(आज प्रतिष्ठित कहानीकार,रेडियो नाट्य लेखक,बाल साहित्यकार,मेरे
स्व०पिताजी आदरणीय श्री प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव जी 8वीं पुण्य तिथि है।उन्होंने प्रचुर मात्रा में
बाल साहित्य,रेडियो नाटकों के साथ ही साहित्य की मुख्यधारा में बड़ों के लिए भी
300से ज्यादा कहानियां लिखी हैं जो अपने समय की प्रतिष्ठित पात्र-पत्रिकाओं—सरस्वती, कल्पना,ज्ञानोदय,कहानी,नई कहानी,प्रसाद आदि में प्रकाशित हुयी थीं।पिता जी को स्मरण करते हुए आज
मैं यहाँ उनका एक बाल नाटक “गोरा बादल” पाठकों के लिए प्रकाशित कर रहा हूं।)
गोरा
बादल
|
(गोरा बादल--चित्र --राजस्थान सरकार की वेबसाईट से साभार) |
( भारत अभिमन्यु और
बादल जैसे वीर बच्चों का देश है।इन बच्चों ने केवल सोलह साल की अवस्था में जो साहस
दिखाया उससे उनका नाम इतिहास में अमर हो गया।अभिमन्यु ने चक्रव्यूह में कर्ण और
दुःशासन जैसे महारथियों के छक्के छुड़ाये थे, तो बादल ने मुगल बादशाह अलाउद्दीन तक के दाँत खट्टे कर
दिये।लीजिए, प्रस्तुत है उसी
बादल के जीवन की एक कभी न भूलने वाली झांकी – “गोरा बादल”)
( पात्र )
गोरा--वृद्ध राजपूत सरदार
बादल--गोरा का सोलह साल का वीर बालक
पद्मिनी--चित्तौड़ के राजा रत्नसेन की रानी
ढिंढोरची-एक
ढिंढोरची-दो
नाट्य निर्देशक
(दृश्य-1)
(मंच से पर्दा हटता है।मंच के दोनों ओर से दो ढिंढोरची
नगाड़े बजाते हुए आते हैं।मंच के बीच में रुक जाते हैं।और एक दूसरे को घूर कर देखते
हैं।)
ढिंढोरची एक—तू यहाँ क्या कर रहा भाई ?
ढिंढोरची दो-(मुस्कुराकर)—और यही बात मैं तुमसे पूछूं तो?
ढिंढोरची एक—मैं तो यहाँ अपनी ड्यूटी निभा रहा।गोरा बादल की
कहानी सुनाने आया हूँ।पर तू
यहाँ क्या कर रिया?
ढिंढोरची दो- अबे मुझसे तू तड़ाक करके तो बात करना नहीं
-----।
ढिंढोरची एक—नहीं तो क्या करेगा आयं?
(दोनों आगे बढ़
कर एक दुसरे का कालर पकड़ते हैं इसी बीच नाटक का निर्देशक वहाँ आता है।दोनों को अलग
करता है।)
नाट्य निर्देशक—क्यूँ लड़ रहे भाई तुम लोग ?अभी नाटक शुरू
नहीं हुआ और लगे लड़ने?
