शनिवार, 22 अगस्त 2020

थंडरहिट और टाइम मशीन

 वरिष्ठ बाल साहित्यकार और मेरे पिता आदरणीय श्री प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव जी ने अपने अंतिम दिनों में अपना दूसरा बाल उपन्यास मौत से दोस्ती लिखा था।दुर्भाग्य  यह बाल उपन्यास पिता जी के जीवनकाल में प्रकाशित नहीं हो सका था।मुझे इस उपन्यास का शीर्षक आपरेशन थंडरहिट ज्यादा ठीक और उपयुक्त लग रहा है ।इसलिए मैं पिता जी का यह उपन्यास आपरेशन थंडरहिट अपने ब्लॉग फुलबगिया पर सीरीज के रूप में प्रकाशित कर रहा।आज पढ़िए इस उपन्यास का तीसरा भाग)

3. थंडरहिट और टाइम मशीन

नील बचपन से ही बड़ा प्रतिभाशाली था।विज्ञान में उसकी विशेष रूचि थी। एक से बढ़कर एक मशीनेंउसकी कल्पना में आती रहती थी। इसके लिए वह अपने वैज्ञानिक मित्रों के साथ किसी न किसी प्रयोगशाला में डटा रहता।वे जो कल्पनाएं करते,उन्हें पूरी करने में जी-जान से जुट जाते।उसे पूरा करने के बाद ही उन्हें कुछ नया करने का संतोष मिलता, इसी तरह थंडरहिट का भी जन्म हुआ।

थंडरहिट एक अजीब महाशक्तिशाली मोटर बोट थी।एक चमत्कारी आविष्कार।वह न केवल पानी पर चलने वाली मोटर बोट थी,बल्कि पनडुब्बी की तरह घंटों पानी के भीतर रह सकती थी।हवा में उसे यान की तरह उड़ाया जा सकता था।

पहले उसे वन सीटर बनाने की बात थी।मगर नासा के अवकाश प्राप्त वैज्ञानिकों ने उसे टू सीटर बना दिया।इन वैज्ञानिकों की सलाह और सहयोग से ही थंडरहिट इतनी चमत्कारी बन सकी।इसमें अत्यंत शक्तिशाली 03 इंजन लगे हुए थे।उन्हें आवश्यकतानुसार एक साथ ही चलाने या एक ही इंजन से काम लेने की व्यवस्था थी।

वैज्ञानिकों ने उसमें एक रॉकेट लांचर भी फिट किया था।उसके लांचिंग पैड पर एक छोटा सा रॉकेट भी तैयार था।था तो वह छोटा,मगर बड़ा ही विनाशकारी।इसीलिए वैज्ञानिकों ने उसे किसी मुश्किल समय में उपयोग करने की अनुमति दी थी।वह भी उनकी पूर्व अनुमति लेकर,क्योंकि वे जानते थे कि इसका गलत प्रयोग हजारों निर्दोष प्राणियों की जान ले सकता है।

मगर सबसे अजीब उसमें एक और व्यवस्था थी।एक बटन दबाते ही,थंडरहिट के तीन मीटर के क्षेत्र में एक सुरक्षा कवच खड़ा हो जाता था।उसके भीतर वायु तक प्रवेश  नहीं कर सकती थी।यह सामान्य ईंधन के अलावा सौर ऊर्जा से भी चल सकती थी।इस थंडरहिट में पैराशूट भी लगा हुआ था,अन्यथा पृथ्वी की गुरूत्वाकर्षण शक्ति थंडरहिट को भारी नुकसान पहुंचा सकती थी।

नील की तरह ही राबर्ट भी बड़ा प्रतिभाशाली था।एक अच्छे वैज्ञानिक मस्तिष्क वाला।उसने एक ऐसी टाइम मशीन बनायी थी जो दुनियाभर के वैज्ञानिकों में चर्चा का विषय बन चुकी थी।इसमें भी उसने नासा के अवकाश प्राप्त वैज्ञानिकों की मदद ली थी।

इसका कम्प्युटराइज्ड राडार पटल हजारों लाखों किलोमीटर दूर से आने वाली ध्वनि तरंगों को पकड़ लेता था।सूक्ष्म से सूक्ष्म ध्वनि तरंगें उससे बचकर आगे नहीं बढ़ सकती थीं,चाहे वे किसी भी कूट भाषा में हों।उन्हें तुरन्त डी-कोड करने वाली मशीन लगी थी इस टाइम मशीन में।

