मंगलवार, 10 मार्च 2020

बाल कहानी--गुड़िया का उपहार


आज प्रतिष्ठित कहानीकार,रेडियो नाट्य लेखक,बाल साहित्यकार, मेरे पिताजी आदरणीय श्री प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव जी का 91वां जन्म दिवस है।उन्होंने प्रचुर मात्रा में बाल साहित्य,रेडियो नाटकों के साथ ही साहित्य की मुख्यधारा में बड़ों के लिए भी 300 से ज्यादा कहानियां लिखी हैं जो अपने समय की प्रतिष्ठित पात्र-पत्रिकाओं—सरस्वती,कल्पना,ज्ञानोदय, कहानी,नई कहानी,प्रसाद आदि में प्रकाशित हुयी थीं।पिता जी को स्मरण करते हुए आज मैं यहाँ उनकी एक बाल कहानी “गुडिया का उपहार”कहानी बाल पाठकों के लिए प्रकाशित कर रहा हूं।       


गुड़िया का उपहार
          प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव

          नाम तो था उसका गौरी।लेकिन मां पापा कभी कभी प्यार से उसे गुड़िया भी बुला बैठते।धीरे धीरे उसका यही नाम अधिक चलन में आ गया।
          गुड़िया हमेशा अपनी कक्षा में प्रथम आती।उसकी उम्र थी केवल दस बारह साल।मगर भगवान ने उसे बुद्धि के साथ गजब की सुन्दरता भी प्रदान की थी।उसकी इन बातों की चर्चा गांव के बाहर तक फ़ैल चुकी थी।मां पापा को भी गर्व थाभगवान चाहेगा तो गुड़िया की शादी किसी अच्छे घर में होगी।
       लेकिन गुड़िया को सपने में भी नहीं विश्वास था कि उसकी आगे पढ़ने की इच्छाएं बीच में ही उसका साथ छोड़ने लगेंगी।अपनी पढ़ाई के बल पर वह इंजीनियर, डाक्टर या कोई अफ़सर बनकर अपने मां पापा का नाम रोशन करेगी।ब्याह भी करेगी लेकिन उसका सही वक्त आने पर।एक दस बारह साल की लड़की इतना तो सोच ही सकती थी।
      उस दिन वह कुछ पूछने मां के पास जा रही थी।अचानक उसके कानों में अपनी मां और पापा के कुछ बातें करने की भनक पड़ी।बात ही कुछ ऐसी थी कि गुड़िया के पांव अपनी जगह ठिठक गये।
    मां पापा से कह रही थी—“पड़ोस के एक बड़े परिवार से गुड़िया के विवाह का प्रस्ताव आया है।वो पढ़ाई से ज्यादा उसकी सुन्दरता पर मुग्ध हैं।
    पर गौरी की मां,इतनी कच्ची उम्र में तुमने उसकी शादी की बात सोची भी कैसे?गुड़िया जैसी तेज लड़की की पढ़ाई का क्या होगा?उसके सामने एक सुन्दर भविष्य है।वह इसका विरोध भी तो कर सकती है।पापा बोले।
    देखो जी,लड़कियों की पढ़ाई से ज्यादा उसका रूप गुण होता है।हमारी सीधी सादी गुड़िया।उसमें विरोध करने का साहस क्या आएगा।सोच लो,फ़िर इतने बड़े परिवार से आगे रिश्ता मिले,ना मिले।मां बोली।
    यह सब ठीक है।पर तुम्हारी बात मेरे गले से नीचे नहीं उतर रही है।मुझे सोचने का मौका दो।मैं तो उसके एक खूब सुखद भविष्य का सपना लिये बैठा हूं।
    तुम्हारी तो यह पुरानी आदत है।हर अच्छी बात के लिये तुम्हें सोचने का मौका चाहिये।सोचते रहो।कह कर झल्लाते हुए मां उठ खड़ी हुई।गुड़िया भी जल्दी से दूसरी ओर खिसक गयी।
      गुड़िया के मन में उथल पुथल मच गई।अगर उसके पापा भी मां की बात मान गये तो क्या होगा उसके कल का।अन्त में उसके मन में एक विचार अया।
        वह सीधे मां के पास जाकर बोली-“मां,हर मां बाप अपने बच्चों के लिये अच्छा ही सोचते हैं।
          मां प्रसन्नता से बोली- तू सच कह रही है गुड़िया।मेरी बिटिया रानी कितना अच्छा सोचती है।
