कहता कि सामने से रामू हाथी अपनी लंबी
सूंड़ हिलाता हुआ कई दोस्तों के साथ हाजिर हो गया।वह
बहुत गुस्से में दिख रहा था।
“महाराज---की जय हो।” रामू
हाथी ने सूंड़ उठा कर गबरू को अभिवादन किया।
“आओ----आओ—रामू
बैठो।”गबरू दहाड़ते हुये भी मुस्करा पड़ा।वह समझ गया कि रामू
क्यों इतने गुस्से में है।
“क्या बैठूं
महाराज---अब तो जंगल में रहना भी दूभर हो गया है।”रामू फ़िर
चिग्घाड़ा।“अब देखिये उस---चीं चीं चींटी को---उसने मुझे कुश्ती
लड़ने को ललकारा है।”
“अरे तो इसमें परेशानी की क्या बात?लड़
लो उससे कुश्ती।”गबरू मुस्करा कर बोला।
“महाराज
अब आप भी ऐसी बात कहेंगे।”रामू हाथी दयनीय सूरत बना कर बोला।
“आप खुद ही
सोचिये महाराज----अगर छोटे छोटे कीड़े मकोड़े हमें ऐसे ही ललकारते रहेंगे तो हमारा
भय ही खतम हो जाएगा जंगल में।भला कौन हम बड़े जानवरों की इज्जत करेगा?”भालू
अपनी घुरघुराती आवाज में बोला।
“हां
बात तो तुम लोगों की सही है।पर इसका उपाय क्या किया जाय?”गबरू
शेर कुछ सोचता हुआ बोला।
“इसका
उपाय यही है महाराज कि मैं जा कर चीं चीं चींटी की पूरी बिल को तोड़ दूं।न रहे बांस
न बजे बांसुरी।”रामू हाथी गुस्से में पैर पटकता हुआ बोला।
“ना ना
---ऐसी गलती मत करो।सब तुम्हें ही कहेंगे कि चुपके से जाकर चींटी के घर में उसे
मार दिया।”गबरू शेर ने उसे समझाने की कोशिश की।
“तो
क्या करूं?उसको यूं ही जंगल में सबसे कहने दूं कि वो मुझसे कुश्ती लड़ने वाली है।”रामू
हाथी खिसिया कर बोला।
“नहीं
मेरी मानो तो तुम उसका चैलेंज स्वीकार कर लो।और खुले मैदान में उसे सबके सामने
हराओ।ताकि दूसरे जानवरों और कीड़े मकोड़ों को भी सबक मिल सके।”गबरू
दहाड़ कर बोला।
“हां
रामू दादा---महाराज ठीक कह रहे हैं।”भालू अपने नथुने
खुजला कर बोला।
“ठीक है
महाराज----फ़िर मैं कब लड़ूं उससे कुश्ती?”रामू ने पूछा।
“शुभ काम में देर किस बात की।कल
ही रख लो।”गबरू ने जवाब दिया।
“और
हां,शेरू तुम जाकर चींटी को बता दो कि रामू हाथी उससे लड़ने को तैयार है।और बंदर से
कहकर पूरे जंगल में इस बात की डुगडुगी पिटवा
दो कि मेरी गुफ़ा के सामने कल दोनों की कुश्ती होगी।”फ़िर रामू
हाथी,भालू और शेरू वहां से चले गये और गबरू भी आराम करने लगा।
अगले दिन
सबेरे ही जंगल के सारे जानवर,पक्षी,कीड़े मकोड़े गबरू शेर की गुफ़ा के सामने इकट्ठे
हो गये।आखिर इतनी मजेदार कुश्ती जो होनी थी वहां।ज्यादातर जानवर जमीन पर और पक्षी
पेड़ों पर बैठे थे।गबरू अपनी गुफ़ा के चबूतरे पर बैठा था।रामू हाथी भी आ चुका
था।सबको इन्तजार था तो बस चीं चीं चींटी का।सब आपस में बात कर ही रहे थे तभी चीं
चीं चींटी भी आ गयी।गबरू शेर ने दहाड़ कर सबको खामोश कराया।
“अब आप
लोग शान्त हो जाइये।रामू और चींटी दोनों आ चुके हैं।”गबरू