इन्हीं ध्वनि तरंगों की मदद से वह भविष्य में घटने वाली घटनाओं का संकेत दे सकती थीं।अतीत की घटनाओं को पकड़ सकती थीं।यह सारे गुण उसमें लगे कम्प्युटर में थे।इस कम्प्युटर को बनाने में उसे दसियों प्रयोगशालाओं में काम करना पड़ा था।अनेक वैज्ञानिकों का सहयोग इस टाइम मशीन को फाइनल शक्ल देने में मिला हुआ था।इसीलिए नील और राबर्ट की यह जोड़ी सब जगह मशहूर हो चुकी थी।नील ने एक दिन हंसकर राबर्ट से पूछा-‘‘राबर्ट क्या मैं थंडरहिट का शक्ति परीक्षण कर सकता हूं ?”

‘‘क्यों नहीं।‘‘कहने को तो राबर्ट बोल गया,मगर वह भीतर से चकित था। आखिर नील करना क्या चाहता है ?क्यों उसने यह बात की थी।

‘‘राबर्ट,मैं अपने थंडरहिट को आकाश में ले जाना चाहता हूं।‘‘

इस बार राबर्ट भी मुस्कराकर बोला-‘‘नील क्यों मेरा सिर खा रहे हो ?

नील ने भी मुस्कराकर जवाब दिया-‘‘क्योंकि वह मुझे बड़ा टेस्टी लगता है।

राबर्ट गंभीर होकर बोला-‘‘मजाक छोड़ो,चलो कर लो परीक्षण लेकिन यह तो बताओ कि तुम आकाश में जाना किधर चाहते हो ?‘‘

‘‘मैं देखना चाहता हूं कि हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियां थंडरहिट से कैसी नजर आती हैं।‘‘

सुनते ही राबर्ट का चेहरा गंभीर हो उठा।

‘‘क्या बात है राबर्ट ?‘‘नील थोड़ा उत्सुक हुआ।

‘‘जानते हो वह किसका क्षेत्र है ?

राबर्ट का यह प्रश्न सुनते ही नील समझ गया कि राबर्ट क्या चाहता है,फिर उसे अनेकों पुस्तकों में पढ़ी हुई बातें याद हो आईं।फिर भी पूछा-‘‘तुम्ही बताओ।

‘‘वह देवों के देव महादेव का क्षेत्र है।उस क्षेत्र से उनकी अनुमति के बिना एक चिड़िया भी नहीं गुजर सकती।‘‘

‘‘इतने शक्तिशाली हैं वे ?‘‘नील ने आश्चर्य से पूछा।

‘‘पहले वे मामूली इन्सान थे,मगर अपनी तपस्या और साधना के बल पर वे बन गये मृत्युंजय,देवों के भी देव।अब उनकी शक्ति को कोई चुनौती नहीं दे सकता।किसी ने दी भी तो उसने मुंह की खाई।वे परमपिता परमात्मा की शक्ति का अंश हैं जैसे हमारे क्राइस्ट और खुदा।

‘‘राबर्ट,यह कैलाशवासी शिव और उनकी महाशक्ति सब काल्पनिक बातें हैं।मुझे आश्चर्य है कि तुम्हारे जैसा वैज्ञानिक भी इन बातों पर विश्वास करता है?‘‘ कुछ ऐसा ही नील वाटसन से भी कहना चाहता था,मगर हिम्मत नहीं पड़ी।

‘‘नील मैं तुम्हें कोई प्रवचन नहीं दे रहा हूं।‘‘आगे राबर्ट ने करीब-करीब वही बातें कहीं,जो वाटसन ने कही थी।

राबर्ट बोला-‘‘तुम अवश्य जाओ।थंडरहिट का परीक्षण करो,मगर ध्यान रहे कि किसी भी तरह उस शक्ति की अवमानना नहीं होनी चाहिए।वे तुम्हें दंडित कर सकते हैं।पर नहीं करेंगे।वे बड़े क्षमाशील हैं।इसी से उनका नाम आशुतोष भी है।उनके क्षेत्र में प्रवेश

करने से पहले उन्हें प्रणाम अवश्य कर लेना।मेरे टाइम मशीन के कंपन संकेत दे रहे हैं कि........।‘‘कहता-कहता राबर्ट अचानक चुप हो गया।

नील चौंककर बोला-‘‘राबर्ट तुम कहते-कहते चुप क्यों हो गये।बताओ न तुम्हारी मशीन क्या संकेत दे रही है ?

