मुख्य पात्र :नट
नटी
कोयल
सोन चिरैया
जंगल का ठेकेदार
शांति(ठेकेदार की बेटी)
तोता,गौरैय्या,बुलबुल,कौवा,बाज,नीलकंठ
और कुछ अन्य पक्षी।
दृश्य-1
(नक्कारे की आवाज के साथ ही खाली
मंच पर एक तरफ़ से नट और दूसरी ओर से नटी नाचते
हुए आते हैं।दोनों बीच में रुक कर इधर उधर देखते हैं।नट पीछे दीवाल की ओर मुंह
करके खड़ा होता है। नटी दर्शकों की ओर।)
नट-अरे आज कोई हमारी
कहानी सुनने नहीं आयेगा?
(नटी अपने माथे पर
दो तीन बार हाथ मारती है फ़िर बीच में बैठ जाती है)
नटी- ओफ़्फ़ोह मै तो
इस सूरदास से परेशान हो गयी हूं।
नट-क्या हुआ?क्यों
चिल्ला रही हो ?
नटी-(गुस्से में)
तुम्हें सामने बैठे लोग नहीं दिख रहे?
(नट उछल कर दर्शकों की तरफ़ मुंह करता
है)
नट-अरे—अरे---।
नटी-क्या अरे-अरे कर
रहे हो?
नट-ओफ़्फ़ोह—मेरा भी दिमाग पता नहीं कहां घूम गया
है।(दर्शकों से)श्रीमान जी आप लोग यहां बैठे हैं और मैंने देखा ही
नहीं।माफ़ी चाहता हूं।(नटी का हाथ पकड़ कर)अच्छा अब बहुत देर हो चुकी है चलो नाटक
शुरू करते हैं।
(संगीत शुरू होते हैइ दोनों मंच पर
थिरकते हैं)
नट-(गाता है)
एक घना जंगल था बच्चो
रहती जहां थी ढेरों चिड़ियां
चीं-चीं चूं-चूं से ही उनकी
फ़ैली वहां थी ढेरों खुशियां।
पर एक जालिम व्यापारी को
भाई नहीं थी उनकी खुशियां
काट-काट सुंदर पेड़ों को
छीन रहा था उनकी खुशियां।
(मंच के एक सिरे पर नट-नटी गाते रहते
हैं।दूसरे सिरे पर जंगल का सेट।दो-तीन मजदूर पेड़ काटते दिखाई पड़ते हैं।पक्षी बने
कुछ बच्चे मंच पर इधर-उधर भागते दिखायी देते हैं।)
नट-
उन सारी चिड़ियों में बच्चों
कोयल बुद्धिमान थी सबसे।
नटी-
बड़े बड़े प्रश्नों को भी वो
हल करती चुटकी में झट से।
नट-
कोयल ने इक दिन जल्दी से
सब चिड़ियों को पास बुलाया।
कटते जाते पेड़ सभी अब
उसने सबको समझाया।
(नट नटी नाचते हुये मंच पर से जाते
हैं।दृश्य फ़ेड आउट होता है)
दृश्य-2
(जंगल का दृश्य। चिड़ियों की सभा।कोयल एक
पेड़ के ऊंचे ठूंठ पर बैठी दिखाई दे रही। उसके एक बगल में
गौरैय्या दूसरी ओर नीलकंठ बैठे हैं।बुलबुल,तोता,मैना,बाज,कौवा,सोन
चिरैया और कुछ पक्षी सामने बैठे हैं।)
कोयल-(कुहू कुहू
करके मीठे स्वरों में)मेरी सभी प्यारी सहेलियों और दोस्तों,मैंने आप सब को आज यहां क्यों बुलाया है ये तो आपको
पता ही होगा।ये जालिम व्यापारी लकड़ियां बेच कर पैसे कमाने के
लिये इस जंगल के सारे पेड़ों को एक-एक कर काटता जा रहा।
मैना-हां बहना,इस
तरह तो वो जंगल के सारे पेड़ काट देगा।
तोता-फ़िर हम लोगों
को खाने के लिये फ़ल कहां से मिलेंगे?
