गुरुवार, 24 सितंबर 2009

बालगीत - केला


ला ला ला ला ला ला ला
ला ला ला ला ला ला ला

हरे भरे पेड़ों से भैया
बन्दर जी ने तोड़ा केला
पीला पीला मीठा केला
बन्दर जी ने खाया केला।
ला ला-----------------।

अम्मा बाबू भैया दीदी
सबको भाता है केला
क्योंकि चीनी से भी मीठा
होता है पीला केला।
ला ला-----------------।

पीले छिलके को छीलो तो
निकलेगा मीठा केला
बिन दांतों वाले बाबा भी
खाते हैं मीठा केला।

ला ला ला ला ला ला ला
ला ला ला ला ला ला ला
********
हेमन्त कुमार


रविवार, 20 सितंबर 2009

नन्हें चित्रकार

मेरे पास कुछ बच्चों ने अपने बनाये चित्र भेजे हैं।
मैं इन्हें यथावत प्रकाशित कर रहा हूं। आप भी इन
चित्रों को देखकर इन बच्चों के भीतर छिपी कलात्मक
प्रतिभा,उत्साह तथा इनके द्वारा कागज पर बिखेरे गये
रंगों का आनन्द उठाइये।








ऊपर के पहले दो चित्र नित्या शेफाली ने बनाये है। नित्या शेफाली सेंट
डोमनीक कालेज ,लखनऊ में कक्षा -6 में पढ़ती हैं।


बीच वाले दोनो चित्र मास्टर श्रेयस के हैं। मास्टर श्रेयस भी
सेण्ट डोमनीक ,लखनऊ में कक्षा -5 में पढ़ते हैं।

नीचे के दोनों चित्र मुक्तिराज ने बनाये हैं ।ये नन्हीं चित्रकर्त्री
रानी लक्ष्मी बाई स्कूल लखनऊ में कक्षा -5 में पढ़ रही हैं।
हेमंत कुमार






























बुधवार, 16 सितंबर 2009

नन्दू की समझदारी(अन्तिम भाग)

नन्दू की समझदारी(भाग -६)
(गीतात्मक कहानी)

चाचा की ये बात तो बच्चों
समझ गया फ़िर अपना नन्दू
आजाद करूंगा फ़ौरन इनको
हंस करके फ़िर बोला नन्दू।

पर उनके जाने के बाद
नन्दू फ़िर हो गया उदास
खोया खोया बैठा रहता
देखा करता था आकाश।

इसी तरह बैठा था नन्दू
एक दिन अपने घर के पास
मोती मिट्ठू के बारे में
सोच के नन्दू हुआ उदास।

तभी अचानक हुआ कमाल
खुशी से नन्दू हुआ निहाल
किसी की प्यारी कूं कूं सुन के
देखा उसने पीछे मुड़ के।

मोती खड़ा था पीछे उसके
मिट्ठू पीठ पे बैठा जिसके
मिल के तीनों धमा चौकड़ी
लगे मचाने गांव में फ़िर से ।
000
हेमन्त कुमार


शुक्रवार, 11 सितंबर 2009

नन्दू की समझदारी(भाग-५)

नन्दू की समझदारी(भाग-५)
(गीतात्मक कहानी)

कुछ ही दिनों के बाद वहां पर
नन्दू के चाचा जी आये
मोती मिट्ठू की हालत को
देख के चाचा जी मुस्काये।

सोच के कुछ चाचा ने बच्चों
फ़िर नन्दू को पास बुलाया
मोती मिट्ठू के बारे में
प्यार से उसको समझाया।

जैसे इस धरती पर नन्दू
हम मानव रहते आजाद
वैसे ही इस पूरे जग में
हर प्राणी रहता है आजाद ।

अगर बांध कर रखोगे उनको
पिंजरे रस्सी में कसोगे उनको
नहीं रहेंगे खुश ये कभी भी
ना बन सकेंगे दोस्त कभी भी।