     राबर्ट बोला,--“नील,तुम दो-तीन साल पहले भारत गये थे।उस समय वहां के कुछ मछुआरों से तुम्हारी दोस्ती हुयी थी।क्यों?”

हां।कृष्णन और अरुण स्वामी।मैं उस समय थंडरहिट बना रहा था।सुन कर वे मेरे दीवाने हो गये।कहने लगे,--“यहां अक्सर कोई न कोई तूफान आता रहता है।सैकड़ों मछुआरे उसमें फंस जाते हैं। आप साल में एक-दो बार यहां आ जाया करें।इससे हमें बड़ी राहत मिलेगी।मैं उनके प्रति वचनबद्ध हो गया।---हां,तुम्हारी टाइम मशीन?”

 

राबर्ट बोला-- मेरी मशीन उसी का संकेत दे रही है।तुम्हें उन्हीं के लिये बीच में लौटना पड़ सकता है।

उस विपत्ति से बचने के लिए तुम्हें महादेव शक्ति की तरंगे भेजेंगे।उन्हें सब पहले से ज्ञात है।वे हम लोगों का कोई अनिष्ट नहीं होने देंगे।

नील राबर्ट के इस लंबे-चौड़े भाषण से ऊब रहा था।उसका धैर्य जवाब दे रहा था।वह हंसकर बोला-‘‘राबर्ट अब मेरे पास वक्त नहीं है।चलो,तुम्हारी टाइम मशीन के संकेत सच हो सकते हैं,लेकिन यही तो मेरे थंडरहिट का शक्ति परीक्षण होगा।चलता हूं।

तुरन्त थंडरहिट बन्दूक से छूटी गोली की तरह ऊपर उठा और आकाश की ऊंचाइयों में खो गया।राबर्ट उस ओर देखता भर रहा।(क्रमशः)

                                     ०००

लेखक-प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव

11मार्च,1929 को जौनपुर के खरौना गांव में जन्म।31जुलाई2016 को लखनऊ में आकस्मिक निधन।शुरुआती पढ़ाई जौनपुर में करने के बाद बनारस युनिवर्सिटी से हिन्दी साहित्य में एम00।उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग में विभिन्न पदों पर सरकारी नौकरी।देश की प्रमुख स्थापित पत्र पत्रिकाओं सरस्वती,कल्पना, प्रसाद,ज्ञानोदय, साप्ताहिक हिन्दुस्तान,धर्मयुग,कहानी,नई कहानी, विशाल भारत,आदि में कहानियों,नाटकों,लेखों,तथा रेडियो नाटकों, रूपकों के अलावा प्रचुर मात्रा में बाल साहित्य का प्रकाशन।

     आकाशवाणी के इलाहाबाद केन्द्र से नियमित नाटकों एवं कहानियों का प्रसारण।बाल कहानियों,नाटकों,लेखों की अब तक पचास से अधिक पुस्तकें प्रकाशित।वतन है हिन्दोस्तां हमारा(भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत)अरुण यह मधुमय देश हमारा”“यह धरती है बलिदान की”“जिस देश में हमने जन्म लिया”“मेरा देश जागे”“अमर बलिदान”“मदारी का खेल”“मंदिर का कलश”“हम सेवक आपके”“आंखों का ताराआदि बाल साहित्य की प्रमुख पुस्तकें।इसके साथ ही शिक्षा विभाग के लिये निर्मित लगभग तीन सौ से अधिक वृत्त चित्रों का लेखन कार्य।1950 के आस पास शुरू हुआ लेखन एवम सृजन का यह सफ़र मृत्यु पर्यंत जारी रहा। 2012में नेशनल बुक ट्रस्ट,इंडिया से बाल उपन्यासमौत के चंगुल में तथा 2018 में बाल नाटकों का संग्रह “एक तमाशा ऐसा भी” प्रकाशित।