के कहते ही सब खामोश हो गये।
गबरू ने रामू
हाथी और चीं चीं चींटी को सामने आने का इशारा किया।दोनों बीच की खाली जगह पर आ
गये।भालू हाथ में सीटी लेकर रेफ़री बन कर खड़ा हो गया।रामू हाथी बहुत ही गुस्से में
चीं चीं चींटी को घूर रहा था।
“सुनो
रामू हाथी और चीं चीं चींटी---तुम लोग मेरे पंजे का इशारा होते ही कुश्ती शुरू कर
दोगे।कोई एक दूसरे को जान से मारने की कोशिश नहीं करेगा।” गबरू
शेर दहाड़ा।
“ठीक है
महाराज---।”रामू भी चिग्घाड़ पड़ा।साथ ही चींटी भी अपनी महीन आवाज
में कुछ बोली पर उसकी आवाज रामू की चिग्घाड़ में दब गई।
जैसे ही गबरू ने
पंजे का इशारा किया रामू ने अपना अगला पैर उठा कर चीं चीं चींटी के ऊपर रखना
चाहा।सबकी सांसें रुक गयीं।“लगता है नन्हीं चींटी गयी—”पेड़ पर
बैठा तोता चीखा।पर हाथी का पैर पड़ने से पहले ही चींटी अपनी जगह छोड़ कर उसके पीछे
वाले पैर की तरफ़ भागी।रामू हाथी फ़ुर्ती से
फ़िर घूमा।इस बार हाथी ने दूसरा पैर उठाया तब तक चीं चीं करती हुयी चींटी उसके एक
पैर पर चढ़ चुकी थी।रामू हाथी पैर पटकता हुआ जमीन पर चींटी को ढूंढ़ रहा था और चीं
चीं चींटी तेजी के साथ भागती हुयी उसकी सूंड़ में घुस गयी।रामू अभी भी उसे जमीन पर
ही खोज रहा था।भालू कभी रामू के आगे कभी पीछे जा रहा था कि शायद कहीं चीं चीं
चींटी दिख जाय।
ठीक उसी
समय चींटी ने रामू की सूंड़ में काटना शुरू कर दिया।रामू हाथी अपनी सूंड़ ऊपर उठा कर
बड़ी जोर से चिग्घाड़ा।चींटी ने उसे फ़िर काटा।रामू फ़िर चिग्घाड़ा।और फ़िर तो चींटी
रामू की सूंड़ में काटती रही और रामू पैर पटक पटक कर चिग्घाड़ता रहा।अंत में रामू हाथी
बेदम होकर जमीन पर बैठ गया।वह बहुत ही दयनीय आवाज में बोला,,“अरे
चीं चीं चींटी अब मत काटो मुझे---तुम जीत गयी मैं हार गया।अब छोड़ दो मुझे---।”
रामू की हालत देखकर सारे जानवर
हंसने लगे।गबरू भी हंस पड़ा।उसने भी चींटी को समझाया—“अब इसे
छोड़ भी दो नन्हीं चींटी---बेचारा हार तो गया है।”अंत में चीं
चीं चींटी फ़ौरन चीं चीं करती हुयी रामू की सूंड़ से बाहर आ गयी।और रामू हाथी
तेजी के साथ घने जंगल की ओर भागता चला गया।
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डा0हेमन्त कुमार
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (19-12-2014) को "नई तामीर है मेरी ग़ज़ल" (चर्चा-1832) पर भी होगी।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सच कभी भी किसी को छोटा नहीं समझना चाहिए और विशेषकर अपने शत्रु को कभी भी कमजोर समझने की भूल नहीं करनी चाहिए वर्ना कहानी बनते देर नहीं लगती ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रेरक प्रस्तुति
प्रेरक बाल-कथा!
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