शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

मौत के चंगुल में(भाग-3)


वाटसन का परिवार

                            अपाहिज बच्चे एटलस जहाज पर दुनिया की सैर के लिए कैसे निकले,एटलस,तूफान में कैसे फंस गया, कैसा होता है समुद्री तूफान?क्या वे बच्चे हमेशा के लिए समुद्र के थपेड़ों में समा गए? लेकिन मेरे दोस्तों,थोड़ा धैर्य रखो तो तुम्हें इस कहानी में बहुत आनंद मिलेगा।पहले हम वाटसन के परिवार से परिचित हो लें।उसके परिवार की जाने बिना यह कहानी अधूरी लगेगी।
        यह है ग्यारह साल का नन्हां किटी।उसकी आंखें झील की तरह नीले रंग की थीं। वे हमेशा चमकती रहती थीं।उसके पतले गुलाबी होठ अक्सर किसी मीठे गीत के बोल गुनगुनाते रहते। उसके सुनहरे बाल रेशम की तरह मुलायम और खूबसूरत थे।जब वह केवल तीन साल का ही था,आग में गिर जाने से उसका दाहिना पैर बिल्कुल जल गया था। उसकी जान बचाने के लिए डाक्टरों ने घुटने के नीचे उसकी एक टांग काट दी थी।अब वह दो छोटी बैसाखियों के सहारे चलता था।
        किटी स्कूल का मानीटर था।वह स्कूल में तो हर बच्चे पर ध्यान रखता ही था।हास्टल में भी उनके खाने पीने का पूरा ख्याल रखता।उसके रहते किसी बच्चे को तकलीफ नहीं हो पाती थी। अगर बच्चों में झगड़ा होने लगता तो वह बड़ी जल्दी उसे सुलझा देता।जहां उसके होठों पर एक हल्की मुस्कान आई और उसने अपना हाथ हिला कर रुकने का संकेत किया।लड़ते बच्चों पर जैसे जादू हो जाता ! वे फौरन भीगी बिल्ली बन जाते और फिर आपस में खेलने लगते।
               किटी को कभी किसी ने उसकी प्यारी बिल्ली जेनी से अलग नहीं देखा।बगुले के पंख जैसे सफेद और मुलायम घने बालों वाली जेनी किटी के कंधे पर दुबकी बैठी रहती।रात जब वह बैसाखी को ठक ठक करता हुआ सब के सोने की व्यवस्था देखता फिरता,जेनी उसके पांवों से सटी सटी चलती।किटी के नजदीक रहकर मासूम जेनी दुनिया के सारे डर भूल जाती। किटी और जेनी की यह जोड़ी मशहूर थी।
            पीटर उमर में किटी से कुछ बड़ा था मगर दुबला पतला और देखने में बेजान सा लगता।वह या तो जल्दी किसी काम को करता न था और अगर करने लगता तो खाना पीना भूलकर उसे ही करता जाता।चूंकि जन्म से ही उसके दोनों हाथ गायब थे इस लिए उसे पैरों से किया जाने वाला काम सौंपा जाता। वह पैरों से मसल मसल कर क्यारियों की मिट्टी भुरभुरी किया करता था।एक क्यारी से दूसरी क्यारी में पानी लगा देना भी उसके लिए बड़ा आसान था।पढ़ने में भी उसका यही हाल था।अक्सर गिनती की भूलों पर झिड़कियां खा जाता।
       जिस दिन ऐसा होता पह सारे दिन पेड़ की आड़ में खड़ा होकर पहाड़े रटता रह जाता।बड़ी मुश्किल से उसे खाने पर आने के लिए राजी किया जाता।किटी उसे अपने हाथ से भोजन कराता था।
             रोजी का चेहरा गुलाब की तरह लाल था।मगर वह खुद गुलाब को देखकर उसका रंग नहीं बता सकती थी।वह दोनों आंखों से अंधी थी।उसका गला कोयल की तरह मीठा था।उसे छोटे छोटे बहुत से भजन याद थे।जिस समय वह मीठे स्वर में गुनगुनाने लगती सारे बच्चे मुग्ध हो उठते।वाटसन अक्सर इस लड़की को देख कर ईश्वर के बारे में सोचने लगता। रोजी को एक फूल की तरह खूबसूरत बनाने के बाद ईश्वर ने इसे आंखों में रोशनी क्यों नहीं दी?बगीचे में एक से एक खूबसूरत फूल खिलते पर रोजी केवल उनकी महक अनुभव करती।इस महक का उसे ऐसा अंदाज मिल गया था कि वह बता सकती थी कि आज बगीचे में कौन कौन से फूल खिले हैं।इसी तरह चिड़ियों की बोली सुनकर वह उनके नाम बता सकती थी।
         रोजी का दिल बझ़ा कोमल था।किसी को दुखी देख पाना उसके लिए संभव नहीं था। फिर भी उसे पता नहीं कैसे दूसरों के दिल की तकलीफ मालूम हो जाती थी।वह बड़े प्यार से बच्चों की तकलीफों के बारे में पूछती। गीतों से उनका जी बहलाने की कोशिश करती। किसी न किसी बच्चे को आए दिन चोट चपेट लगती ही रहती थी।रोजी वाटसन से दवा की शीशी लेकर स्वयं चोट पर उसे लगाने पहुंच जाती।बच्चे उसकी कोमल उंगलियों का स्पर्श पाकर अपना दुख भूल जाते।वे अपनी प्रार्थन में ईश्वर से रोजी को सुखी रखने के लिए भी कहते।
          
