रविवार, 12 अगस्त 2018

आपरेशन थंडरहिट (2)


आपरेशन थंडरहिट
 (एक नया अनोखा रोमांच)
                                                                    लेखक-प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव
2. आज का थका हुआ वाटसन

        काफी वक्त गुजर चुका था। इस वक्त ने आज वाटसन को थका हुआ और बूढ़ा बना दिया था। शरीर से भी और मन से भी।उम्र के साथ ही उसका उत्साह,साहस सब ढीले पड़ चले थे।पिछली बातें याद कर उसे बड़ी तकलीफ होती है।उनसे ज्यादा वह अपने इन अपंग बच्चों के लिए चिंतित था।अब इन अपंग बच्चों का क्या होगा?उसी की तरह सनकी मगर जोशीले साथी मिल गये थे।मगर अब वे भी धीरे-धीरे अपने हाथ खड़े करने लगे थे।इन्हीं बच्चों के लिए वह आजीवन कुंवारा रहा।शादी की होती तो उसी के बच्चे उसका बोझ संभाल लेते।
            लाचार वाटसन एक एक कर उन बच्चों के माता पिता से भी मिला।अपनी परेशानी बतायी।कहा-अब वे अपने बच्चों को वापस ले लें।पर उन्होंने भी साफ कह दिया-‘‘अब इन बच्चों को संभालना हमारे वश का नहीं है।हम आर्थिक मदद कर सकते हैं।बोलो कितने पैसे चाहिए ?
            वाटसन भीतर से छटपटा उठता।काश इन पैसों से वक्त के पहियों को रोका जा सकता।काश इन पैसों से उसके शरीर की थकान उतर सकती।उसके मन और मस्तिष्क में फिर से एक नई ऊर्जा भरी जा सकती।लाचार वाटसन हर दरवाजे से मन में एक निराशा और आंखों में उदासी लिए लौट आता।
            वाटसन ने अब जान लिया कि तरक्की के रास्ते चाहे जितने चौड़े होते जा रहे हों।वैज्ञानिक ब्रह्मांड के नक्षत्रों और ग्रहों में जल और जीवन की खोज कर रहा हो।मगर अपने ही खून और रिश्तों के लिए उसके मन के गलियारे उतने ही तंग होते जा रहे हैं। 
            उस दिन थका हारा सा वाटसन घर पहुंचा तो चौंक पड़ा।किटी,पीटर,जेनी, रोजी,जेम्स सभी मुस्कराते हुए उसके स्वागत में खड़े थे।
            पीटर हंस कर बोला-‘‘अंकल, हमें मालूम है कि आप क्यों इतना परेशान हैं। मगर अब परेशानी छोड़िये।खुश हो जाइये।हम सब मिलकर यहां का काम संभालेंगे। किसको क्या करना है,यह हम लोगों ने तय कर लिया।‘‘
            वाटसन की खुशी का ठिकाना न रहा।उसने सपने में भी नहीं सोचा था-उसके ये बच्चे इतने सयाने और समझदार हो गये।वह भविष्य की चिंताओं को भूल सा गया।उसका मन हल्का हो उठा।
            वैसे वाटसन की नजर अपने भतीजे नील पर भी टिकी हुई थी।वह कच्ची उम्र में ही 8-10 साल से वैज्ञानिकों के साथ कुछ बनाने में जुटा हुआ था,मगर जब भी उसे वक्त मिलता वाटसन से मिलने चला आता।वहां के अपंग बच्चों में भी उसे बड़ी दिलचस्पी थी।
            वाटसन को इसी से विशवास था कि नील उसकी जगह ले सकता है, लेकिन नील ने अपनी मजबूरी बताई।वह पिछली बार भारत गया था,तो कुछ मछुवारे बच्चों से उसकी दोस्ती हो गई थी।उसमें कृष्णन और अरूण स्वामी मुख्य थे।उन्होंने नील से अपनी समस्याएं बतायीं--यहां हर साल कोई न कोई तूफान आता रहता है।सैकड़ों मछुवारों के प्राण संकट में फंस जाते हैं।चेतावनी मिलने के बाद भी समुद्र में नौकायें उतारना उनकी मजबूरी थी।क्योंकि मछली पकड़ना ही उनकी रोजी-रोटी का साधन था।उन्हीं को ध्यान में रखकर नील आजकल एक चमत्कारी मोटर बोट थंडर हिट बनाने में जुटा हुआ था।यह करीब-करीब बनकर तैयार हो चुकी थी।इस बोट का जिक्र आते ही सारे मछुवारे उसके दीवाने हो गये।उन्होंने आग्रह किया कि तूफान के दिनों में वह कुछ समय यहां आकर रहा करे।इससे उन्हें बड़ी राहत मिलेगी।