          तब मां तुम भी मेरी एक बात मान लो।दो साल बाद ही तो मैं हाई स्कूल कर लूंगी।इसके लिये तुम बस दो साल का समय मांग लो वो जरूर मान जायेंगे।
   मां को भी गुड़िया की बात सही लगी।वह कम से कम हाई स्कूल तो कर ही ले।बाद में कहां पढ़ाई होती है।और इस तरह उन्होंने गुड़िया की बात मान ली।
  गुड़िया मां से लिपट गई।यही तो वह चाहती थी।दो साल बहुत होते हैं।वह अवश्य इस बीच कोई योजना बना लेगी।
  गुड़िया पूरी लगन और मेहनत से पढ़ाई में जुट गयी।टीचरों से भी उसे भरपूर सहयोग मिलने लगा।हाई स्कूल की परिक्षा भी गुड़िया ने बड़े उत्साह से दी।
  कुछ ही समय बाद हाई स्कूल परीक्षा का परिणाम निकला।गुड़िया बोर्ड की परिक्षा   
की मेरिट लिस्ट में थी।वह भी अच्छे रैंक से।मां पापा फ़ूले नहीं समाये।
    पापा ने मुस्कराते हुये मां से पूछा--अब गुड़िया की आगे की पढ़ाई के बारे में क्या सोचती हो?
  यह सब देख मां का मन भी बदल रहा था।अब वह भी ऐसी होनहार गुड़िया के साथ अन्याय नहीं करना चाहती थी।मगर वो चिंता से बोली- गुड़िया की आगे की सारी पढ़ाई तो शहर में होगी।हम उसका खर्च कैसे उठा पायेंगे।
       इसी सोच विचार में दो तीन दिन बीत गये।तीसरे दिन गुड़िया के स्कूल का चपरासी एक लिफ़ाफ़ा ले कर आया।पापा ने उसे खोलकर पत्र पढ़ा।वह शहर के सबसे बड़े कालेज के प्रिंसिपल का था।उन्होंने गौरी को लिखा था-गौरी तुम हमारे कालेज में पढ़ना चाहोगी तो तुम्हारा स्वागत है।हमारे यहां डिग्री क्लास तक पढ़ाई होती है। हास्टल भी है।हास्टल में रहने खाने और कालेज की पढ़ाई का पूरा खर्च हम उठाएंगे।
मां और पापा की खुशी का ठिकाना न रहा।लेकिन मां ने शंका जतायी-इतने बड़े शहर में हमारी गुड़िया रहेगी कहां?
  पापा खिलखिला कर हंस पड़े और बोले-तुम रहती किस युग में हो?आजकल तो लड़कियां सेना में भर्ती हो रही हैं।वायु सेना में सारा आकाश छान रही हैं।हास्टल में सैकड़ों लड़कियां उसकी दोस्त होंगी। वह कालेज की हजारों लड़कियों के बीच पढ़ेगी।
    गुड़िया बोली-याद है न।मैंने कहा था—एक दिन मैं तुम लोगों के लिये ऐसा उपहार लेकर आऊंगी कि तुम्हें अपनी आंखों पर विश्वास नहीं होगा।
और पापा गुड़िया का दाखिला उसी कालेज में करा आये।
   गुड़िया ने वहां भी अपने टैलेण्ट का जलवा बिखेरना शुरू कर दिया।जिसकी भी जबान पर देखो बस गुड़िया का नाम।उसने यहां भी इण्टर सम्मान के साथ पास किया।तब एक दिन प्रिंसपल ने गुड़िया को बुला कर पूछा-आगे के लिये तुम्हारा क्या विचार है?
  गुड़िया तुरन्त बोली-मैडम मैं तो पुलिस या सेना की नौकरी में जाना पसंद करूंगी।देश और समाज की सुरक्षा वाला कोई जाब।मगर मेरी मां के कानों तक यह बात न पहुंचे। नहीं तो वो मुझे इसकी इजाजत कभी भी नहीं देंगी।पापा का मुझे कोई डर नहीं है।
     प्रिंसिपल के मुंह से फ़ौरन निकला- शाबाश गुड़िया मैं तुम्हारे फ़ैसले से बहुत खुश हूं लेकिन उसके लिये  पहले तुम बी00 कर लो।
जहां चाह वहां राह।गुड़िया बी00 के बाद ही पुलिस अधिकारी की ट्रेनिंग के लिये चुन ली गई।
   एक दिन पुलिस की एक जीप गुड़िया के दरवाजे पर आकर रुकी।पूरे गांव में खबर फ़ैलते देर नहीं लगी।मास्टर जी,गुड़िया के पापा के दरवाजे पर पुलिस--मगर क्यों?सारा गांव देखने के लिये उमड़ पड़ा।तभी गुड़िया की मां घबरायी हुयी बाहर निकली।पापा तो सब जानते थे तभी मुस्करा रहे थे।
