गुरुवार, 27 दिसंबर 2012

बालगीत---सूरज भइया


सूरज   भइया  अपने  घर  से,
क्यों रोज सुबह निकल आते हो,
मुंह  धोकर  और  तख्ती लेकर,
क्या  तुम  भी  पढ़ने जाते हो।

तुम  रविवार  को  भी जाते हो,
लेकर  को  जो  अपनी  पट्टी,
कैसा   है     स्कूल   तुम्हारा,
होती   नहीं  कोई भी  छुट्टी ।

तो  फिर  मेरे  गांव  में आओ,
साथ-साथ    पढ़ने    जायेंगे,
जब  होगी  रविवार  की छुट्टी,
खेलेंगे       कूदेंगे     गायेंगे।

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डा0अरविन्द दुबे
पेशे से बच्चों के चिकित्सक डा0 अरविन्द दुबे के अन्दर बच्चों को साधने (हैण्डिल करने),उनके मनोभावों को समझने,और रोते शिशुओं को भी हंसा देने की अद्भुत क्षमता है। उनकी इसी क्षमता ने उन्हें लेखक और कवि भी बना दिया। डा0 अरविन्द कविता ,कहानी के साथ हिन्दी में प्रचुर मात्रा में विज्ञान साहित्य भी लिख रहे हैं।

शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

कहानी दुष्ट कौए की


नानी  के घर आते ही सोनू और मोनू उन्हें घेर कर बैठ गये।नानी उनके इस घेराव का मतलब समझ रही थीं।
हां,हां। जानती हूं तुम्हें क्या चाहिये। कहानी भी सुनाऊंगी,पहले चाय नाश्ता तो करो
नानी,चाय भी पीते जायेंगे और कहानी भी सुनते रहेंगे -- दोनों एक साथ बोल पड़े।
तभी मुंडेर पर आकर एक कौआ कांव कांव करने लगा।
नानी, लगता है इसे भी कहानी सुननी है-- सोनू ने नमकीन के कुछ टुकड़े उस कौवे की ओर डालते हुए कहा।
नहीं, नहीं। इसे मुंह लगाने की कतई ज़रूरत नहीं है। यह तो बहुत ही दुष्ट कौआ है। इसे अपने किये की काफ़ी सज़ा मिल चुकी है। देखते नहीं इसकी चोंच में घाव का कितना बड़ा निशान है-- नानी ने बताया।
इसके ये घाव कैसे हो गया नानी?
मोनू ने कौतुहलवश पूछा।
आज मैं तुम दोनों को इसी दुष्ट कौवे की कहानी सुनाउंग़ी। पिछली बार गर्मी में जब तुम दोनों आये थे, उसके कुछ दिन बाद ही सामने वाले नीम के पेड़ पर एक घोंसले में गौरैय्या ने दो अंडे दिये। जब उन अंडों से प्यारे-प्यारे बच्चे निकले तो इस कौए की नीयत खराब हो गयी। सुबह-शाम वह यही सोचने लगा कि गौरैय्या के इन बच्चों को कैसे खाया जाये। कौआ गौरेय्या से कोई डरता तो था नहीं, अत: एक दिन गौरेय्या के घोंसले के पास वाली डाल पर जाकर बैठ गया और सीधे-सीधे बोल पड़ा- गौरैय्या, मैं तेरे बच्चों को खाना चाहता हूं।
गौरेय्या पहले तो बहुत डरी, पर उसने हिम्मत और दिमाग से काम लिया।
ठीक है, खा लेना मेरे बच्चों को, पर यह भी तो देखो कि बच्चे कितने मुलायम हैं और तुम्हारी चोंच। न जाने कहां-कहां की गंदगी इस पर लगी हुई है। जाओ पहले तालाब में अपनी चोंच धोकर आओ।
कौए को लगा, ये तो बड़ा आसान है। वह उड़कर तालाब के किनारे पहुंचा और अपनी चोंच पानी में डालकर धोने लगा। तभी तालाब ने उसे डांट दिया-खबरदार, जो मेरे सारे पानी को अपनी गंदी चोंच से गंदा किया। जाओ पहले कोई बर्तन ले आओ। उसमें अलग से पानी लेकर तुम अपनी चोंच धो सकते हो।
 कौआ तुरंत उड़कर बर्तन के पास गया-
बर्तन बर्तन, आओ आओ
मेरे साथ चले तुम आओ
लाऊंगा मैं तुममें पानी
धोऊं अपनी चोंच
खाऊं कैसे गौरेय्या को
यही रहा मैं सोच।
बर्तन ने कहा,कौए भाई मैं तो चलने को तैयार हूँ, पर मेरी तली में एक छेद है। उसे चिकनी मिट्टी से भर लो, तो मैं तुम्हारे काम आ सकता हूँ
कौआ दौड़ा दौड़ा मिट्टी के पास गया-
मिट्टी मिट्टी, आओ आओ
मेरे साथ चली तुम आओ
बर्तन का तुम छेद भरोगी
लाऊंगा मैं उसमें पानी
धोऊं अपनी चोंच
खाऊं कैसे गौरेय्या को
यही रहा मैं सोच।
मिट्टी ने चलने में तो कोई आपत्ति नहीं की, पर कहा,इधर मैं सूखकर कड़ी हो गयी हूँ। मुझे मुलायम बनाना होगा। यह काम तो हाथी दादा ही कर सकते हैं
कौआ दौड़ा दौड़ा हाथी दादा के पास गया-
हाथी दादा, आओ आओ
मेरे साथ चले तुम आओ
मिट्टी को झट नरम बनाओ
जो बर्तन का छेद भरेगी
लाऊंगा मैं उसमें पानी
धोऊं अपनी चोंच
खाऊं कैसे गौरेय्या को
यही रहा मैं सोच।
हाथी ने पहले तो उसे बहुत डांटा, तू ऐसी गंदी बातें क्यों सोचता रहता है। मेरी तरह घास-पात क्यों नहीं खाता है। तेरा पेट ही कितना बड़ा है। पर वह यह भी समझ रहा था कि जाना तो उसे भी नहीं है। अत: उसने भी अपने भूखे होने की बात कह दी, पहले जाओ, दो-चार टोकरी अच्छे आम के पत्ते ले आओ
कौआ दौड़कर आम के पास गया-
आम आम तुम आओ आओ
मेरे साथ चले तुम आओ
तुमको खाकर हाथी दादा
पायेंगे कुछ ताकत ज्यादा
वे मिट्टी को नरम करेंगे
जो बर्तन का छेद भरेगी
लाऊंगा मैं उसमे पानी
धोऊं अपनी चोंच
खाऊं कैसे गौरेय्या को
यही रहा मैं सोच।
आम ने कहा, तुम तो बिल्कुल ही मूर्ख लगते हो। देखते नहीं मेरी जड़ें ज़मीन में कितनी गहराई तक गयी हैं। मेरा यहां से हिलना क्या कोई हंसी खेल है? हां, इतना ज़रूर कर सकते हो कि बढ़ई से लोहे की आरी लाकर मेरी कुछ डालें काट कर अपना काम चला लो
कौआ दौड़ा दौड़ा बढ़ई के पास गया-
बढ़ई चाचा,बढ़ई चाचा
है एक बहुत ज़रूरी काम
आरी ले जानी है मुझको
काटूंगा मैं उससे आम
उसको खाकर हाथी दादा
पायेंगे कुछ ताकत ज्यादा
वे मिट्टी को नरम करेंगे
जो बर्तन क छेद भरेगी
लाऊंगा मैं उसमें पानी
धोऊं अपनी चोंच
खाऊं कैसे गौरेय्या कि
यही रहा मैं सोच।
बढ़ई चाचा ने उसे सहर्ष आरी पकड़ा दी। कौआ मन ही मन खूब प्रसन्न हुआ। कांटे जैसे दांतों वाली आरी को चोंच में दबाकर कौए ने ऊंची उड़ान भरी। बस फ़िर क्या था। गौरेय्या के नर्म-मुलायम बच्चों के काल्पनिक स्वाद के आगे वह आरी को छोड़ नहीं पा रहा था और आरी उसकी चोंच में घाव किये जा रही थी। घाव की तकलीफ़ जब सहन नहीं हुई तो आरी उसकी चोंच से छूट गयी और वह निढाल होकर ज़मीन पर उतर आया। उसकी चोंच की ऐसी गत हो चुकी थी कि वह कुछ भी खाने लायक नहीं रहा।
देखा सोनू, तुम्हारे फ़ेंके हुए नमकीन के टुकड़े अभी भी यह ठीक से नहीं खा पा रहा है, नानी ने कहा।
फ़िर गौरेय्या और उसके बच्चों का क्या हुआ नानी, मोनू पूछ बैठा।
उनका क्या होगा। बच्चे भी पूरी गौरेय्या बन चुके हैं। यहीं कहीं फ़ुदक रहे होंगे।
मोनू ने एक छोटा-सा कंकड़ उठाया और कौए को मार कर भगा दिया। सोनू हाथ में नमकीन के छोटे-छोटे टुकड़े लिये गौरेय्या को खोज रहा था।
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कौशल पाण्डेय
हिन्दी अधिकारी
आकाशवाणी,
शिवाजी नगर पुणे(महाराष्ट्र)
मोबाईल न0:09823198116