            नील बोला-‘‘इसीलिए अंकल मेरी उनके प्रति वचनबद्धता है।पता नहीं कब उनका बुलावा आ जाय।ऐसा न होता तो मैं जरूर आपकी सहायता करता।फिर भी मुझे इन बच्चों का पूरा ध्यान है।जब भी यहां आऊंगा आप मुझे अपने पास पायेंगे।
            अब इसके आगे वाटसन क्या बोलता,चुप रह गया।नील ने बताया-‘‘मेरी यह थंडरहिट बोट, बोट ही नहीं है,यह पनडुब्बी की तरह जल के अंदर भी जा सकती है।यान की तरह आकाश में उड़ भी सकती है।इसमें मुझे नासा के कुछ अवकाश  प्राप्त वैज्ञानिकों से भी बड़ा सहयोग मिला है।अब मैं ऊपर आकाश में इसका परीक्षण करना चाहता हूं।
            वाटसन बोला-‘‘नील तुम्हारी सफलता पर मुझे बड़ी प्रसन्नता है,मगर इस परीक्षण के लिए तुम थंडरहिट को किधर ले जाओगे?‘‘
            ‘‘अंकल, मेरी बड़ी इच्छा है कि मैं अपने थंडरहिट से हिमालय क्षेत्र के दर्शन  करूं।
‘‘नहीं नील,मेरी राय है कि तुम परीक्षण के लिए कोई दूसरी दिशा चुन लो।
‘‘वह क्यों अंकल?‘‘
‘‘तुम यह मत भूलो कि वह देवों के देव महादेव का क्षेत्र है।अत्यंत शक्तिशाली  मृत्युंजय।उस क्षेत्र से उनकी अनुमति के बिना गुजरना ठीक नहीं है।पूरा विश्व उनका सम्मान करता है।
‘‘लेकिन अंकल,मेरे पास उनसे मिलने का समय नहीं रहेगा।बाद में कभी उनसे मिलकर क्षमा माग लूंगा।
‘‘नील,तुम क्षमा नहीं मागोगे तो भी वे तुम्हें क्षमा कर देंगे।वे आशुतोष हैं।हां उस क्षेत्र में प्रवेश से पहले उन्हें प्रणाम कर क्षमा जरूर मांग लेना।वे संकट में स्मरण मात्र से कल्याण करते हैं।विश्व भ्रमण के समय हर संकट में मैंने उनका स्मरण किया था।दुआ मांगी थी।कभी मत भूलना,क्राइस्ट,मोहम्मद,महादेव सभी उस परम पिता परमात्मा के अंश हैं।सभी हमें शक्ति देते हैं।तुम्हारा यह परीक्षण सफल और मंगलमय हो,वाटसन बोला।
इस प्रकार वाटसन का आशीर्वाद लेकर नील,वहां से निकल पड़ा।यहां आने की बात वह अपने साथी और टाइम मशीन के आविष्कारक राबर्ट से नहीं बता पाया था।क्योंकि वह अपनी मशीन के बारे में कुछ और सलाह लेने के लिए कुछ वैज्ञानिकों के पास निकला हुआ था।
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                                       (क्रमशः)
लेखक-प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव
11मार्च,1929 को जौनपुर के खरौना गांव में जन्म।31 जुलाई2016 को लखनऊ में आकस्मिक निधन शुरुआती पढ़ाई जौनपुर में करने के बाद बनारस युनिवर्सिटी से हिन्दी साहित्य में एम0ए0।उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग में विभिन्न पदों पर सरकारी नौकरी।देश की प्रमुख स्थापित पत्र पत्रिकाओं सरस्वती,कल्पना, प्रसाद,ज्ञानोदय, साप्ताहिक हिन्दुस्तान,धर्मयुग,कहानी,नई कहानी, विशाल भारत,आदि में कहानियों,नाटकों,लेखों,तथा रेडियो नाटकों, रूपकों के अलावा प्रचुर मात्रा में बाल साहित्य का प्रकाशन।
               आकाशवाणी के इलाहाबाद केन्द्र से नियमित नाटकों एवं कहानियों का प्रसारण।बाल कहानियों,नाटकों,लेखों की पचास से अधिक पुस्तकें प्रकाशित।वतन है हिन्दोस्तां हमारा(भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत)अरुण यह मधुमय देश हमारा”“यह धरती है बलिदान की”“जिस देश में हमने जन्म लिया”“मेरा देश जागे”“अमर बलिदान”“मदारी का खेल”“मंदिर का कलश”“हम सेवक आपके”“आंखों का ताराआदि बाल साहित्य की प्रमुख पुस्तकें।इसके साथ ही शिक्षा विभाग के लिये निर्मित लगभग तीन सौ से अधिक वृत्त चित्रों का लेखन कार्य।1950 के आस पास शुरू हुआ लेखन एवम सृजन का यह सफ़र मृत्यु पर्यंत जारी रहा । 2012में नेशनल बुक ट्रस्ट,इंडिया से बाल उपन्यास मौत के चंगुल में प्रकाशित।एक बाल नाटक संग्रह नेशनल बुक ट्रस्ट से प्रकाशनाधीन ।





