मटर छीलती प्यारी लड़की
कम दानों को देख भड़कती
मटर कहां से मिले तो छीलूं
हर घर में वो पहुंच अकड़ती।
कभी पाव भर कभी दो कीलो
मटर वो चुटकी में छीलती
पर फ़ोकट में काम न करती
बीच में दानों को झट से चबाती।
कहने को तो छोटी है पर
करती घर के ढेरों काम
सबको हड़का लेती घर के
मटर छीलती प्यारी लड़की।
मटर छीलती प्यारी लड़की
कम दानों को देख भड़कती।
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कवियत्री---नित्या शेफ़ाली
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (08-02-2016) को "आयेंगे ऋतुराज बसंत" (चर्चा अंक-2246) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
प्यारी लड़की...सुन्दर कविता !!
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " बेवक़्त अगर जाऊँगा " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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