ढिंढोरची एक—भैया नाटक के शोरुँत की उदघोषणा तो आपने मुझे
करने को कहा था।
ढिंढोरची दो—नहीं नहीं मुझे कहा था ।
नाट्य निर्देशक—(समझाकर)देखो तुम लड़ कर टाइम न बर्बाद करो।ऐसा
करो दोनों एक एक वाक्य
बोल कर गोरा बादल कहानी समझाओ।
(नाटक निर्देशक मंच से वापस जाता है।दोनों ढिंढोरची एक बार फिर नगाड़ा बजाते
हैं।)
ढिंढोरची एक--चित्तौड़गढ़ के राजा रत्नसेन की रानी पद्मिनी
अत्यन्त रूपवती थी।
ढिंढोरची दो--दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन ने उसकी सुन्दरता
की चर्चा सुनी तो राजा रत्नसेन को पत्र लिखा –- “पद्मिनी को तुरन्त मेरे पास भेजो, बदले में जितना
राज्य चाहो ले लो।”पर राजा ने इसे नहीं स्वीकार किया।
ढिंढोरची एक--तब अलाउद्दीन ने चित्तौड़गढ़ को घेर लिया।आठ
साल तक घोर युद्ध हुआ लेकिन गढ़ अलाउद्दीन के हाथ न आया।
ढिंढोरची दो—अंत में अलाउद्दीन ने एक कपट की चाल चली।राजा
रत्नसेन के पास सुलह का सन्देश भेजा।
ढिंढोरची एक--राजा के विश्वास पात्र वृद्ध सरदार गोरा और
उसके सोलह साल के लड़के बादल ने राजा को इस कपट चाल में न फँसने के लिए
समझाया किन्तु राजा रत्नसेन नहीं माना।
ढिंढोरची दो—नतीजा यह हुआ कि दोनों सरदार रूठ गये और अलाउद्दीन
राजा को अपनी चाल में फँसा कैद कर दिल्ली ले गया।
ढिंढोरची एक--पूरे चित्तौड़गढ़ में हाहाकार मच गया।पद्मिनी
ने गोरा और बादल से सहायता के लिए
प्रार्थना की।
(दृश्य-2)
स्थान- गोरा का मकान।
( चिन्तामग्न गोरा आसन पर बैठा दिखाई पड़ता है।उसका
मुख गंभीर है तथा आँखें धरती पर झुकी हुई हैं।बादल आवेश की दशा में टहल रहा है।दोनों
राजपूत सैनिक वेश में हैं । )
बादल--पिता जी, अब चित्तौड़ की
सहायता करना हमारे लिए संभव नहीं है।जब दिल्ली के बादशाह ने राजा को निमंत्रण दिया हम लोगों ने
कितना विरोध किया।लेकिन राजा ने हमें मूर्ख समझा।फिर आज वह दिल्ली के जेलखाने
में सड़े, चित्तौड़ गढ़ शत्रुओं के हाथ में पड़ जाय, हमें किसी बात का
दुःख नहीं करना चाहिए।
गोरा--(खड़ा होकर) बेटा, तुम्हारे वचन एक
वीर सिपाही के योग्य नहीं हैं।जब देश पर संकट आता है, राजा विपत्ति में
फँस जाता है तो वीर राजपूत आपस का बैर-भाव नहीं याद रखते।
बादल--अपना देश और अपना राजा कैसा पिता जी ? अपना राजा तो उसी
दिन पराया हो गया जिस दिन उसने हमें अपमानित कर राजसभा से
निकाल दिया ।
गोरा--मगर अपना देश नहीं पराया हुआ बादल।वह आज भी अपना है
और हमेशा अपना ही रहेगा।जिस देश की मिट्टी से यह शरीर बना है, जिस धरती की हवा
और पानी से इस शरीर में जीवन पनपा है आज उस पर संकट के बादल
छाये हुए हैं बेटा !
बादल--लेकिन पिता जी-------।
गोरा--(बात काट कर) बस अब मैं कुछ और नहीं सुनना चाहता। तुम
गोरा की संतान हो।वही गोरा - जिसने राजा रत्नसेन का नमक खाया
है, जिसने सैकड़ों बार बार दुश्मनों के छक्के छुड़ाये हैं, जिसके दादा-बाबा ने जन्मभूमि मेवाड़ की बलिवेदी पर अपने शीश चढ़ाये हैं।क्या
तुम मेरे नाम को कलंकित करोगे? रानी पद्मिनी ने हम से सहायता की पुकार की है।वे हमारी माता के समान हैं| क्या तुम्हारा
हृदय अपनी माँ को अपमानित और दुःखी देख
कर भी चुप रहेगा ?
बादल--(उत्तेजित होकर)अब और न कहिये पिता जी।कल आप मुझे
दिल्ली के रास्ते पर देखेंगे ।
गोरा--सुनो,बादशाह ने चाल चल
कर हमें धोखा दिया है।उसी प्रकार हमें भी उससे चाल चलनी चाहिए।तभी हमें सफलता मिलेगी ।
बादल-- आपकी सूझ अनोखी होती है पिता जी, हम अवश्य विजयी
होंगे।
गोरा--बादशाह ने रानी पद्मिनी का डोला माँगा है, वह हम उसे देंगे।
बादल--(चौंक कर) आप डोला भेजेंगे ?