        मां बोली-तुम्हें मुस्कराने की सूझ रही है।पुलिस की गाड़ी देख कर मेरी तो जान सूखी जा रही है।
   तभी पुलिस अधिकारी की चमचमाती हुयी वर्दी में एक महिला जीप से नीचे उतरी।जब उसने आगे बढ़ कर उनके पांव छुए तब उन्होंने पहचाना—अरे यह तो अपनी गुड़िया है।उन्होंने उसे गले से लगा लिया।
गुड़िया बोली— मां मैंने तुमसे वादा किया था न कि तुम लोगों के लिये एक सुन्दर सा उपहार लेकर आऊंगी।क्यों पसन्द आया? 
   मां और पापा के ही नहीं पूरे गांव की आंखों में प्रसन्नता के आंसू आ गये।सभी को गर्व था—उनकी बेटी ने वह कर दिखाया जो अभी तक गांव की किसी बेटी ने नहीं किया।
  तभी गुड़िया  लौटने को हुयी और मां से बोली— अभी मैं ट्रेनिंग में हूं मां।कहीं भी ज्वाइन करने से पहले तुम लोगों के पास रहने आऊंगी।अभी तो मुझे यह सरप्राइज उपहार देना था।
    धूल उड़ाती जीप निकल गयी तब मां को एहसास हुआ—भगवान ने उन्हें अपनी गुड़िया के साथ अन्याय करने से बचा लिया।शायद यही उपहार पाने के लिये।
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लेखक-प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव
11 मार्च, 1929 को जौनपुर के खरौना गांव में जन्म। 31 जुलाई 2016  को लखनऊ में आकस्मि निधन।शुरुआती पढ़ाई जौनपुर में करने के बाद बनारस युनिवर्सिटी से हिन्दी साहित्य में एम00।उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग में विभिन्न पदों पर सरकारी नौकरी।देश की प्रमुख स्थापित पत्र पत्रिकाओं सरस्वती,कल्पना, प्रसाद,ज्ञानोदय, साप्ताहिक हिन्दुस्तान,धर्मयुग,कहानी, नई कहानी, विशाल भारत,आदि में कहानियों,नाटकों,लेखों,तथा रेडियो नाटकों, रूपकों के अलावा प्रचुर मात्रा में बाल साहित्य का प्रकाशन।
     आकाशवाणी के इलाहाबाद केन्द्र से नियमित नाटकों एवं कहानियों का प्रसारण।बाल कहानियों, नाटकों,लेखों की अब तक पचास से अधिक पुस्तकें प्रकाशित।2012में नेशनल बुक ट्रस्ट,इंडिया से बाल उपन्यासमौत के चंगुल में तथा 2018 में बाल नाटकों का संग्रह एक तमाशा ऐसा भी” प्रकाशित। इसके पूर्व कई प्रतिष्ठित प्रकशन संस्थानों से प्रकाशित वतन है हिन्दोस्तां हमारा(भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत)अरुण यह मधुमय देश हमारा”“यह धरती है बलिदान की”“जिस देश में हमने जन्म लिया”“मेरा देश जागे”“अमर बलिदान”“मदारी का खेल”“मंदिर का कलश”“हम सेवक आपके”“आंखों का ताराआदि बाल साहित्य की प्रमुख पुस्तकें।इलाहाबाद उत्तर प्रदेश के शिक्षा प्रसार विभाग में नौकरी के दौरान ही शिक्षा विभाग के लिये निर्मित लगभग तीन सौ से अधिक वृत्त चित्रों का लेखन कार्य।1950 के आस-पास शुरू हुआ लेखन का यह क्रम जीवन पर्यंत जारी रहा





3 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव जी से परिचय हुआ।
    बहुत अच्छी कहानी है।
    आभार।
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  2. कहानी बड़ी प्रेरणादायक है।
    बाबूजी से पहली मुलाकात 2007 में हुई। जब मै बाबूजी के घर में रहने आया। बाबूजी के असीम स्नेह, पिता तुल्य प्यार ने कभी एहसास ही नहीं होने दिया कि मैं किरायेदार हूं। आज बाबूजी को याद करके आंखें नम हो गईं। बाबूजी नहीं है पर उनके घर में मै आज भी रहता हूं।
    आदर एवं आभार सहित बाबूजी को नमन।

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