शनिवार, 9 जुलाई 2016

नटखट सूरज

फूलों   जैसे    कपड़े   पहने,
जब  सोकर  उठ जाता सूरज।
बड़े  सवेरे  छत  पर  आकर,
हमको   रोज  जगाता  सूरज।

जाड़े   में   धीमे   से  छूकर,
सर्दी   दूर   भगाता  सूरज।
मगर  दोपहर  मेंगरमी की,
हमको   बहुत  सताता  सूरज।

शाम  हुई  तो  गांव  के पीछे,
पेड़ों  पर  टंग  जाता  सूरज।
रात  हुए  घर  वापस  आकर,
बिस्तर  पर  सो  जाता सूरज।
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गीतकार-डा0 अरविन्द दुबे
पेशे से चिकित्सक एवम शिशु रोग विशेषज्ञ डा0 अरविन्द दुबे बाल एवम विज्ञान साहित्य लेखन के क्षेत्र में एक चर्चित एवम प्रतिष्ठित हस्ताक्षर हैं।


शुक्रवार, 1 जुलाई 2016

संगीतकार कोयल

कोयल का गाना सुन बोले
इक दिन भालू दादा
ले लो तुम अब एक पियानो
दाम नहीं कुछ ज्यादा।

भाग के दोनों शहर को पहुंचे
 दूर नहीं था ज्यादा
देख समझ के पसंद किया फ़िर
एक पियानो बाजा।

पैसे लाई थी कम कोयल
दाम थे थोड़े ज्यादा
सिटी बैंक का कार्ड निकाले
फ़ौरन भालू दादा।

जंगल में फ़िर धूम मच गयी
कोयल लाई बाजा
झूम झूम कर कोयल गाती
संगत दें भालू दादा।
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डा0हेमन्त कुमार