रविवार, 5 अगस्त 2018

आपरेशन थंडरहिट


     वरिष्ठ बाल साहित्यकार और मेरे पिता आदरणीय श्री प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव जी ने अपने अंतिम दिनों में अपना दूसरा बाल उपन्यास मौत से दोस्ती लिखा था।दुर्भाग्य से यह बाल उपन्यास पिता जी के जीवनकाल में प्रकाशित नहीं हो सका था।मुझे इस उपन्यास का शीर्षक आपरेशन थंडरहिट ज्यादा ठीक और उपयुक्त लग रहा है।इसलिए मैं पिता जी का यह उपन्यास आपरेशन थंडरहिट अपने ब्लॉग फुलबगिया पर सीरीज के रूप में प्रकाशित कर रहा।सप्ताह के हर रविवार और बृहस्पतिवार को इसका एक-एक भाग आप फुलबगिया पर पढ़ सकेंगे।
                                          


आपरेशन थंडरहिट
(एक नया अनोखा रोमांच)
                  लेखक-प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव


   कभी युवा था वाटसन

         किसी जमाने में जोश और जज्बे से भरपूर था वाटसन।लेकिन वह बहुत जिद्दी भी था।उसकी जिद्द के कारण ही अक्सर लोग उसे सनकी भी कह देते थे।उसकी ऐसी ही एक सनक ने एक दिन पूरी दुनिया में हलचल सी मचा दी थी।पूरी दुनिया में हर आदमी के दिमाग में बस एक ही सवाल था,अब आगे क्या होगा?
      क्या थी वाटसन की सनक?उसने दुनिया भर से पांच छः सौ अपंग बच्चे बटोर रखे थे।इनका वह एक स्कूल चलाता था।किसी की आंख नहीं तो कोई बहरा।किसी के हाथ नहीं तो किसी के पैर नहीं।कितना मुश्किल काम था।इसमें उसकी मदद के लिए उसी के जैसे चार-पांच सनकी,मगर जोशीले साथी भी मिल गये।इन बच्चों को वह ईश्वर की देन समझता था।इनके लिए वह बड़ा से बड़ा त्याग करने के लिए तैयार रहता।यहां तक कि उसने अपनी शादी तक नहीं की। वरना इन बच्चों का प्यार छिन जाता।
            इन बच्चों के लिए स्कूल में उसने बहुत कुछ जुटा रखा था।रंगीन और महकते फूलों से खिला बगीचा।मोर और बत्तखें।खरगोश और बिल्लियां।बत्तखें तो इतना शोख थीं कि कभी-कभी बच्चों के कमरे में घुस जाती।उनके खाने-पीने की चीजों पर चोंचें मारने लगती।बच्चों को भी इसमें बड़ा मजा आता था।
   मगर एक दिन तो वाटसन की सनक सीमा पार कर गई।जब उसने घोषणा की कि वह इन बच्चों को दुनिया की सैर कराना चाहता है।लोगों को अब उसके पागल होने में कोई संदेह नहीं रहा।जो असंभव है उसे वाटसन संभव करना चाहता है।
            मगर ऊपर वाला मेहरबान होता है तो सब कुछ संभव हो जाता है।वही तो वाटसन के साथ भी हुआ।फिर क्या था।न्यूयार्क के बड़े-बड़े धनवानों ने अपनी झोलियां खोल दीं।एक बड़ी जहाज कम्पनी के मालिक ने इन बच्चों की सुविधा वाला एक नया जहाज एटलसवाटसन के लिए प्रस्तुत कर दिया।अपने सारे टेक्नीशियन और इंजीनियर भी।कई डाक्टरों और सेविकाओं की मदद भी निःशुल्क मिल गई।बताइये, ऊपर वाला था न मेहरबान।