मंगलवार, 14 अगस्त 2012

मुंडभर की महाबीरी



(हमारे देश को आजाद कराने में बहुत सारे वीर पुरुषों और महिलाओं ने अपनी शहादत दी। हम उनमें से कुछ को जानते हैं,उन्हें याद करते हैं। पर कुछ आज भी गुमनामी के अंधेरों में खोये हुये हैं।ऐसी ही एक वीरांगना थीं मुजफ़्फ़र नगर की कैराना तहसील के मुंडभर माजू गांव की महाबीरी देवी।)
                              
              मुंडभर की महाबीरी

           महाबीरी की आज फ़िर बापू से बहस हो गई।बात बस इतनी कि बापू उससे ठाकुर साहब के घर सूप पहुंचाने को कह रहे थे।महाबीरी ने मना कर दिया आखिर क्यों जाए वह उनके घर सूप या पंखा पहुंचाने?ठाकुर साहब के घर इतने नौकर चाकर हैं।वह किसी को भेज कर मंगा नहीं सकते? बस इतनी सी बात कहते ही बापू उससे नाराज हो गये और बिना दाना पानी किए खुद चले गए चिलचिलाती धूप में परेशान होने के लिये।
    बापू के जाने के बाद महाबीरी बैठ कर पंखे बनाने के लिए बांस छीलने लगी।पर आज उसका मन बांस छीलने में नहीं लग रहा था।उसके हाथ में हंसिया थी पर उसका दिमाग कहीं और उलझा था।वह सोच रही थी कि आखिर हम लोग इन बड़ी जाति वालों से दब कर क्यों रहें।क्या सिर्फ़ इसलिए कि हम लोग नीची जाति के हैं? क्या हमारी समाज में कोई इज्जत नहीं?क्या हम केवल बड़ों की चाकरी करने के लिये पैदा हुए हैं?उसका दिमाग अक्सर इन्हीं सवालों में उलझ जाता था।लेकिन वह अपने बापू को कैसे समझाए?
       महाबीरी जब भी बापू को समझाने की कोशिश करती उनका एक ही जवाब होता,बिटिया, हम  लोग गरीब हैं। हमारा जनम ही बड़े लोगों की गुलामी करने के लिये हुआ है।लेकिन किशोरी महाबीरी को बापू की यह बात हजम नहीं होती।वह हमेशा सोचती कि कैसे इन बड़े लोगों का विरोध करे।
     एक दिन महाबीरी पंखे बनाने के लिये बांस काटने जा रही थी।रास्ते में उसने गांव के पांडे के लड़के को हरिया की लड़की से छेड़खानी करते देख लिया।बस महाबीरी का तो खून खौल उठा। उसने पांड़े के लड़के को चार पांच झापड़ मार दिया।पांड़े का लड़का उसे देख लेने की धमकी देकर भाग गया।
हरिया की लड़की उसके गले लग कर रोने लगी।महाबीरी ने उसे समझाया, अरे रोती काहे है पगली।रोने से काम नहीं चलेगा हिम्मत दिखा और इन बड़े आदमियों का विरोध कर नहीं तो ये हमें जिन्दगी भर दबा कर रखेंगे।
     इस घटना के बाद से गांव भर में महाबीरी की चर्चा होने लगी। पुरुषों में भी,महिलाओं में भी।किसी के ऊपर कोई मुसीबत आती तो महाबीरी के पास पहुंच जाता। कभी किसी गरीब को कोई सताता तो महाबीरी उसका जीना हराम कर देती। ऊंची जाति वाले भी महाबीरी से डरने लगे थे। हां,बापू जरूर उसे बीच बीच में डांट देते थे।पर मन में वो भी उसके कामों की तारीफ़ करते थे।
     धीरे-धीरे महाबीरी ने अपने जैसी बहादुर युवतियों को इकट्ठा कर एक समूह बना लिया। इस समूह का काम ही था गरीबों और असहायों की रक्षा और अमीरों के अत्याचारों से उन्हें बचाना। महाबीरी ने एक दिन अपने समूह की सभी युवतियों की एक सभा बुलाई। इस बैठक में उन्होंने अपनी सभी सहेलियों से कहा कि,सखियों,हम सभी मिलकर आज शपथ लेते हैं कि हम जीवन भर अपने अधिकारों के लिए लड़ते रहेंगे। गरीबों और सहायों की रक्षा करेंगे। भले ही इसके लिये हमें जान क्यों न गंवानी पड़े। उनकी सभी सखियों ने उनका साथ देने का वचन दिया।
