गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

गुडिया घर


गुड़िया का ये न्यारा घर,
उसको सबसे प्यारा घर।
झाड़ पोंछ कर इसको रखती,
चंदा सा उजियारा घर।

नीली पीली पन्नी लेकर,
हमने बहुत संवारा घर।
धूल न इस पर पड़ने दी है,
हमने रोज बुहारा घर।

आओ सब मिल खेलें इसमें,
ये मेरी गुड़िया का घर।
इसमें मेरी गुड़िया रहती,
ये है प्यारा गुड़िया घर।
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कवि---डा0 अरविन्द दुबे
पेशे से बच्चों के चिकित्सक डा0 अरविन्द दुबे के अन्दर बच्चों को साधने (हैण्डिल करने),उनके मनोभावों को समझने,और रोते शिशुओं को भी हंसा देने की अद्भुत क्षमता है। उनकी इसी क्षमता ने उन्हें लेखक और कवि भी बना दिया। डा0 अरविन्द कविता ,कहानी के साथ हिन्दी में प्रचुर मात्रा में विज्ञान साहित्य भी लिख रहे हैं।
हेमन्त कुमार द्वारा प्रकाशित

बुधवार, 9 दिसंबर 2009

जाड़े के दिन


देखो आये जाड़े के दिन
आलू भरे पराठों के दिन
धूप गुनगुनी मन ललचाए
गिल्ली डंडा हाकी के दिन।
देखो आए----------------।

स्वेटर कोट रजाई के दिन
भुनती आलू घुंघरी के दिन
सुबह शाम सन्नाटा छाए
दिन भर सैर सपाटे के दिन।
देखो आये------------------।

तपनी हुक्का बिरहा के दिन
गुड़मुड़ हो बतियाने के दिन
पीली सरसों मन को भाये
छोटे अपने साये से दिन
देखो आये जाड़े के दिन।
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हेमन्त कुमार