रविवार, 5 अगस्त 2018

आपरेशन थंडरहिट


     वरिष्ठ बाल साहित्यकार और मेरे पिता आदरणीय श्री प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव जी ने अपने अंतिम दिनों में अपना दूसरा बाल उपन्यास मौत से दोस्ती लिखा था।दुर्भाग्य से यह बाल उपन्यास पिता जी के जीवनकाल में प्रकाशित नहीं हो सका था।मुझे इस उपन्यास का शीर्षक आपरेशन थंडरहिट ज्यादा ठीक और उपयुक्त लग रहा है।इसलिए मैं पिता जी का यह उपन्यास आपरेशन थंडरहिट अपने ब्लॉग फुलबगिया पर सीरीज के रूप में प्रकाशित कर रहा।सप्ताह के हर रविवार और बृहस्पतिवार को इसका एक-एक भाग आप फुलबगिया पर पढ़ सकेंगे।
                                          


आपरेशन थंडरहिट
(एक नया अनोखा रोमांच)
                  लेखक-प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव


   कभी युवा था वाटसन

         किसी जमाने में जोश और जज्बे से भरपूर था वाटसन।लेकिन वह बहुत जिद्दी भी था।उसकी जिद्द के कारण ही अक्सर लोग उसे सनकी भी कह देते थे।उसकी ऐसी ही एक सनक ने एक दिन पूरी दुनिया में हलचल सी मचा दी थी।पूरी दुनिया में हर आदमी के दिमाग में बस एक ही सवाल था,अब आगे क्या होगा?
      क्या थी वाटसन की सनक?उसने दुनिया भर से पांच छः सौ अपंग बच्चे बटोर रखे थे।इनका वह एक स्कूल चलाता था।किसी की आंख नहीं तो कोई बहरा।किसी के हाथ नहीं तो किसी के पैर नहीं।कितना मुश्किल काम था।इसमें उसकी मदद के लिए उसी के जैसे चार-पांच सनकी,मगर जोशीले साथी भी मिल गये।इन बच्चों को वह ईश्वर की देन समझता था।इनके लिए वह बड़ा से बड़ा त्याग करने के लिए तैयार रहता।यहां तक कि उसने अपनी शादी तक नहीं की। वरना इन बच्चों का प्यार छिन जाता।
            इन बच्चों के लिए स्कूल में उसने बहुत कुछ जुटा रखा था।रंगीन और महकते फूलों से खिला बगीचा।मोर और बत्तखें।खरगोश और बिल्लियां।बत्तखें तो इतना शोख थीं कि कभी-कभी बच्चों के कमरे में घुस जाती।उनके खाने-पीने की चीजों पर चोंचें मारने लगती।बच्चों को भी इसमें बड़ा मजा आता था।
   मगर एक दिन तो वाटसन की सनक सीमा पार कर गई।जब उसने घोषणा की कि वह इन बच्चों को दुनिया की सैर कराना चाहता है।लोगों को अब उसके पागल होने में कोई संदेह नहीं रहा।जो असंभव है उसे वाटसन संभव करना चाहता है।
            मगर ऊपर वाला मेहरबान होता है तो सब कुछ संभव हो जाता है।वही तो वाटसन के साथ भी हुआ।फिर क्या था।न्यूयार्क के बड़े-बड़े धनवानों ने अपनी झोलियां खोल दीं।एक बड़ी जहाज कम्पनी के मालिक ने इन बच्चों की सुविधा वाला एक नया जहाज एटलसवाटसन के लिए प्रस्तुत कर दिया।अपने सारे टेक्नीशियन और इंजीनियर भी।कई डाक्टरों और सेविकाओं की मदद भी निःशुल्क मिल गई।बताइये, ऊपर वाला था न मेहरबान।
            लेकिन इस सफर ने वाटसन और बच्चों के बड़े-बड़े इम्तहान लिए।उन्हें कई बार मौत के मुंह में ढकेला।भयानक तूफानों में फंसा एटलस एक दिन दुनिया के पर्दे से ही ओझल हो गया।सब जगह तहलका मच गया।
            फिर भी तूफानों की परवाह न कर कई देशों के जहाज उनकी खोज और मदद के लिए निकल पड़े।इनमें भारतीय जहाज सन आफ इंडिया भी था।उधर वे एटलस को ढूंढ रहे थे।इधर एटलस तूफान से अपंग होकर डूबने जा रहा था। मगर मदद मौके से पहुंच गई।सबको बचा लिया गया।
            लेकिन मौत तो चूहे बिल्ली का खेल खेल रही थी।डूबते एटलस से बच्चों को सुरक्षित तो निकाल लिया गया।मगर उधर लोगों की नजर तेजी से अपनी ओर बढ़ते आइसबर्ग(बर्फ का पहाड़)पर पड़ी।भाग निकलने का मौका नहीं था।आइसबर्ग से टकराने का मतलब था सभी जहाजों का टुक़ड़े-टुकड़े होकर समुद्र में समा जाना।किसी को भी बचने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था।मगर ऊपर वाले ने फिर मेहरबानी दिखायी।हवा ने रूख बदला।इसी के साथ आइसबर्ग ने भी अपना रूख बदल दिया।सब सांस रोके देखते रहे और वह बगल से गुजर गया।यात्रा सकुशल सम्पन्न हो गई।वाटसन को गालियां देने वाले लोग उसकी प्रशंसा के गीत गाने लगे।------(क्रमशः) 
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लेखक-प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव
11मार्च,1929 को जौनपुर के खरौना गांव में जन्म।31 जुलाई2016 को लखनऊ में आकस्मिक निधन शुरुआती पढ़ाई जौनपुर में करने के बाद बनारस युनिवर्सिटी से हिन्दी साहित्य में एम0ए0।उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग में विभिन्न पदों पर सरकारी नौकरी।देश की प्रमुख स्थापित पत्र पत्रिकाओं सरस्वती,कल्पना, प्रसाद,ज्ञानोदय, साप्ताहिक हिन्दुस्तान,धर्मयुग,कहानी,नई कहानी, विशाल भारत,आदि में कहानियों,नाटकों,लेखों,तथा रेडियो नाटकों, रूपकों के अलावा प्रचुर मात्रा में बाल साहित्य का प्रकाशन।
               आकाशवाणी के इलाहाबाद केन्द्र से नियमित नाटकों एवं कहानियों का प्रसारण।बाल कहानियों,नाटकों,लेखों की पचास से अधिक पुस्तकें प्रकाशित।वतन है हिन्दोस्तां हमारा(भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत)अरुण यह मधुमय देश हमारा”“यह धरती है बलिदान की”“जिस देश में हमने जन्म लिया”“मेरा देश जागे”“अमर बलिदान”“मदारी का खेल”“मंदिर का कलश”“हम सेवक आपके”“आंखों का ताराआदि बाल साहित्य की प्रमुख पुस्तकें।इसके साथ ही शिक्षा विभाग के लिये निर्मित लगभग तीन सौ से अधिक वृत्त चित्रों का लेखन कार्य।1950 के आस पास शुरू हुआ लेखन एवम सृजन का यह सफ़र मृत्यु पर्यंत जारी रहा । 2012में नेशनल बुक ट्रस्ट,इंडिया से बाल उपन्यास मौत के चंगुल में प्रकाशित।एक बाल नाटक संग्रह नेशनल बुक ट्रस्ट से प्रकाशनाधीन ।




1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (07-08-2018) को "पड़ गये झूले पुराने नीम के उस पेड़ पर" (चर्चा अंक-3056) पर भी होगी।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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