गोरा--(हँस कर) हां बादल, मगर उसमें रानी
जी की जगह औजारों के साथ एक लुहार रहेगा।रानी को पहुँचाने के लिए सोलह सौ दासियों की
पालकियां भी साथ जायेंगी।उनमें दासियों की जगह
हमारे चुने हुए वीर होंगे।पालकी ढोने वाले कहार भी राजपूत सरदार रहेंगे।
बादल--पिता जी, क्या आप यह कहना
चाहते हैं कि लोहार वहां राजा की हथकड़ी बेड़ी काट देगा और हम अपने राजा को सुरक्षित वापस छुड़ा
लायेंगे ?
गोरा--हां, उसके लिए हमें अपने प्राण हथेली पर लेकर चलना
होगा।बादल, चलो जल्दी करो !
(दोनों का तीव्रगति से प्रस्थान )
दृश्य—3
स्थान-- दिल्ली से चित्तौड़ का रास्ता।
(घायल
गोरा का बादल के साथ प्रवेश)
गोरा--बादल, राजा को हमने छुड़ा तो लिया किन्तु उन्हें सकुशल
चित्तौड़ भी पहुँचाना है।बादशाह हमारा पीछा कर रहा है।मैं उसका रास्ता
रोकता हूँ, तुम जल्दी-से-जल्दी राजा को लेकर चित्तौड़ पहुँचने की कोशिश करो।
बादल-– पिता जी, आप मुट्ठी भर
सिपाहियों के साथ कैसे इतनी बड़ी सेना का सामना करेंगे ?
गोरा--तुम इसकी चिन्ता मत करो बादल।अकेले राजपूत की तलवार
हजारों मुगलों को मौत के घाट उतार
सकती है।फिर मेरे साथ तो चुने हुए सरदार हैं।शरीर में एक भी बूंद खून रहते अलाउद्दीन आगे नहीं बढ़ सकेगा।
बादल-– पिता जी, आप राजा को लेकर चित्तौड़
जाँय, बादशाह को मैं रोकता हूँ।
( सहसा बिलकुल निकट
सेना का कोलाहल सुनाई पड़ता है)
गोरा--यह बहस का समय नहीं है बेटा।दुश्मन सिर पर आ पहुँचे, तुम जल्दी से निकल
जाओ।
बादल-- पिता जी मेरे रहते आप---------।
गोरा--(बादल का हाथ पकड़ कर) जल्दी जाओ।मैं बचा रहा तो चित्तौड़
आकर मिलूंगा नहीं तो स्वर्ग से आशीर्वाद दूंगा।
( बादल का प्रस्थान|सेना का कोलाहल
तेज होता है।परदा गिरता है।)
दृश्य-4
स्थान-- चित्तौड़ गढ़ का भीतरी भाग।
(रानी पद्मिनी और बादल दिखाई पड़ते हैं।रानी के मुख पर घोर
दुःख की रेखाएँ खिची हुई हैं।)
बादल--रानी जी, मेरे पिता बादशाह
को रास्ते में रोकने की कोशिश में वीरगति को प्राप्त हुए।राजा जी कुम्भल्मेर
की लड़ाई में स्वर्गवासी बने।अब चित्तौडगढ़ और आपकी रक्षा का भार मेरे कंधे पर है ।
पद्मिनी--बेटा बादल, तुम्हारी वीरता
स्वर्णाक्षरों में लिखी जायेगी।हजारों साल तक इस देश के बच्चे तुम्हारी
देशभक्ति की कहानी सुनेंगे।और तुम्हारी ही तरह वीर बनेंगे अब तुम मेरे लिए जौहर का प्रबन्ध करो।मैं राजा का शव
साथ लेकर आग में जलूंगी।
बादल-- रानी जी,आप ऐसा न करें।अब
आप ही चित्तौड़गढ़ की रानी हैं।हम सब आप के साये में रह कर
बादशाह की सेना से युद्ध करेंगे।
पद्मिनी--नहीं बादल बादशाह मेरे रूप का लोभी है।वह किले को
जीत कर मुझे पाने की कोशिश कर रहा
है।वह इसमें सफल हो गया तो मेरा सतीत्व नष्ट हो जायेगा।मैं चाहती हूँ कि वह चित्तौड़गढ़ में प्रवेश करे तो उसे
केवल मेरे शरीर की भस्म मिले।
बादल-- मगर रानी जो आप-------।