      कुछ ही समय में महाबीरी के समूह की चर्चा आस पास के गांवों में भी फ़ैल गयी। अपने समाज से तो महाबीरी की लड़ाई चल ही रही थी। लेकिन इधर अंग्रेजों के साथ हो रही लड़ाइयों से भी वह चिन्तित रहती थीं। पढ़ी लिखी न होने के बावजूद महाबीरी के अंदर देश,समाज और आम जन के बारे में सोचने समझने की अद्भुत क्षमता थी। वह अक्सर अपनी सहेलियों से कहती भी कि कभी मौका लगा तो हम लोग मिलकर इन गोरों के छक्के छुड़ाएंगे।
       एक दिन महाबीरी देवी गांव के बाहर अपने समूह के साथ कोई बैठक कर रही थीं। अचानक गांव की ओर से बुधुआ दौड़ता हुआ वहां आ गया। दूर से दौड़ कर आने के कारण वह हांफ़ भी रहा था।
   क्या हुआ बुधुआ?तू इतना घबराया क्यों है?हमारी बस्ती में तो सब ठीक है? महाबीरी ने पूछा।
महाबीरी दीदी,बहुत बुरी खबर है। अंग्रेजों की सेना की एक टुकड़ी बाज़ार में मार काट करती हुयी हमारे गांव कि ओर बढ़ रही है। लग रहा है अब हमारे गांव में कोई जिन्दा नहीं बचेगा। बुधुआ हांफ़ता हुआ बोला।
     डरो मत। जाकर गांव वालों से कह दो सब सुरक्षित जगहों पर पहुंच जाएं। हम आभी वहां पहुंच रहे हैं। महाबीरी ने बुधुआ को समझाया।
    इसके बाद तो महाबीरी के शरीर में बिजली भर गई। वह तुरंत खड़ी हो गयीं। उन्होंने अपने समूह की सभी महिलाओं को गिना। कुल 22 महिलाएं थीं। महाबीरी ने तुरंत फ़ैसला कर लिया। युद्ध करना ही एक उपाय है।
     सहेलियों,अब समय आ गया है अपनी बहादुरी दिखाने का। हमारी संख्या केवल बाईस है। पर अंग्रेजों के दांत खट्टे करने के लिये हम काफ़ी हैं। चलिये गांव से गंड़ासे,फ़रसे,भाले,हंसिया जो भी मिले लेकर हमें गांव के बाहर पहुंच जाना है। गोरों को वहीं रोकना होगा।महाबीरी देवी जोश से बोलीं। हमें किसी भी कीमत पर इन गोरों को गांव में घुसने नहीं देना है।
         दस मिनट के भीतर ही महाबीरी देवी गांव की 22 युवतियों की फ़ौज लेकर गांव के दूसरी ओर पहुंच गयीं। उनके हाथों में गंड़ासे,फ़रसे,कुदाल,हंसिया जैसे हथियार थे। अंग्रेज इन मुट्ठी भर औरतों को देख कर हंस पड़े। उन्हें लगा कि गांव की ये भोली औरतें भला क्या करेंगी? लेकिन इससे पहले कि गोरे कुछ समझते महाबीरी देवी ने जै भारत माता का नारा लगाया और सभी टूट पड़ीं अंग्रेजों पर। अंग्रेज हतप्रभ रह गये। महाबीरी देवी के शरीर में तो मानो बिजली भर गयी थी। वह दौड़-दौड़ कर अंग्रेजों पर वार कर रही थीं। लेकिन 22 महिलाएं अंग्रेजों की फ़ौज को भला कब तक रोक पातीं। एक-एक कर सब शहीद होती गयीं। अन्त में महाबीरी देवी भी मारी गयीं। अंग्रेज गांव में घुस गये लेकिन भारी नुक्सान उठाने के बाद। महाबीरी और उनकी सहेलियों ने उनकी हालत पस्त कर दी थी।
      बहादुर तेजस्विनी महाबीरी देवी इतिहास बन गयीं।लेकिन वो अपने पीछे वीरता और बहादुरी की एक अद्भुत मिसाल छोड़ गयीं। मुजफ़्फ़र नगर में कैराना तहसील के मुंडभर माजू गांव के लोग आज भी उनकी बहादुरी और वीरता के किस्से अपने बच्चों को सुनाते हैं।
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डा0हेमन्त कुमार