            लेकिन इस सफर ने वाटसन और बच्चों के बड़े-बड़े इम्तहान लिए।उन्हें कई बार मौत के मुंह में ढकेला।भयानक तूफानों में फंसा एटलस एक दिन दुनिया के पर्दे से ही ओझल हो गया।सब जगह तहलका मच गया।
            फिर भी तूफानों की परवाह न कर कई देशों के जहाज उनकी खोज और मदद के लिए निकल पड़े।इनमें भारतीय जहाज सन आफ इंडिया भी था।उधर वे एटलस को ढूंढ रहे थे।इधर एटलस तूफान से अपंग होकर डूबने जा रहा था। मगर मदद मौके से पहुंच गई।सबको बचा लिया गया।
            लेकिन मौत तो चूहे बिल्ली का खेल खेल रही थी।डूबते एटलस से बच्चों को सुरक्षित तो निकाल लिया गया।मगर उधर लोगों की नजर तेजी से अपनी ओर बढ़ते आइसबर्ग(बर्फ का पहाड़)पर पड़ी।भाग निकलने का मौका नहीं था।आइसबर्ग से टकराने का मतलब था सभी जहाजों का टुक़ड़े-टुकड़े होकर समुद्र में समा जाना।किसी को भी बचने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था।मगर ऊपर वाले ने फिर मेहरबानी दिखायी।हवा ने रूख बदला।इसी के साथ आइसबर्ग ने भी अपना रूख बदल दिया।सब सांस रोके देखते रहे और वह बगल से गुजर गया।यात्रा सकुशल सम्पन्न हो गई।वाटसन को गालियां देने वाले लोग उसकी प्रशंसा के गीत गाने लगे।------(क्रमशः) 
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लेखक-प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव
11मार्च,1929 को जौनपुर के खरौना गांव में जन्म।31 जुलाई2016 को लखनऊ में आकस्मिक निधन शुरुआती पढ़ाई जौनपुर में करने के बाद बनारस युनिवर्सिटी से हिन्दी साहित्य में एम0ए0।उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग में विभिन्न पदों पर सरकारी नौकरी।देश की प्रमुख स्थापित पत्र पत्रिकाओं सरस्वती,कल्पना, प्रसाद,ज्ञानोदय, साप्ताहिक हिन्दुस्तान,धर्मयुग,कहानी,नई कहानी, विशाल भारत,आदि में कहानियों,नाटकों,लेखों,तथा रेडियो नाटकों, रूपकों के अलावा प्रचुर मात्रा में बाल साहित्य का प्रकाशन।
               आकाशवाणी के इलाहाबाद केन्द्र से नियमित नाटकों एवं कहानियों का प्रसारण।बाल कहानियों,नाटकों,लेखों की पचास से अधिक पुस्तकें प्रकाशित।वतन है हिन्दोस्तां हमारा(भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत)अरुण यह मधुमय देश हमारा”“यह धरती है बलिदान की”“जिस देश में हमने जन्म लिया”“मेरा देश जागे”“अमर बलिदान”“मदारी का खेल”“मंदिर का कलश”“हम सेवक आपके”“आंखों का ताराआदि बाल साहित्य की प्रमुख पुस्तकें।इसके साथ ही शिक्षा विभाग के लिये निर्मित लगभग तीन सौ से अधिक वृत्त चित्रों का लेखन कार्य।1950 के आस पास शुरू हुआ लेखन एवम सृजन का यह सफ़र मृत्यु पर्यंत जारी रहा । 2012में नेशनल बुक ट्रस्ट,इंडिया से बाल उपन्यास मौत के चंगुल में प्रकाशित।एक बाल नाटक संग्रह नेशनल बुक ट्रस्ट से प्रकाशनाधीन ।