अगर इन्हें तुम सच्चा दोस्त
बनाना चाह रहे हो अपना
आजाद करो तुम इन दोनों को
फ़िर देखो खुश होते ये कितना।
०००००००००००
(शेष अगले भाग में )
हेमन्त कुमार

मंगलवार, 8 सितंबर 2009

नंदू की समझदारी -(भाग-४)


नन्दू की समझदारी (भाग -४)
(गीतात्मक कहानी)

कुछ ही दिनों के बाद तो बच्चों
नन्दू एक तोता घर लाया
नाम दिया उसको मिट्ठू और
सुन्दर पिंजरे में बैठाया।

अब मिट्ठू और मोती के संग
नन्दू खेला करता था
मोती को तो दाल और रोटी
मिट्ठू को मिर्च खिलाता था।

रस्सी पिंजरे में बंध बच्चों
मोती मिट्ठू हुये उदास
खाना पीना छोड़ के दोनों
देखा करते थे आकाश।

मोती और मिट्ठू की हालत
देख के नन्दू हुआ उदास
खुश रक्खूं मैं कैसे इनको
सोचा करता सारी रात।
०००००००
(शेष अगले अंक में )
हेमंत कुमार

रविवार, 6 सितंबर 2009

नन्दू की समझदारी(भाग -३)

नन्दू की समझदारी(३)
(गीतात्मक कहानी)

पर मोती को एक दिन बच्चों
बांधा रस्सी में नन्दू ने
चल तुझको मैं गांव घुमाऊं
समझाया उसको नन्दू ने।

आगे आगे तो नन्दू था
पीछे ही उसके मोती था
नन्दू उसको खींच रहा था
मोती पें पें चीख रहा था।

गुस्सा होकर फ़िर नन्दू ने
मोती को ला घर में बांधा
बंध जाने से मोती की तो
आजादी में आयी बाधा ।

घर में बंध जाने से बच्चों
मोती रहने लगा उदास
नया दोस्त एक मोती का फ़िर
नन्दू करने लगा तलाश।
०००००
( शेष अगले अंक में )
हेमंत कुमार

शुक्रवार, 4 सितंबर 2009

नन्दू की समझदारी(भाग -२)

नन्दू की समझदारी
(गीतात्मक कहानी)

घर के बाहर दिखा जो पिल्ला
प्यारा सुन्दर झबरा पिल्ला
भूल गया दुख सारे नन्दू
दौड़ के गोद में ले लिया पिल्ला।

पिल्ला ले घर पहुंचा नन्दू
दौड़ के मां से रोटी लाया
फ़िर पिल्ले को गोद में ले के
लगा खिलाने रोटी नन्दू।

रोटी दाल खिला पिल्ले को
लगा सोचने बैठ के नन्दू
क्या रक्खूं मैं इसका नाम
मोती शेरा या फ़िर चन्दू ।

मोती कहकर लगा बुलाने
प्यारे पिल्ले को फ़िर नन्दू
सुबह शाम संग मोती के ही
खेला करता अपना नन्दू।
( शेष अगले अंक में )
००००००००००००
हेमंत कुमार



बुधवार, 2 सितंबर 2009

नन्दू की समझदारी


(गीतात्मक कहानी)
बहुत पुरानी बात है बच्चों
एक गांव था छोटा सा
उसी गांव के एक कोने में
अपना नन्दू रहता था।

अपना नन्दू छोटा था
छोटा था और भोला था
भाई बहन नहीं थे उसके
मां बापू का अकेला था।

किसके साथ मैं खेलूं कूदूं
उछलूं कूदूं धूम मचाऊं
किससे खाऊं किसे खिलाऊं
नन्दू सोचा करता था।

एक दिन बड़े सबेरे बच्चो
नन्दू निकला घर से बाहर
तभी उसे एक प्यारा पिल्ला
दिख गया अपने घर के बाहर।

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( शेष अगले अंक में )
हेमन्त कुमार