गुरुवार, 30 जुलाई 2020

खण्डहर के शैतान

(आज 31 जुलाई को मेरे पिता जी प्रतिष्ठित बाल साहित्यकार आदरणीय प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव जी की पुण्य तिथि है।2016 की 31 जुलाई को ही 87 वर्ष की आयु में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया था।इस बार कोरोना संकट को देखते हुए मैं उनकी स्मृति में कोई साहित्यिक आयोजन भी नहीं कर पा रहा।इसी लिए आज यहाँ मैं पिता जी की एक अप्रकाशित कहानी प्रकाशित कर रहा।उनकी रचनाओं को पाठकों तक पहुँचाना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।–डा0 हेमन्त कुमार)    

                     (ग्रामीण परिवेश की बाल कहानी)

खण्डहर के शैतान----।

                  

                            गांव से बाहर एक बड़ा सा खंडहर था।खंडहर को देखने से लगता था कि कभी वहां बड़ा सा परिवार रहता होगा।मगर आज चरवाहे तक उसके पास जाने से डरते थे।दिन भर तो वहां सन्नाटा पसरा रहता था।मगर रात होते ही खंडहर में से तरह की आवाजें आने लगती थीं।कभी सीटी बजने की,कभी घंटियों की टिनटिन टुनटुन,कभी किटकिट कुटकुट जैसे दांतों से दांत रगड़े जा रहे हों।सुन कर ही गांव वाले सहम जाते।घर से बाहर निकलने तक का साहस न होता।

                    गांव के बड़े बूढ़े बताते हैं कि एक बार किसी बड़े मेले में पूरा परिवार गया हुआ था।अचानक वहां भगदड़ मच गई।हजारों लोग मारे गये।शायद वो लोग भी उस भगदड़ में कुचले गये।क्योंकि फ़िर कोई लौट कर नहीं आया।गांव के पुरनिया लोग बताते हैं कि इस तरह की अकाल मृत्यु में वे प्रेत या शैतान बन जाते हैं।वे ही लोग अब शैतान बन कर अब अपने इस खंडहर में रह रहे हैं।इस तरह की आवाजें निकाल कर वो लोगों को सावधान करते हैं---कोई उनकी शान्ति भंग करने के लिये खंडहर के निकट न आये।

          जब से ये शैतान उस खंडहर में आये गांव में एक अजीब बात  शुरू हो गयी।लोगों की रसोईं या कहीं और कुछ भी खाने का सामान रखा रहता वह रात में ही सफ़ाचट हो जाता।जबकि उनके घर में न ही कोई चूहा दिखता न ही बिल्ली।जब चूहे ही नहीं थे तो बिल्ली कहां से आती।लोग सोचते-क्या खण्डहर वाले शैतान ही आकर सब कुछ सफ़ाचट कर जाते हैं।कुछ लोग कहते—“भैया भूत,प्रेत या शैतानों को कहां भूख प्यास लगती है।”

       इधर लोग जितना ही परेशान थे उतना ही खण्डहर में रहने वाले मजे ले रहे थे।पूरे खण्डहर पर उनका साम्राज्य था।उनके राजा रानी थे,प्रजा थी,गुप्तचर थे,सेना के छापामार दस्ते थे।उनकी छापामार सेना रात होते ही भोजन की लूटपाट करने गांव में पहुंच जाती।खण्डहर से लेकर गांव तक में गुप्तचर फ़ैल जाते।कहीं कोई खतरा तो नहीं है।यहां खण्डहर में बचे लोग अपनी ड्यूटी में सक्रिय हो जाते। बाजार से चुरा कर लाई गई सीटियां और घण्टियां बजने लगतीं।