पद्मिनी--(हँस कर) तुम कहना चाहते होगे कि मैं जीवित ही आग
में कैसे जल सकूँगी? बादल,आज संसार
देखेगा कि इस देश की नारी फूल की तरह कोमल है तो संकट पड़ने पर वह पत्थर की तरह कठोर भी हो सकती है।मेरे साथ इस
गढ़ की सभी नारियाँ जौहर करेंगी।एक बड़ी चिता लगवा दो।
बादल-- (काँप कर) रानी जी, एक बार फिर सोच
लें ।
पद्मिनी--मैं सौ बार सोच चुकी हूँ।तुम अपने कर्तव्य का
पालन करो।
बादल-- (आवेश में)तब फिर रानी जी, मेरा निश्चय भी
सुन लें।आप उधर जौहर करेंगी, हम इधर केसरिया बाना पहन सिर पर कफन बाँध कर मुगल
सेना पर टूट पड़ेंगे।मैं राजा को और पिता जी को स्वर्ग से झाँकता देख रहा हूँ
वे हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं।
पद्मिनी--(प्रसन्न कंठ से) आज राजपूतों की धरती धन्य हो गई, बादल !
बादल--(अपनी तलवार सामने कर के) रानी जी इस तलवार को छूकर
आप मुझे आशीर्वाद दें--शत्रु का घाव मेरी पीठ पर नहीं, छाती पर हो।
(पद्मिनी तलवार
लेकर उसकी धार से अपनी एक अँगुली चीरती हैं और उसके रक्त से बादल के माथे पर टीका
लगाती हैं।)
पद्मिनी— जाओ, इस तिलक की लाली कभी
फीकी न पड़े तुम्हें यश मिले।तुम्हारी कीर्ति युग-युग तक अमर
रहे।
(बादल सिर
झुकाता है।रानी उसके सिर पर हाथ रखती हैं।इसे के साथ पर्दा गिरता है
)
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लेखक-प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव
11 मार्च, 1929 को जौनपुर के खरौना
गांव में जन्म।31 जुलाई 2016 को
लखनऊ में आकस्मि
निधन।शुरुआती पढ़ाई जौनपुर में करने
के बाद बनारस युनिवर्सिटी से हिन्दी साहित्य में एम0ए0।उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग में विभिन्न पदों पर सरकारी
नौकरी।देश की प्रमुख स्थापित पत्र पत्रिकाओं सरस्वती,कल्पना, प्रसाद,ज्ञानोदय, साप्ताहिक हिन्दुस्तान,धर्मयुग,कहानी, नई कहानी, विशाल भारत,आदि में कहानियों,नाटकों,लेखों,तथा रेडियो नाटकों, रूपकों के अलावा प्रचुर मात्रा में
बाल साहित्य का प्रकाशन।
आकाशवाणी के इलाहाबाद केन्द्र से नियमित नाटकों
एवं कहानियों का प्रसारण।बाल कहानियों, नाटकों,लेखों की अब तक पचास से अधिक पुस्तकें प्रकाशित।“वतन है हिन्दोस्तां हमारा”(भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत)“अरुण यह मधुमय देश हमारा”“यह धरती है बलिदान की”“जिस देश में हमने जन्म लिया”“मेरा देश जागे”“अमर
बलिदान”“मदारी का खेल”“मंदिर
का कलश”“हम सेवक आपके”“आंखों
का तारा”आदि
बाल साहित्य की प्रमुख पुस्तकें।इसके साथ ही शिक्षा विभाग के लिये निर्मित लगभग
तीन सौ से अधिक वृत्त चित्रों का लेखन कार्य।1950
के आस पास शुरू हुआ लेखन एवम सृजन का यह सफ़र
मृत्यु पर्यंत जारी
रहा। 2012में नेशनल बुक ट्रस्ट,इंडिया से बाल उपन्यास“मौत के चंगुल में” तथा 2018
में बाल नाटकों का संग्रह एक तमाशा ऐसा भी” प्रकाशित।