    

                          

                       

गुरुवार, 30 जुलाई 2020

खण्डहर के शैतान

(आज 31 जुलाई को मेरे पिता जी प्रतिष्ठित बाल साहित्यकार आदरणीय प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव जी की पुण्य तिथि है।2016 की 31 जुलाई को ही 87 वर्ष की आयु में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया था।इस बार कोरोना संकट को देखते हुए मैं उनकी स्मृति में कोई साहित्यिक आयोजन भी नहीं कर पा रहा।इसी लिए आज यहाँ मैं पिता जी की एक अप्रकाशित कहानी प्रकाशित कर रहा।उनकी रचनाओं को पाठकों तक पहुँचाना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।–डा0 हेमन्त कुमार)    

                     (ग्रामीण परिवेश की बाल कहानी)

खण्डहर के शैतान----।

                  

                            गांव से बाहर एक बड़ा सा खंडहर था।खंडहर को देखने से लगता था कि कभी वहां बड़ा सा परिवार रहता होगा।मगर आज चरवाहे तक उसके पास जाने से डरते थे।दिन भर तो वहां सन्नाटा पसरा रहता था।मगर रात होते ही खंडहर में से तरह की आवाजें आने लगती थीं।कभी सीटी बजने की,कभी घंटियों की टिनटिन टुनटुन,कभी किटकिट कुटकुट जैसे दांतों से दांत रगड़े जा रहे हों।सुन कर ही गांव वाले सहम जाते।घर से बाहर निकलने तक का साहस न होता।

                    गांव के बड़े बूढ़े बताते हैं कि एक बार किसी बड़े मेले में पूरा परिवार गया हुआ था।अचानक वहां भगदड़ मच गई।हजारों लोग मारे गये।शायद वो लोग भी उस भगदड़ में कुचले गये।क्योंकि फ़िर कोई लौट कर नहीं आया।गांव के पुरनिया लोग बताते हैं कि इस तरह की अकाल मृत्यु में वे प्रेत या शैतान बन जाते हैं।वे ही लोग अब शैतान बन कर अब अपने इस खंडहर में रह रहे हैं।इस तरह की आवाजें निकाल कर वो लोगों को सावधान करते हैं---कोई उनकी शान्ति भंग करने के लिये खंडहर के निकट न आये।

          जब से ये शैतान उस खंडहर में आये गांव में एक अजीब बात  शुरू हो गयी।लोगों की रसोईं या कहीं और कुछ भी खाने का सामान रखा रहता वह रात में ही सफ़ाचट हो जाता।जबकि उनके घर में न ही कोई चूहा दिखता न ही बिल्ली।जब चूहे ही नहीं थे तो बिल्ली कहां से आती।लोग सोचते-क्या खण्डहर वाले शैतान ही आकर सब कुछ सफ़ाचट कर जाते हैं।कुछ लोग कहते—“भैया भूत,प्रेत या शैतानों को कहां भूख प्यास लगती है।”

       इधर लोग जितना ही परेशान थे उतना ही खण्डहर में रहने वाले मजे ले रहे थे।पूरे खण्डहर पर उनका साम्राज्य था।उनके राजा रानी थे,प्रजा थी,गुप्तचर थे,सेना के छापामार दस्ते थे।उनकी छापामार सेना रात होते ही भोजन की लूटपाट करने गांव में पहुंच जाती।खण्डहर से लेकर गांव तक में गुप्तचर फ़ैल जाते।कहीं कोई खतरा तो नहीं है।यहां खण्डहर में बचे लोग अपनी ड्यूटी में सक्रिय हो जाते। बाजार से चुरा कर लाई गई सीटियां और घण्टियां बजने लगतीं।

                      प्रशिक्षित लोग अपने दांतों से कुटकुट और किटकिट की ध्वनियां करने लगते।गांव वाले डर से सहम कर अपने घरों में दुबक जाते।इधर घरों में छापामार सैनिक पूरी ताकत से टूट पड़ते।देखते ही देखते जो भी मिला सफ़ाचट। लोग अपने बिस्तरों में ऐसे दुबके रहते कि किसी आहट पर भी बाहर निकल कर न देखते।स्वयं पेट भरने के बाद वे अपने साथियों के लिये भोजन पीठ पर भी लाद लेते। सबके खण्डहर में लौट आने के बाद सारी आवाजें भी बंद हो जातीं।

