इक मुर्गी के दो थे चूजे
दिखने में थे बड़े अजूबे
काली कलगी वाला कालू
छुटके को सब कहते लालू।
घूम घूम अपने दड़बे में
करते थे दोनों हुड़दंग
कभी मुर्ग की पीठ पे कूदें
कभी दौड़ते दोनों संग।
इक दिन बिल्ली मौसी आईं
चूजे देख के वो ललचाई
पहले लालू को ले जाऊं
या फ़िर कालू को मैं खाऊं।
देख के उनको दोनों चीखे
गली के सारे कुत्ते भौंके
मौसी की फ़िर शामत आई
भाग वहां से जान बचाई।
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नित्या शेफ़ाली
कक्षा-11 –c
सेण्ट डोमिनिक सेवियो कालेज
लखनऊ
मज़ेदार कविता
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (19-05-2014) को "मिलेगा सम्मान देख लेना" (चर्चा मंच-1617) पर भी होगी!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
Ati sundar
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना
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