नन्दू की समझदारी (भाग -४)
(गीतात्मक कहानी)
(गीतात्मक कहानी)
कुछ ही दिनों के बाद तो बच्चों
नन्दू एक तोता घर लाया
नाम दिया उसको मिट्ठू और
सुन्दर पिंजरे में बैठाया।
अब मिट्ठू और मोती के संग
नन्दू खेला करता था
मोती को तो दाल और रोटी
मिट्ठू को मिर्च खिलाता था।
रस्सी पिंजरे में बंध बच्चों
मोती मिट्ठू हुये उदास
खाना पीना छोड़ के दोनों
देखा करते थे आकाश।
मोती और मिट्ठू की हालत
देख के नन्दू हुआ उदास
खुश रक्खूं मैं कैसे इनको
सोचा करता सारी रात।
नन्दू एक तोता घर लाया
नाम दिया उसको मिट्ठू और
सुन्दर पिंजरे में बैठाया।
अब मिट्ठू और मोती के संग
नन्दू खेला करता था
मोती को तो दाल और रोटी
मिट्ठू को मिर्च खिलाता था।
रस्सी पिंजरे में बंध बच्चों
मोती मिट्ठू हुये उदास
खाना पीना छोड़ के दोनों
देखा करते थे आकाश।
मोती और मिट्ठू की हालत
देख के नन्दू हुआ उदास
खुश रक्खूं मैं कैसे इनको
सोचा करता सारी रात।
०००००००
(शेष अगले अंक में )
हेमंत कुमार
बच्चों के लिए सुंदर रचना !!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया.
जवाब देंहटाएंBahut Bahut shukria.
जवाब देंहटाएंaapke jeevan ka uddeshya aur bacchon ki phulbagia behad sarahniya hain.Congs.
आपने इतने सुंदर तरीके से लिखा है की सिर्फ़ बच्चे ही नहीं बल्कि सभी इसे पढ़कर खुश हो जायेंगे! मैं तो अपने बचपन के दिनों को याद कर रही थी! नंदू तो अब मिट्ठू के साथ बहुत खुश है और साथ में मोती भी है!
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