         अचानक एक दिन खण्डहर के पास से एक बारात गुजरी।शैतान मँडली छिप कर बाजे-गाजे और रोशनी का आनन्द उठाने लगी।एक शैतान कुछ ज्यादा ही फ़ितरती दिमाग का था।वह राजा से बोला—“राजा जी,तमाशा तो बड़ा अच्छा था।

      राजा सब जानता था।हंस कर बोला—“यह तमाशा नहीं,बारात थी।

      वह शैतान बोला—“क्यों न हम लोग भी एक दिन ऐसे ही बारात निकालें?

      अरे मूर्खों,अभी तक हम लोग दुनिया की नजर से यहां छिपे हुये हैं।हमने ऐसा किया तो दुनिया हमारे बारे में सब कुछ जान जायेगी।बाहर हमारे कम दुश्मन हैं?कुत्ते बिल्ली से लेकर इंसान तक हमारी जान के प्यासे रहते हैं।अपनी इस खण्डहर की दुनिया में चुपचाप पड़े रहो।खाओ,पिओ और मौज करो।राजा ने उन्हें समझाया।

        लेकिन कहा गया है कि विनाश काले विपरीत बुद्धि।कुछ शैतान अपनी सनक से बाज नहीं आए।बारात न सही,अपनी बस्ती को ही झंडी आदि से सजाया जा सकता है।उसके लिये जरूरत का सामान वे कुछ घरों में देख चुके थे।

         अगले दिन गांव के एक छात्र लाल चंद को स्कूल का अपना एक प्रोजेक्ट पूरा करने के लिये गोंद की जरूरत पड़ी।मगर पूरे घर में कहीं भी गोंद का पैकेट नहीं मिला।इसी तरह गोकुल की मेज पर से रंगीन कागजों की सारी सीट ही गायब थी। विशाल के पापा को सुतली की जरूरत पड़ी तो सुतली की पूरी लुंड़ी ही गायब थी। लाल चंद,गोकुल,विशाल अपने घरों के आसपास भी ढूंढ़ने लगे,अचानक उन्हें कुछ दूरी पर सुतली का कुछ हिस्सा दिखाई पड़ा।उसका एक सिरा खण्डहर की ओर गया हुआ था।वे लोग समझ नहीं पाए कि माजरा क्या है।

            दिन का वक्त होने से वे निडर होकर खण्डहर की ओर चल पड़े।यहां उन्होंने जो दृश्य देखा उसे देख वो दंग रह गये।सैकड़ों चूहे दौड़ दौड़ कर झंडी बनाने और टांगने में लगे हुये थे।तीनों ने फ़ौरन ही गांव वालों को ये खबर दी।गांव वालों ने भी आकर वह तमाशा देखा।वो समझ गये कि खण्डहर के शैतान और कोई नहीं ये चूहे ही थे।शैतानों की सारी पोल पट्टी खुल गई।

          देखते ही देखते लोग खण्डहर की सारी बिलों को खोदने लगे।उनमें उन्हें सीटियां और घंटियां भी मिल गयीं।चूहों की इस सूझ बूझ से सब चकित रह गये।

            कहते हैं कि अपना बसेरा छिन जाने पर तबसे चूहे इंसानों के घरों में ही रहने लगे। लेकिन अब वे खण्डहर के शैतानों से भी ज्यादा खुराफ़ाती हो गये थे। पहले वे केवल भोजन सामग्री से मतलब रखते थे,मगर अब तो वे घर की किताब कापियों से लेकर कपड़े लत्ते तक कुतरने लगे।लेकिन अब तो कुछ हो भी नहीं सकता था।उन्हें बेदखल करके खण्डहर को खेत बना दिया गया था।आखिर बेचारे जाते भी तो कहां।

    अब तो इंसानों के घरों में रहते हुये भी वे उनकी पकड़ से दूर उनके साथ आंख मिचौली खेलते हैं चूहेदानी को मुंह चिढ़ाते हैं।उन्हें मारने के लिये रखी गयी जहर की गोलियों से फ़ुटबाल खेलते हैं।उनकी तो हर तरफ़ से बल्ले बल्ले।

 राजा ने एक दिन उनसे मुस्कराकर पूछा,--- कहो भाइयों,कैसी कट रही है?