                      प्रशिक्षित लोग अपने दांतों से कुटकुट और किटकिट की ध्वनियां करने लगते।गांव वाले डर से सहम कर अपने घरों में दुबक जाते।इधर घरों में छापामार सैनिक पूरी ताकत से टूट पड़ते।देखते ही देखते जो भी मिला सफ़ाचट। लोग अपने बिस्तरों में ऐसे दुबके रहते कि किसी आहट पर भी बाहर निकल कर न देखते।स्वयं पेट भरने के बाद वे अपने साथियों के लिये भोजन पीठ पर भी लाद लेते। सबके खण्डहर में लौट आने के बाद सारी आवाजें भी बंद हो जातीं।

         अचानक एक दिन खण्डहर के पास से एक बारात गुजरी।शैतान मँडली छिप कर बाजे-गाजे और रोशनी का आनन्द उठाने लगी।एक शैतान कुछ ज्यादा ही फ़ितरती दिमाग का था।वह राजा से बोला—“राजा जी,तमाशा तो बड़ा अच्छा था।

      राजा सब जानता था।हंस कर बोला—“यह तमाशा नहीं,बारात थी।

      वह शैतान बोला—“क्यों न हम लोग भी एक दिन ऐसे ही बारात निकालें?

      अरे मूर्खों,अभी तक हम लोग दुनिया की नजर से यहां छिपे हुये हैं।हमने ऐसा किया तो दुनिया हमारे बारे में सब कुछ जान जायेगी।बाहर हमारे कम दुश्मन हैं?कुत्ते बिल्ली से लेकर इंसान तक हमारी जान के प्यासे रहते हैं।अपनी इस खण्डहर की दुनिया में चुपचाप पड़े रहो।खाओ,पिओ और मौज करो।राजा ने उन्हें समझाया।

        लेकिन कहा गया है कि विनाश काले विपरीत बुद्धि।कुछ शैतान अपनी सनक से बाज नहीं आए।बारात न सही,अपनी बस्ती को ही झंडी आदि से सजाया जा सकता है।उसके लिये जरूरत का सामान वे कुछ घरों में देख चुके थे।

         अगले दिन गांव के एक छात्र लाल चंद को स्कूल का अपना एक प्रोजेक्ट पूरा करने के लिये गोंद की जरूरत पड़ी।मगर पूरे घर में कहीं भी गोंद का पैकेट नहीं मिला।इसी तरह गोकुल की मेज पर से रंगीन कागजों की सारी सीट ही गायब थी। विशाल के पापा को सुतली की जरूरत पड़ी तो सुतली की पूरी लुंड़ी ही गायब थी। लाल चंद,गोकुल,विशाल अपने घरों के आसपास भी ढूंढ़ने लगे,अचानक उन्हें कुछ दूरी पर सुतली का कुछ हिस्सा दिखाई पड़ा।उसका एक सिरा खण्डहर की ओर गया हुआ था।वे लोग समझ नहीं पाए कि माजरा क्या है।

            दिन का वक्त होने से वे निडर होकर खण्डहर की ओर चल पड़े।यहां उन्होंने जो दृश्य देखा उसे देख वो दंग रह गये।सैकड़ों चूहे दौड़ दौड़ कर झंडी बनाने और टांगने में लगे हुये थे।तीनों ने फ़ौरन ही गांव वालों को ये खबर दी।गांव वालों ने भी आकर वह तमाशा देखा।वो समझ गये कि खण्डहर के शैतान और कोई नहीं ये चूहे ही थे।शैतानों की सारी पोल पट्टी खुल गई।

          देखते ही देखते लोग खण्डहर की सारी बिलों को खोदने लगे।उनमें उन्हें सीटियां और घंटियां भी मिल गयीं।चूहों की इस सूझ बूझ से सब चकित रह गये।

            कहते हैं कि अपना बसेरा छिन जाने पर तबसे चूहे इंसानों के घरों में ही रहने लगे। लेकिन अब वे खण्डहर के शैतानों से भी ज्यादा खुराफ़ाती हो गये थे। पहले वे केवल भोजन सामग्री से मतलब रखते थे,मगर अब तो वे घर की किताब कापियों से लेकर कपड़े लत्ते तक कुतरने लगे।लेकिन अब तो कुछ हो भी नहीं सकता था।उन्हें बेदखल करके खण्डहर को खेत बना दिया गया था।आखिर बेचारे जाते भी तो कहां।

    अब तो इंसानों के घरों में रहते हुये भी वे उनकी पकड़ से दूर उनके साथ आंख मिचौली खेलते हैं चूहेदानी को मुंह चिढ़ाते हैं।उन्हें मारने के लिये रखी गयी जहर की गोलियों से फ़ुटबाल खेलते हैं।उनकी तो हर तरफ़ से बल्ले बल्ले।

 राजा ने एक दिन उनसे मुस्कराकर पूछा,--- कहो भाइयों,कैसी कट रही है?