रविवार, 5 अगस्त 2012

क्या होता है बादल फटना


      रिमझिम बारिश में भीगना और बारिश के पानी में कागज की नावें चलाना सभी को अच्छा लगता है। ये बारिश हमारी पृथ्वी के लिए, मानव जीवन के लिए बहुत जरूरी है और फायदे मंद भी। इससे हमारी फसलें, नदियों का जल स्तर मौसम सभी कुछ प्रभावित होता है। कभी ज्यादा बारिश हो गयी तो नुकसान भी होता है।
            आज ही आपने अखबारों में पढ़ा होगा कि अपने पड़ोसी राज्य उत्तराखंड में बादल फ़टने से भारी तबाही हुयी है।बहुत सारे व्यक्तियों की जानें गयी हैं और बहुत से लोग लापता हैं।कई घर,होटल और दूकानें बाढ़ की तेज धार में बह गये हैं।
         आपने कभी सोचा है  कि ये बादल फटना क्या होता है? बादल फटना यूं समझ लीजिये कि किसी छोटी सी जगह पर आसमान से पूरी की पूरी एक नदी का पानी  एकदम से बह उलट तो इसी घटना को बादल फटना कहेंगे। बादल फटने की घटना के बारे में पूरी तरह जानने के लिए हमें ये जानना जरूरी है कि बादल कितनी तरह के होते हैं ?
            बादलों की आकृति, ऊंचाई के आधार पर इन्हें तीन मुख्य वर्गों में बांटा गया है। और इन वर्गो में कुल दस तरह के बादल होते हैं। पहले वर्ग में आते है निम्न मेघ या लो क्लाउड्स।इनकी ऊंचाई ढाई किलोमीटर तक होती है। इनमें एक जैसे दिखने वाले भूरे रंग के स्तरी या स्ट्रेटस बादल, कपास के ढेर जैसे कपासी या क्यूमलस, गरजने वाले काले रंग के कपासी-- वर्षी,(क्यूमलोनिंबस) भूरे काले वर्षा स्तरी  (निम्बोस्ट्रेटस) और भूरे सफेद रंग के स्तरी-कपासी (स्ट्रेटोक्यूमलस) बादल आते हैं। बादलों का दूसरा वर्ग है मध्य मेघ का। इनकी ऊंचाई ढ़ाई से साढे़ चार किलोमीटर तक होती है। इस वर्ग में दो तरह के बादल हैं अल्टोस्ट्रेटस और अल्टोक्यूमलस। तीसरा वर्ग है उच्च मेघों का। इनकी ऊंचाई साढ़े चार किलोमीटर से ज्यादा रहती है। इस वर्ग में सफेद रंग के छोटे-छोटे साइरस बादल, लहरदार साइरोक्यूमलस और पारदर्शक रेशेयुक्त साइरोस्ट्रेटस बादल आते हैं।
बादलों के प्रकार
क्यूमोलोनिंबस बादल 
                            इन बादलों में से कुछ हमारे लिए फायदेमंद बारिश लाते हैं तो कुछ प्राकृतिक विनाश। बादल फटने की घटना के लिए क्यूमोलोनिंबस बादल जिम्मेदार हैं।ये बादल देखने में गोभी की शक्ल  के लगते हैं। ऐसा लगाता है आकाश में कोई बहुत बड़ा गोभी का फूल तैर रहा हो। इनकी लंम्बाई 14 किलोमीटर तक होती है।
            अब आप सोचेंगे कि देखने में इतने सुन्दर बादल कैसे इतनी बारिश एक साथ कर देते हैं। दरअसल जब क्यूमोलोनिंबस बादलों में एकाएक नमी पहुंचनी बन्द हो जाती है या कोई बहुत ठंडी  हवा का झोंका उनमें प्रवेश कर जाता है, तो ये सफेद बादल गहरे काले रंग में बदल जाते हैं। और तेज गरज के साथ उसी जगह के ऊपर अचानक बरस पड़ते हैं। ऐसी बारिश ज्यादातर पहाड़ी इलाकों में ही होती है।क्यूमोलोनिंबस बादलों के बरसने की रफ्तार इतनी तेज होती है जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते। यूं समझ लें कि कुछ ही देर में आसमान से एक पूरी की पूरी नदी जमीन पर  उतर आती है। जरा सोचिये कितनी खतरनाक होती है ये बारिश। हमारे पड़ोसी राज्य उत्तराखण्ड के नैनीताल शहर में बादल फटने से अभी तक की आधिकतम बारिश होने का रिकार्ड  24 घण्टों में 509.3 मिलीमीटर का दर्ज है।