कौवा-(कांव कांव
करके) लो भाई सुन लो इनकी बात। अरे पहले रहने की जगह बचा लो फ़िर फ़लों के बारे में सोचना।
नीलकंठ- हां अगर
सारे पेड़ कट गये तो हम सब रहेंगे कहां?
कबूतर- हमारे
नन्हें-नन्हें बच्चे कहां फ़ुदकेंगे?
पेंडुकी- और तो और
हम अपने अंडे कहां देंगे?
गौरैय्या- कोयल
बहना,बात सिर्फ़ जंगल की नहीं है। आज आदमी तो अपने गांवों,शहरों के भी पेड़ काटता जा रहा। इसी
तरह पेड़ कटते रहे तो एक दिन ऐसा भी आएगा कि हमें घोसला बनाने की भी जगह
नहीं मिलेगी।
कोयल- आप सब ठीक कह
रहे हैं। हमें जंगल के ठेकेदार और उसके आदमियों को पेड़ काटने से रोकना होगा।
मैना-(चिंतित स्वरों
में) पर यह काम होगा कैसे?
कोयल-हां मैना
बहन,यही जानने के लिये ही तो मैंने आप सभी को आज यहां बुलाया है। कि किस तरीके से हम उन्हें रोकें?
(कुछ पल के लिये शान्ति)
कौवा-(गुस्से में)
मैं उन सभी के ऊपर अपने पंजों से हमला कर दूंगा।
कठफ़ोड़वा- मैं अपनी
नुकीली चोंच से मार मार कर उन्हें घायल कर दूंगा।
बाज-(घमण्ड भरे
स्वरों में) अरे दोस्तों तुम सब को ये करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।मैं उनके लिये अकेला काफ़ी हूं।मैं पेड़ काटने
वालों की आंखें नोच कर उन्हें अंधा कर दूंगा।
(कोयल,मैना,तोता एवं अन्य पक्षी उनकी
बात सुनते हैं।कोयल कुछ देर सोचती है)
कोयल-शान्त भाइयों
शान्त—इस तरह क्रोधित होने से
काम नहीं चलेगा।ये मत भूलो कि मनुष्य हमसे ज्यादा चालाक और ताकतवर है।
हम उसे लड़ कर नहीं हरा सकते।
बाज-तो क्या हम हाथ
पर हाथ रखे बैठे रहें?और अपना विनाश देखते रहें?
कोयल-नहीं –मैं यह नहीं कह रही। हमें कोई दूसरा रास्ता
ढूंढ़ना होगा।
कौवा-(व्यंग्य
से)-तो फ़िर तुम्हीं बताओ कोयल रानी।
(कोयल सोचने की मुद्रा में अपने पंजों से सर
खुजलाती है फ़िर अपने पंख फ़ड़फ़ड़ाती है।)
सोन चिरैया-(संकोच
से) मैं कुछ कहूं कोयल बहना?
कोयल-हां हां—बताओ बताओ—तुम हो तो नन्हीं सी पर तुम्हारा दिमाग सबसे तेज है।
सोन चिरैया-(गाती
है)- चीं चीं चीं चीं
चीं चीं चीं चीं
याद करें इतिहास जरा हम
याद करें बापू की माया
गांधी बाबा ने अनशन से
गोरों को था दूर भगाया।
क्यों ना हम भी मिल कर कोई
नई अनोखी राह बनाएं
पेड़ों का कटना भी रोकें
अपने घर जंगल को बचाएं।
कोयल-(सोचते हुए)
बात तो तुम्हारी ठीक है सोन चिरैया।पर हम कौन सा ऐसा रास्ता बनाएं?जिससे व्यापारी की समझ में हम
चिड़ियों के दुख और मुसीबतें आ सकें?
