सोमवार, 27 जुलाई 2015

मोती का इंटरव्यू

जब नौकरी की तलाश में,
मोती    कुत्ता   आया।
घंटी बजा, बुलाकर उसको,
भालू    ने   समझाया।

उसे  नौकरी  दूंगा जो कि,
बोल   सके  दो  भाषा।
सुनकर भी मोती कुत्ते को,
हुई  न  तनिक निराशा।

बोला  आती  भाषाएं दो,
लो  मैं   तुम्हें  सुनाऊं।
पहले   तेज-तेज  गुर्राया,
और  फिर  बोला म्याऊं।
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डा0अरविन्द दुबे
पेशे से चिकित्सक एवम शिशु रोग विशेषज्ञ डा0 अरविन्द दुबे बाल एवम विज्ञान साहित्य लेखन के क्षेत्र में एक चर्चित एवम प्रतिष्ठित हस्ताक्षर हैं।देश की प्रतिष्ठित पत्र,पत्रिकाओं में लेखन के साथ ही रेडियो,टेलीविजन एवम शैक्षिक दूरदर्शन के कर्यक्रमों हेतु सैकड़ों आलेख लिखने के साथ ही कार्यक्रम प्रजेण्टर के रूप में भी कार्य।आपकी अभी तक प्रकाशीत महत्वपूर्ण पुस्तकें हैं--जानें अपने जिगर को,खुद पहचानें रोग,रेडियेशन ऐन इनविजिबिल रे आफ़ लाइफ़-एक्स रे,न्युक्लियर पावर मिथ्स ऐण्ड रेडियेशन्स, न्युक्लियर रेडिएशन इन मेडिसिन।वर्तमान में भी आप अपने चिकित्सीय कार्य के साथ लेखन में लगातर सक्रिय हैं।



बुधवार, 22 जुलाई 2015

नन्हां पौधा

पहले था इक नहां पौधा
अब मैं हूं एक बड़ा सा पेड़
हरे भरे जंगल में भैया
मुझसे भी कुछ बड़े हैं पेड़
बड़े पेड़ कुछ मोटे पेड़।

जमीन के अंदर है मेरी जड़
उसके ऊपर तना बना है
तने से निकली शाखाएं हैं
शाखाओं में लगी पत्तियां
लगी पत्तियां हरी पत्तियां।

पानी खाद मुझे जो दोगे
रहूंगा हरदम हरा भरा
पर काटोगे मुझको भैया
होगा जग का नुकसान बड़ा
नुकसान बड़ा तूफ़ान बड़ा।
पहले था इक नन्हां पौधा
अब मैं हूं इक बड़ा सा पेड़।
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डा0हेमन्त कुमार

गुरुवार, 16 जुलाई 2015

जंगल का दोस्त

एक छोटी सी बच्ची थी छोटू प्यारी सी गोलमटोल,मगर अव्वल दर्जे की शरारती।उसके पिता वन अधिकारी थे झारंखड के एक छोटे शहर में रहती थी वो पढ़ाई की बात आते ही बुखार लग जाता उसे।तीसरे कक्षा की छात्र छोटू कई मामले में समझदारी खू दिखाती। पापा की लाड़ली थी।एक दिन उसके पिता ने घर आते ही कहा,नीरा आज हम जंगल जायेंगे।छोटू बहुत ही ख़ुश हो गयी,एक तो जंगल में मंगल दूसरे उसकी पढाई से छुट्टी ..... दीदी खिलौने ले लेना मेरी,ख़ुशी से वो लगभग चीख़ रही थी माँ टोनी को(छोटा कुत्ता ) ले लेना।नियत समय पर जीप गई,चारो भाई बहन,माँ पिताजी ,चपरासी धन्नु जल्दी चलो पापा की हड़बड़ी आज अच्छी लग रही थी छोटू को पहाड़ी सड़कें कहीं ऊपर कहीं नीचे जैसे ही सड़क टूटी होती जीप उछल जाती सबके सब हँस पड़ते चा-चा....चीं चीं काँव- काँव ड्राईवर कुजूर ने तुरन्त भाँप लिया सर जानवर है शायद बाघ छोटा नागपुर में जानवर अधिक है और वन अधिकारी तो वैसे भी वहीं जायेंगे जहाँ पेड़ हों,जानवर हों अचानक ज़ोर से जीप रूकी सभी सहम से गए एक विशालकाय हाथी सड़क पर कराह रहा ' गाड़ी रोको' पापा ने कह सर जंगली हाथी ख़तरनाक होते हैं आस-पास और भी हाथी होगे गाड़ी रूक गई सारे बच्चे दुबक शाही जी गाड़ी से उतर ए। हाथी तड़प रहा थाउसके पैर में बड़ा काँटा चुभा था पैर पटक रहा था वो धीरे-धीरे सारे लोग गाड़ी से उतर आये शाही जी ने फ़र्स्ट एड बाक्स निकलवाया और लग गए काँटा निकालने 'आह ' निकल गया सभी खुशी से झूम उठे हाथी की आँखों से अविरल आँसू बह रहे सबने हाथी को प्यार किया और आगे बढ़ चले "सुहाना सफ़र और ये मौसम हँसी " सामने' मारोमार' का गेस्ट हाउस था सभी थके माँदे,मगर छोटू के मन में वही हाथी की बात थी कहाँ होगा,कैसे काँटे लगे,कब वो नींद की गोद में चली गई सुबह कोलाहल से आँखें खुली आँखे मलते बाहर गई बहुत भीड़ थी समझ से बाहर लगी बात नज़रें उठाई,पूरा गेस्ट हाउस फूलों से सज़ा था ।किसने किया?कौन था ?तभी सबकी निगाह कीचड़ पर हाथी के निशानों ( पैर ) पर पड़रात में हाथी सज़ा गया थाशायद वो प्यार के बदले प्यार देना जानता था
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लेखिका-निवेदिता मिश्रा झा
सम्प्रति दिल्ली में निवास।पत्रकार व काउन्सलर।तीन पुस्तक प्रकाशित,चार साझा संग्रह।नीरा मेरी माँ है ,मैं नदी हूँ, देवदार के आँसू निवेदिता जी की यह पहली बाल कहानी है।
मोबाइल--9811783898