बड़े
सबेरे मेरे आंगन
एक
गिलहरी आती
किट
किट कुट कुट
किट
किट कुट कुट
अपने
दांत बजाती।
उसी
समय सारी गौरैया
चूं
चूं करती आती
नहीं
दिया क्यूं दाना पानी
फ़ुदक
फ़ुदक सब गातीं।
झुंड
कई चिड़ियों का भी
अपने
संग वो लातीं
ढकले
में पानी पड़ते ही
सब
मिल खूब नहाती।
चावल
के दाने मिलते ही
बड़े
प्रेम से खातीं
शाम
को फ़िर आयेंगे हम सब
कह
कर के उड़ जातीं।
0000
डा0हेमन्त कुमार
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (29-10-2013) "(इन मुखोटों की सच्चाई तुम क्या जानो ..." (मंगलवारीय चर्चा--1413) में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट सपना और मैं (नायिका )
सुंदर व सरल ।
जवाब देंहटाएंएक अच्छी कविता ’एक गिलहरी’ के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
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