सोन चिरैया-(सोचते
हुये)बहना—मैंने तरीका सोच लिया
है।
कौवा-तो जल्दी बताओ
सोन चिरैया---।
सोन चिरैया-सुनो
साथियों इन मनुष्यों को हमारी बोली—मधुर
स्वर बहुत अच्छी लगती है।अगर हम कुछ समय के लिये चहकना छोड़
कर मौन का व्रत कर लें तो?
कौवा—तो—फ़िर इससे क्या होगा?
कोयल-(खुश होकर)बात
तो तुम्हारी ठीक है।पर इससे मनुष्य पेड़ काटना बंद कर देगा?
तोता-पेड़ काटना बंद
तो नहीं करेगा—हां वो ये सोचेगा
जरूर कि अचानक इन चिड़ियों ने गाना क्यों बंद कर दिया?
कौवा-हो सकता है
उसके मन में हमारी तकलीफ़ों की बात भी आ जाय।
नीलकंठ—मैं भी सोन चिरैया की बातों से सहमत हूं।
कोयल-तो दोस्तों आप
सभी कल से मौन का व्रत रखने को तैयार हैं?
सारे पक्षी-(समवेत
स्वरों में) हां हम सभी तैयार हैं।कल से ही हमारा चहकना बंद।
(सारे पक्षी अपने घोसलों की ओर जाते हैं।
दृश्य-3
(ठेकेदार के घर का
बगीचा।कई चिड़िया पेड़ों पर बैठी हैं पर चुप हैं।कोई चहक नहीं रही।शांति हाथ में
चावल का कटोरा लेकर आती है।पेड़ के नीचे बिखेरती है।पर कोई चिड़िया चावल चुगने
नहीं आती हैं।न ही चहकती है।)
शांति-(अपने आप से बोलती
है)-अरे आज इन चिड़ियों को क्या हो गया?कोई पास नहीं आ रही।कल तक तो चिल्ला चिल्ला कर टूट
पड़ती थीं चावल के दानों पर।कहीं बीमार तो नहीं?
(ठेकेदार का प्रवेश)
ठेकेदार-अरे शांति
तू किससे बातें कर रही?
शांति-(चिंतित
स्वरों में)देखिये न बापू—कोई
चिड़िया दाना नहीं खा रही—न ही
चहक रही।
ठेकेदार-अरे तुझे
खिलाना नहीं आता।ये देख अभी सब खायेंगी भी और चहकेंगी भी।
(ठेकेदार एक मुट्ठी में चावल लेकर चिड़ियों
की तरफ़ उछालता है।पर कोई चिड़िया पेड़ से नहीं उतरती।ठेकेदार उनकी तरफ़
आश्चर्य से देखता है।)
ठेकेदार-अरे क्या हो
गया इन सभी को अचानक?कोई आवाज भी नहीं कर रहीं।कहीं बीमार तो नहीं हो गयीं?
(अचानक ठेकेदार के सामने पहले एक गौरैया
फ़िर दूसरी कैइ चिड़िया आकर बैठ जाती हैं।ठेकेदार
जमीन पर बैठ कर उनकी तरफ़ ध्यान से देखता है।सबकी आंखों में आंसू।सब सर नीचा किये
हैं।शान्ति भी बैठ जाती है।)
शांति-(दुख भरे
स्वरों में) अरे बापू ये तो रो रही हैं।---सब की सब---।
ठेकेदार-(परेशान
स्वर में) पर इन्हें हुआ क्या है?
(गौरैया और दूसरी चिड़िया सर उठाती हैं।सब
सामने एक कटे हुये पेड़ के ठूंठ की तरफ़ दुखी हो कर देखती हैं।ठेकेदार और शांति भी
उधर ही देखते हैं।)
शांति—कहीं इस काटे गये पेड़ पर ही इनका घोसला तो
नहीं था?
