बुधवार, 11 मार्च 2009

होली का हुड़दंग




सुबह सबेरे जंगल में
मचा हुआ था हंगामा
तिरछे मिरछे कूद रहे थे
अपने प्यारे बन्दर मामा।

खीस निपोरे बंदरिया मामी
नीचे बैठी चिल्लाई
सूझा क्या सनकी बन्दर को
जाने किसकी शामत आयी।

हँसे जोर से भालू दादा
बंदरिया की सुनके बात
बात न समझेंगे अब मामा
नहीं होश में अपने आज।

शेर के घर होली की दावत
सबने खूब किया हुड दंग
मामा अब क्यों रहते पीछे
छक कर पी ली भंग।
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कवियत्री:पूनम
झरोखा .ब्लागस्पाट .कॉम
हेमंत कुमार द्वारा प्रकाशित



4 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा लगा. मैं अपने बच्चों को सुनाऊँगा.

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  2. देर से ही सही,
    पर फुलबगिया में अच्छी होली आई!
    रंगों से प्रेरित होकर
    आपने अच्छी कविता बनाई!
    सुंदर-सलोने
    रंगों से फुलबगिया सजाई!
    इसके लिए
    आपको बहुत-बहुत बधाई!

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  4. नीम, आम, धनिया गदराया,

    होली का मौसम है आया।

    बन्दर मामा, भालू दादा,

    सबने जम कर भंग चढ़ाई।

    सूंड उठा कर हाथी ने भी,

    जम कर कीचड़ बरसाई।

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