 पूरी दुनिया की शैतान मण्डली ने एक स्वर से चिल्ला कर कहा—“हिप हिप हुर्रे।

                                  000

 

लेखक-प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव

11मार्च,1929 को जौनपुर के खरौना गांव में जन्म।31जुलाई2016 को लखनऊ में आकस्मिक निधन।शुरुआती पढ़ाई जौनपुर में करने के बाद बनारस युनिवर्सिटी से हिन्दी साहित्य में एम00।उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग में विभिन्न पदों पर सरकारी नौकरी।देश की प्रमुख स्थापित पत्र पत्रिकाओं सरस्वती,कल्पना, प्रसाद,ज्ञानोदय, साप्ताहिक हिन्दुस्तान,धर्मयुग,कहानी,नई कहानी, विशाल भारत,आदि में कहानियों,नाटकों,लेखों,तथा रेडियो नाटकों, रूपकों के अलावा प्रचुर मात्रा में बाल साहित्य का प्रकाशन।

     आकाशवाणी के इलाहाबाद केन्द्र से नियमित नाटकों एवं कहानियों का प्रसारण।बाल कहानियों,नाटकों,लेखों की अब तक पचास से अधिक पुस्तकें प्रकाशित।वतन है हिन्दोस्तां हमारा(भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत)अरुण यह मधुमय देश हमारा”“यह धरती है बलिदान की”“जिस देश में हमने जन्म लिया”“मेरा देश जागे”“अमर बलिदान”“मदारी का खेल”“मंदिर का कलश”“हम सेवक आपके”“आंखों का ताराआदि बाल साहित्य की प्रमुख पुस्तकें।इसके साथ ही शिक्षा विभाग के लिये निर्मित लगभग तीन सौ से अधिक वृत्त चित्रों का लेखन कार्य।1950 के आस पास शुरू हुआ लेखन एवम सृजन का यह सफ़र मृत्यु पर्यंत जारी रहा। 2012में नेशनल बुक ट्रस्ट,इंडिया से बाल उपन्यासमौत के चंगुल में तथा 2018प्रकाशित।

 

 


शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

गांव की पुकार


गांव की पुकार

चल बापू
अब लौट चलें हम
फिर से अपने गांव।

बचपन की यदों की गठरी
खुलने को बेताब
सोंधी माटी दरवज्जे की
क्यूँ खोती अपनी ताब
महुआ टपक रहा सोने सा
पर खो गई उसकी आब।
चल बापू
अब लौट चलें हम
फिर से अपने गांव।


गिल्ली डंडा सीसो पाती
छुटपन के सब संगी साथी
बूढ़ी गैया व्याकुल नजरें
रास्ता रही निहार
खेतों में पसरा सन्नाटा
जैसे चढ़ा बुखार।
चल बापू
अब लौट चलें हम
फिर से अपने गांव।

नीम तले की चौरा माई
बरगद बाबा से अब तो बस
करती ये मनुहार
लौटा लो सारे बच्चों को
जो बसे समुंदर पार।
चल बापू
अब लौट चलें हम
फिर से अपने गांव।


गांव छोड़ते बखत तो तूने
आजी से बोला ही होगा
जल्दी ही आऊंगा वापस
पाती भी भेजा होगा
आजी की पथराई आंखें
तुझको रहीं पुकार
चल बापू
अब लौट चलें हम
फिर से अपने गांव।
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डॉ हेमन्त कुमार


शनिवार, 23 मई 2020

एक गिलहरी


एक गिलहरी
बड़े सबेरे मेरे आंगन
एक गिलहरी आती
किट किट कुट कुट
किट किट कुट कुट
अपने दांत बजाती।

उसी समय सारी गौरैया
चूं चूं करती आती
नहीं दिया क्यूं दाना पानी
फ़ुदक फ़ुदक सब गातीं।

झुंड कई चिड़ियों का भी
अपने संग वो लातीं
ढकले में पानी पड़ते ही
सब मिल खूब नहाती।

चावल के दाने मिलते ही
बड़े प्रेम से खातीं
शाम को फ़िर आयेंगे हम सब
कह कर के उड़ जातीं।
0000

डा0हेमन्त कुमार