         जहां ऐसे प्यारे बच्चे थे वहीं जेम्स बड़े जिद्दी और झगड़ालू स्वभाव का था।उसके मन की बात न होती तो वह बड़ी जल्दी तुनुक जाता।वाटसन ने उसे कई बार समझाया कि अपने साथियों के साथ प्यार का व्यवहार करना चाहिए।पर उसने इस पर कभी ध्यान नहीं दिया।नतीजा यह हुआ कि ज्यादातर बच्चे उससे नफरत करने लगे।उसे कभी अपनी ओर आता भी देखते तो दूसरी ओर मुंह कर लेते।मगर रोजी के मन में ऐसी बात न थी।वह जेम्स से नफरत नहीं करती थी,बल्कि मौका पाने पर अक्सर उसे अच्छा बनने के लिए समझाया करती।जेम्स इतने बच्चों में किसी की थोड़ी बहुत सुनता भी था तो केवल रोजी की।पीटर की तरह उसके दोनों हाथ गायब तो न थे,पर वे बचपन की एक बीमारी से कमजोर होकर कंधे से झूलते रहते थे।उन्हें वह उठा तक नहीं पाता था।खुद अपना भोजन तक करना उसके लिए मुश्किल काम था।हां,उसकी दोनों टांगें गधे की तरह मजबूत थीं।
      उनके शिक्षकों में पियरे सबसे ज्यादा उमर का था।वह धार्मिक विचारों का  आदमी था।वह इन बच्चों को ईश्वर की संतान मान कर बड़ा प्या करता था।किसी दिन भूल से भी किसी को डांट देता तो सारे दिन उसके लिए पछताता।
        पियरे ने दुनिया के सभी बड़े बड़े देशों की यात्रा की थी।उसे बड़ी लालसा थी कि ये अपाहिज बच्चे भी दुनिया घूम पाते और तब देखते कि ईश्वर ने इस धरती को कितना खूबसूरत बनाया है।लेकिन वह जानता था कि उसकी यह इच्छा नहीं पूरी हो सकती।इसके लिए अपार धन की जरुरत थी। यहां स्कूल को चलाना ही मुश्किल रहता था।उन बच्चों में तो अधिकांश के मां बाप थे ही नहीं,और जिनके थे भी वे बहुत गरीब थे।
      वाटसन को सहायता के लिए हमेशा धार्मिक विचारों के और उदार हृदय के धनियों के पास दौड़ना पड़ता था।
          पियरे की तरह ही तीन अध्यापक और थे।वे भी पियरे की तरह ही बच्चों को बहुत प्यार करते थे।वाटसन ने हजारों लोगों में से ऐसे अध्यापकों को चुना था,जो इन बच्चों को माता पिता का प्यार दे सकें।अध्यापक और बच्चे आपस में ऐसे हिलमिल गए थे कि सब अपने को एक परिवार मानने लगे थे। (क्रमशः)
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 ( इस बाल उपन्यास के लेखक मेरे पिता जी श्री प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव जी हिन्दी साहित्य के लिये नये नहीं हैं।आप पिछले छः दशकों से साहित्य सृजन में संलग्न हैं।                        आपने कहानियों,नाटकों,लेखों,रेडियो नाटकों,रूपकों के अलावा प्रचुर मात्रा में बाल साहित्य की रचना की है।आपकी कहनियों,नाटकों,लेखों की अब तक पचास से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।इसके साथ ही शिक्षा विभाग के लिये निर्मित लगभग तीन सौ वृत्त चित्रों का लेखन कार्य भी किया है।1950 के आस पास शुरू हुआ आपका लेखन एवम सृजन का यह सफ़र आज 82 वर्ष की उम्र में भी जारी है।)
  हेमन्त कुमार द्वारा प्रकाशित।