जाड़ा
जाड़ा ताल ठोंक
जब बोला,
सूरज का सिंहासन
डोला,
कुहरे ने जब
पांव पसारा,
रास्ता भूला चांद बिचारा।
छिपे सितारे
ओढ़ रजाई,
आसमान नहिं
दिखता भाई,
पेड़ और पौधे
सिकुड़े सहमे,
झील में किसने
बरफ़ जमाई।
पर्वत धरती
सोये ऐसे,
किसी ने उनको
भंग पिलाई,
सुबह हुयी सब
जागें कैसे,
मुर्गे ने तब
बांग लगाई।
जाड़ा ताल ठोंक
जब बोला,
सूरज का सिंहासन
डोला॥
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हेमन्त कुमार
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