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डा0हेमन्त कुमार

सोमवार, 25 जून 2012

सरकस


हंगामा मच गया गांव में,
जब आया एक सरकस,
मुन्नी गुड्डू मां से बोले,
हमें दिखाओ सरकस।

बैठ के इक्के पर सब पहुंचे,
जहां लगा था सरकस,
लिया टिकट और लगे देखने,
सब बच्चे फ़िर सरकस।

भीड़ देख कर शेर दहाड़ा,
नहीं दिखाना सरकस,
शेर के पीछे सभी जानवर,
छोड़ चले फ़िर सरकस।
 हंगामा मच गया गांव में,
जब आया एक सरकस।
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हेमन्त कुमार

शनिवार, 28 अप्रैल 2012

पुस्तक लगते हैं सब फूल

मेरे इन  नन्हें  पौधों  पर
कितने  सारे  आए  फूल
रोज सींचती थी मां भी तो
कह कह कर आएंगे  फूल।


हरे हरे पत्तों  के  अन्दर
छिप छिप झांके प्यारे फूल
लगता है जैसे पौधों  की
हंसी  बने  हैं सारे  फूल।


मुझको तो तारों जैसे  ही
सुंदर लगते हैं सब  फूल
कविता और कहानी की सी
पुस्तक लगते हैं  सब फूल।
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कवि :दिविक रमेश
श्री दिविक रमेश हिन्दी साहित्य  के प्रतिष्ठित कथाकार,कवि, एवम बाल साहित्यकार हैं।आपकी अब तक आलोचनात्मक निबन्धों, कविता,बाल कहानियों,बालगीतों की 50 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।तथा आप कई राष्ट्रीय एवम अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किये जा चुके हैं।वर्तमान समय में आप दिल्ली युनिवर्सिटी से सम्बद्ध मोती लाल नेहरू कालेज में प्राचार्य पद पर कार्यरत हैं।
मोबाइल न0--09910177099
हेमन्त कुमार द्वारा प्रकाशित।

बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

चिडियों का अनशन

कोयल ने इक दिन जल्दी से
सब चिड़ियों को पास बुलाया
कटते जाते पेड़ सभी अब
उसने सबको ये बतलाया।

कहां रहेंगे हम सब बहना
कहां बनेगा नीड़ हमारा
कैसे समझाएं मानव को
सबने मिलके बुद्धि दौड़ाया।

नन्हीं सोन चिरैया चहकी
बोली कू कू कर के
बाबा गांधी ने अनशन से
गोरों को था दूर भगाया।

क्यों ना हम भी ऐसा ही कुछ
नया अनोखा मार्ग बनाएं
पेड़ों का कटना भी रोकें
अपने घर जंगल को बचाएं।

खुश हो गई फ़िर चिड़िया सारी
सोन चिरैया की बातों से
मौन का व्रत रख करके हम भी
छेड़ेंगे अब जंग इक न्यारी।
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