ठेकेदार—(चिन्तित मुद्रा में) ओह अब समझा---क्यों
गुस्सा हैं ये चिड़िया लोग?शांति बिटिया अनजाने में मुझसे बहुत बड़ी भूल हो
रही थी।
शांति-(आश्चर्य से)
कैसी भूल बापू?
ठेकेदार—(दुखी मन से)बिटिया इसमें गलती इनकी नहीं।मेरी
गलती है।मैं ही पैसों के लालच में पेड़ों को कटवा कर इनके घर उजाड़ रहा
था।मैं पैसों के पीछे पागल हो गया था।---ओह—ये क्या पाप कर रहा था मैं।इतने पक्षियों के घर छीन
रहा था?
(ठेकेदार खड़ा हो जाता है,उसी के साथ शांति
भी। चिड़िया उसी तरह दुखी बैठी हैं)
ठेकेदार-(पश्चाताप
से)हे ईश्वर मुझे माफ़ कर दो—अब
और नहीं---आज के बाद से मैं किसी चिड़िया का नीड़ नहीं उजाड़ूंगा।कोई पेड़
नहीं काटूंगा---कोई नहीं।(गौरैया को सहला कर) जाओ गौरैया---जाओ
चिड़िया—सारे पक्षियों से कह दो अब आज के बाद से कोई पेड़ नहीं कटेगा।
(शांति आश्चर्य से ठेकेदार को देखती है।कई
चिड़िया और गौरैया आकर चीं चीं
करती हुयी चावल खाने लगती हैं।कुछ उड़ कर
जंगल की ओर जाती हैं।)
दृश्य-4
(जंगल का दृश्य।मधुर संगीत।हरे भरे पेड़ों के
बीच ठेकेदार और उसकी बेटी शांति नाचते दिखायी दे रहे।उनके चारों ओर
पक्षी बने बच्चे उड़ने का अभिनय कर रहे।)
शांति—(गाती है)
देखो बापू सुन लो बापू
बात को पूरी समझ लो बापू।
जिन पेड़ों को काट रहे थे
वहीं बसी थीं चिड़ियां सारी
पर अब उनको मिला अभय जो
चहक रही फ़िर चिड़िया सारी।
ठेकेदार-- बेटी
मैं था गलत राह पर
सबने सच्ची राह दिखाया
मुझसे
पाप बड़ा था होता
पर चिड़ियों ने मुझे बचाया।
(शांति,ठेकेदार गोल घेरे में घूमते
हैं।उनके चारों ओर कुछ चिड़िया भी फ़ुदकती घूम रहीं।मंच के एक तरफ़ से नट और दूसरी
तरफ़ से नटी भी नाचते हुयी आती हैं और उन्हीं के साथ नाचते हैं।)
नट—(गाता है)
मौन रखा सारी चिड़ियों ने
उसका मीठा फ़ल भी पाया।
नटी—(गाती है)
खुशहाल किया जंगल को फ़िर से
मानव को भी मार्ग दिखाया।
(सभी साथ में गाते हैं)
ठेकेदार-- मौन रखा सारी चिड़ियों ने
उसका मीठा फ़ल भी पाया।
शांति-- खुशहाल किया जंगल को फ़िर से
मानव को भी राह दिखाया।
कोरस-- खुशहाल किया जंगल को फ़िर से
मानव को भी राह दिखाया।
(सब गोल घेरे में
घूमते हुये गाते रहते हैं।धीरे धीरे उनका स्वर धीमा होता जाता है। और संगीत के साथ
ही प्रकश कम होता जाता है।दृश्य फ़ेड आउट होता है।)
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लेखक--डा0हेमन्त कुमार
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर
जवाब देंहटाएंbachchon ke natak ek achcha prayog
जवाब देंहटाएंबहुत बढि़या संदेश ..बाल नाटक में
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