मंगलवार, 19 मई 2009

जीवों की निराली दुनिया (भाग -२)

जिस तरह हम आदमियों का स्वभाव,आदतें व रहन सहन अलग-अलग होता है।
उसी तरह इस धरती पर रहने वाले विभिन्न प्रकार के जन्तुओं में भी बहुत सी
भिन्नतायें पाई जाती हैं।आज हम आपको ऐसे ही जन्तुओं में से दो की आदतों के
बारे में बता रहे हैं।
गिलहरी भागे दोनों ओर:
आपने अपने घरों के आस-पास,बगीचों में,पेड़ों की पतली-पतली
टहनियों पर उछलती-कूदती,उतरती-चढ़ती गिलहरियों को जरूर देखा होगा।लेकिन हम जिसके बारे में आपको बताने जा रहे हैं ,वो इन सब आम गिलहरियों से थोड़ा अलग हट
कर है। और इसकी सबसे खास बात तो यही है कि इसे आप अपनी जेब में भी रख सकते हैं।जी हां मैं जिसकी बात कर रहा हूं उसका नाम ही है जेबी गिलहरी।
इसकी दूसरी खासियत यह है कि यह जितनी तेजी के साथ आगे की ओर भागती है ,उतनी ही तेजी से बिना पीछे मुड़े वापिस भी लौट सकती है।

एकता की मिसाल जेलीफ़िश:
आपने अपने घरों में चीनी य गुड़ की तलाश में इधर उधर
भागती चींटियों की लंबी कतार तो जरूर देखी होगी।कितनी अच्छी लगती है ये कतार।
लेकिन यह विशेषता सिर्फ़ चींटियों में ही नहीं पाई जाती है।
समुद्री मछली जेली फ़िश भी इन्हीं चींटियों की ही तरह कतार बना कर चलती हैं।जेली फ़िश मुख्य रूप से अरब सागर में पाई जाती है। ये हजारों की संख्या में एक दूसरे के पीछे आपस में सटी हुई चलती हैं। ऐसा लगता है जैसे चमकती हुई एक लंबी सी जंजीर नीले पानी ले ऊपर तैर रही हो ।
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हेमन्त कुमार

बुधवार, 13 मई 2009

बालगीत --मेरी गुड़िया

मेरी प्यारी गुड़िया रानी,
बड़ी है सीधी बड़ी है भोली।

नहीं किसी से कभी है लड़ती,
झूठा गर्व नहीं है करती,
सबसे प्यारे बोल बोलती,
सबके मन को ये हर लेती।
मेरी प्यारी -------------।

जल्दी ही मैं ले आऊंगी,
छोटा सा एक प्यारा गुड्डा,
ब्याह रचा दूंगी दोनो का,
ले जयेगा उसको गुड्डा।

मेरी प्यारी गुड़िया रानी,
बड़ी है सीधी बड़ी है भोली।
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कवियत्री --नित्या शेफ़ाली



मंगलवार, 5 मई 2009

बालगीत - बरफ मलाई



बरफ मलाई बरफ मलाई,
ठंढी मीठी बरफ मलाई,
गरमी में सबको भाती है ,
रंग बिरंगी बरफ मलाई।

गली में टुन टुन घंटी सुनकर,
दौडे मुनिया राजू भाई,
फ़िर सबने हुडदंग मचाई,
हमको बरफ खिलाओ भाई।

घिस घिस करके काका ने फ़िर ,
सबको मीठी बरफ खिलाई,
मुनिया क्यूं रूठी काका से,
उसको खांसी आती भाई।



बरफ मलाई बरफ मलाई,
ठंढी मीठी बरफ मलाई।
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हेमंत कुमार

रविवार, 3 मई 2009

बालगीत--भालू पहुँचा मेले में


भालू ले कंधे पर थैला
चला घूमने शहर का मेला
रंग बिरंगे खेल खिलौने
चाट पकौडी ठेलम ठेला।

भालू ने भी लिए गुब्बारे
चार खिलौने सुंदर प्यारे
जब पैसों की आई बारी
भालू को दिख गए सितारे।

पड़ा सोच में भालू भरी
लाऊ कहाँ से अब मैं पैसे
दुकानदार ने उठा ली लाठी
भागा भालू छोड़ के मेला।
००००००००००००००
हेमंत कुमार