बुधवार, 12 फ़रवरी 2014

घमंडी का सिर नीचा

तेज-तेज   जो   चली  हवा,
लगी   सोचने   वह   ऐसा।

मुझमें   बहुत   बड़ी  ताकत,
मुझमें   है   इतनी  हिम्मत।
चाहूं  जड़  से  पेड़  उखाडूं,
चाहूं जिसको  दूर उडा दूं।

तभी  मिला  उसे छोटा पत्थर,
बोला  हवा  से  ऐसे हंसकर।
आओ मुझ  पर जोर लगाओ,
मैं  न  हिलूंगा  मुझे उड़ाओ।

बहुत  हवा  ने  जोर  लगाया,
मगर न वह पत्थर हिल पाया।
और  हवा  ने  तब ये सीखा,
सदा  घमंडी  का  सिर नीचा
0000
डा0अरविन्द दुबे
पेशे से बच्चों के चिकित्सक डा0 अरविन्द दुबे के अन्दर बच्चों को साधने (हैण्डिल करने),उनके मनोभावों को समझने,और रोते शिशुओं को भी हंसा देने की अद्भुत क्षमता है। उनकी इसी क्षमता ने उन्हें लेखक और कवि भी बना दिया। डा0 अरविन्द कविता ,कहानी के साथ हिन्दी में प्रचुर मात्रा में विज्ञान साहित्य भी लिख रहे हैं।