एक गांव के किनारे खेते में ढेर सारे चूहे
रहते थे।उनका सरदार था टिंकू।टिंकू उन चूहों में सबसे समझदार और बूढ़ा था।इसीलिये
सारे चूहे उसकी बात मानते थे।किसी को कहीं भी जाना होता तो सबसे पहले वह टिंकू से
पूछ लेता तभी जाता था।उसी खेत में एक छोटा चूहा पिंकू भी रहता था।
पिंकू छोटा था पर था बहुत नटखट।वो बहुत घुमक्कड़ भी था।जब सारे चूहे खाना खा
कर आराम करते तो पिंकू खेत से थोड़ी दूर बनी रेलवे लाइन के पास चला जाता और वहां
बैठ कर आती जाती रेलगाड़ियों को देखता रहता।रेल गाड़ियों को देखकर पिंकू सोचता कि
कितना अच्छा होता अगर वह भी कभी इन रेलगाड़ियों पर घूम पाता।ये सोच कर वह खुश होता
कि रेलगाड़ी पर कभी वह बैठेगा तो कितना मजा आयेगा।
एक दिन टिंकू कुछ बूढ़े चूहों के साथ बैठा
बातें कर रहा था।उसी समय पिंकू वहां पहुंचा।पिंकू को देखकर टिंकू ने पूछा,
“बोलो
पिंकू बेटा
कहां की है तैयारी
सज धज कर क्यों निकले
जाती कहां सवारी?”
टिंकू की बात सुनकर पिंकू शर्मा गया।वह
शर्माता हुआ बोला,
“टिंकू
दादा टिंकू दादा
ना मैं सज धज के निकला
ना ही कहीं की है तैयारी,
मैं तो आया पास तुम्हारे
सुनने को बस बातें न्यारी।
पर एक बात आई है मेरे
कहें तो पूछूं आपसे?”
पिंकू की बात सुनकर सभी बूढ़े चूहे हंस
पड़े।इससे पिंकू और शर्मा गया।फ़िर टिंकू ने उससे कहा,
“पूछो
बेटा पिंकू पूछो
एक नहीं दस बातें पूछो
इस छोटी सी बात से बेटा
तुम हो क्यों शर्माते?”
टिंकू की बात सुनकर पिंकू के
अंदर थोड़ी हिम्मत आयी।फ़िर भी उसने डरते डरते ही पूछा,“टिंकू दादा—ये खेत के किनारे
पटरी पर रेलगाड़ी दौड़ती है।क्या हम लोग भी उस पर कभी नहीं बैठ सकते?”
पिंकू की बात सुन कर टिंकू कुछ
देर तो चुप रहा फ़िर उसने पिंकू को समझाया,“देखो पिंकू बेटा,रेलगाड़ी आदमियों के
बैठने की सवारी है।वह बहुत तेज चलती है।अगर हम चूहे उस पर बैठेंगे तो गिर
पड़ेंगे।इसी लिये बेटा तुम रेलगाड़ी पर बैठना तो दूर उसके नजदीक भी कभी मत जाना।नहीं
तो भारी मुसीबत में पड़ जाओगे।”
लेकिन पिंकू भला कहां बात मानने वाला था टिंकू की।उसे करनी तो अपने मन की थी।वह
एक दिन चुपके से चल पड़ा रेलगाड़ी मैं बैठने के लिये।पिंकू रेल लाइन के एकदम किनारे
दुबक कर बैठ गया।उसने सोचा कि कोई रेलगाड़ी आएगी तो वह भी झण्डी की तरह अपनी पूंछ
हिलाकर उसे रोक देगा।
उसे वहां बैठे बहुत देर हो गयी।काफ़ी देर बाद उसे एक रेलगाड़ी आती दिखाई
पड़ी।पिंकू ने रेलगाड़ी देखते ही अपनी पूंछ को जोर जोर से हिलाना शुरू कर दिया।पर
गाड़ी रुकनी तो दूर धीमी भी नहीं हुयी।जब गाड़ी काफ़ी नजदीक आ गयी तो पिंकू डरा कि
रेलगाड़ी कहीं उसके ऊपर ही न चढ़ जाए।वह तुरन्त ही कूदकर रेलवे लाईन के किनारे ही एक
कोने में दुबक गया।गाड़ी धड़-धड़ धड़-धड़ करती खूब शोर मचाती हुयी लाइन पर से चली गयी।
“ “बाप रे—जब बाहर से रेलगाड़ी की इतनी तेज आवाज
सुनायी दे रही है तो भीतर तो पता नहीं क्या हाल होगा?मैं तो नहीं बैठूंगा इस भूत
जैसी गाड़ी पर।”” पिंकू ने मन ही मन सोचा।बस पिंकू तेजी के
साथ उछलता कूदता गिरता पड़ता हुआ खेतों की तरफ़ भाग निकला।और अपने दूसरे नन्हें चूहे
दोस्तों के पास पहुंच कर खेलने लगा।
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डा0हेमन्त कुमार
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