बुधवार, 9 दिसंबर 2009

जाड़े के दिन


देखो आये जाड़े के दिन
आलू भरे पराठों के दिन
धूप गुनगुनी मन ललचाए
गिल्ली डंडा हाकी के दिन।
देखो आए----------------।

स्वेटर कोट रजाई के दिन
भुनती आलू घुंघरी के दिन
सुबह शाम सन्नाटा छाए
दिन भर सैर सपाटे के दिन।
देखो आये------------------।

तपनी हुक्का बिरहा के दिन
गुड़मुड़ हो बतियाने के दिन
पीली सरसों मन को भाये
छोटे अपने साये से दिन
देखो आये जाड़े के दिन।
--------
हेमन्त कुमार

5 टिप्‍पणियां:

  1. अत्यन्त सहज, बोधगम्य, मनभाने वाली कविता । बच्चों के सृजन का पुण्य कमा रहे हैं आप ! आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  2. तपनी हुक्का बिरहा के दिन
    गुड़मुड़ हो बतियाने के दिन
    पीली सरसों मन को भाये
    छोटे अपने साये से दिन
    देखो आये जाड़े के दिन।

    बहुत सुन्दर रचना!

    जवाब देंहटाएं
  3. देखो आये जाड़े के दिन
    आलू भरे पराठों के दिन.....मुंह में पानी आ गया

    जवाब देंहटाएं