 पूरी दुनिया की शैतान मण्डली ने एक स्वर से चिल्ला कर कहा—“हिप हिप हुर्रे।

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लेखक-प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव

11मार्च,1929 को जौनपुर के खरौना गांव में जन्म।31जुलाई2016 को लखनऊ में आकस्मिक निधन।शुरुआती पढ़ाई जौनपुर में करने के बाद बनारस युनिवर्सिटी से हिन्दी साहित्य में एम00।उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग में विभिन्न पदों पर सरकारी नौकरी।देश की प्रमुख स्थापित पत्र पत्रिकाओं सरस्वती,कल्पना, प्रसाद,ज्ञानोदय, साप्ताहिक हिन्दुस्तान,धर्मयुग,कहानी,नई कहानी, विशाल भारत,आदि में कहानियों,नाटकों,लेखों,तथा रेडियो नाटकों, रूपकों के अलावा प्रचुर मात्रा में बाल साहित्य का प्रकाशन।

     आकाशवाणी के इलाहाबाद केन्द्र से नियमित नाटकों एवं कहानियों का प्रसारण।बाल कहानियों,नाटकों,लेखों की अब तक पचास से अधिक पुस्तकें प्रकाशित।वतन है हिन्दोस्तां हमारा(भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत)अरुण यह मधुमय देश हमारा”“यह धरती है बलिदान की”“जिस देश में हमने जन्म लिया”“मेरा देश जागे”“अमर बलिदान”“मदारी का खेल”“मंदिर का कलश”“हम सेवक आपके”“आंखों का ताराआदि बाल साहित्य की प्रमुख पुस्तकें।इसके साथ ही शिक्षा विभाग के लिये निर्मित लगभग तीन सौ से अधिक वृत्त चित्रों का लेखन कार्य।1950 के आस पास शुरू हुआ लेखन एवम सृजन का यह सफ़र मृत्यु पर्यंत जारी रहा। 2012में नेशनल बुक ट्रस्ट,इंडिया से बाल उपन्यासमौत के चंगुल में तथा 2018प्रकाशित।

 

 


शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

गांव की पुकार


गांव की पुकार

चल बापू
अब लौट चलें हम
फिर से अपने गांव।

बचपन की यदों की गठरी
खुलने को बेताब
सोंधी माटी दरवज्जे की
क्यूँ खोती अपनी ताब
महुआ टपक रहा सोने सा
पर खो गई उसकी आब।
चल बापू
अब लौट चलें हम
फिर से अपने गांव।


गिल्ली डंडा सीसो पाती
छुटपन के सब संगी साथी
बूढ़ी गैया व्याकुल नजरें
रास्ता रही निहार
खेतों में पसरा सन्नाटा
जैसे चढ़ा बुखार।
चल बापू
अब लौट चलें हम
फिर से अपने गांव।

नीम तले की चौरा माई
बरगद बाबा से अब तो बस
करती ये मनुहार
लौटा लो सारे बच्चों को
जो बसे समुंदर पार।
चल बापू
अब लौट चलें हम
फिर से अपने गांव।


गांव छोड़ते बखत तो तूने
आजी से बोला ही होगा
जल्दी ही आऊंगा वापस
पाती भी भेजा होगा
आजी की पथराई आंखें
तुझको रहीं पुकार
चल बापू
अब लौट चलें हम
फिर से अपने गांव।
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डॉ हेमन्त कुमार