सलमा रोज सुबह उठती।तैयार होकर
स्कूल जाती।दोपहर में लौटती और खाना खाकर सो जाती। लेकिन शाम होते ही सलमा के सारे
दोस्त आ जाते। राजू,दीनू,शीला पारो और मैकू। फ़िर शुरू हो जाती उनकी धमाचौकड़ी। सारे
बच्चे खूब खेलते।
गर्मी आई तो सबके स्कूल बंद हो
गये। सारे बच्चे परेशान क्या करें। दिन भर घर में बंद रहते। लू और गरम हवा के डर
से उनके अम्मा बापू उन्हें घर के बाहर नहीं जाने देते। उन्हें केवल शाम को खेलने
का मौका मिलता।
एक दिन सलमा की खाला आ गईं। खाला
अपने गांव के ही स्कूल में पढ़ाती थीं।बच्चों के मजे हो गये। बच्चे सारा दिन खाला को
घेरे रहते। कोई कहानी सुनाने को कहता कोई गीत। किसी को भूतों वाली कहानी पसंद थी
तो किसी को शेर और जंगल की। खाला सबकी पसंद का ध्यान रखतीं। आठ दस दिनों तक बच्चों
ने खूब मजा किया। उन्हें रोज खाला जान से नई-नई कहानियां सुनने को मिलतीं।
खाला सलमा और उसके दोस्तों को
नुमाइश दिखाने भी ले गईं। वहां किसी ने खिलौने लिये किसी ने मिठाई। पर सलमा ने ली
कहानियों की किताबें।
खाला ने हंसकर पूछा, “तू किताबों का क्या करेगी?”
सलमा बोली, “जब आप चली जायेंगी
तो पढ़ा करूंगी।” खाला हंस पड़ीं।
कुछ ही दिनों के बाद खाला जान
अपने गांव वापस लौट गईं। सलमा और उसके दोस्त फ़िर परेशान। अब क्या करें?कैसे
बितायें छुट्टियां?
राजू ने कहा, “चलो सब मिल कर खेलते हैं।”
“वो तो हम रोज ही
खेलते हैं----” पारो ने मुंह
बिचका कर कहा। मैकू ने सलाह दी कि स्कूल का पाठ याद करें।
“हुंह---गर्मी की
छुट्टियां खेलने के लिये होती हैं कि पाठ याद करने के लिये।”शीला नाराज होकर बोली।
अचानक सलमा को नुमाइश में खरीदी
किताबें याद आईं।
“सुनो सुनो---मैं
बताती हूं। नुमाइश में खाला
जान ने कहानी की जो किताबें खरीदी थीं वो सब मेरे पास रखी हैं।” सलमा चहक कर बोली।
“तो उन्हें हम क्या
करेंगे?” मैकू ने पूछा।
“हममें से एक बच्चा
कहानी पढ़ेगा ----बाकी सब सुनेंगे।”सलमा बोली। सबको यह सलाह अच्छी लगी। इसके बाद सारे बच्चे
अपने अपने घर चले गये।
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डा0हेमन्त कुमार
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 12-06-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1641 में दिया गया है
जवाब देंहटाएंआभार
एक बहुत अच्छी और बाल गोपालों के लिए प्रेरणास्पद कहानी। बधाई हेमंत जी।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कहानी |
जवाब देंहटाएंसही है... किताबों को मित्र बनाना अच्छा है...
जवाब देंहटाएंमुझे उन छात्रावासीय पाठशालाओं की सोच पर क्रोध आता है,जहां जीवों पर हिंसा करते हुवे मांस -आहार परोसकर फिर बच्चों को अहिंसा का पाठ पढ़ाया जाता है.....
जवाब देंहटाएंअतिसुन्दर...खूबसूरत सन्देश...
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