गुरुवार, 10 जनवरी 2013

चुहिया अलबेली


चुनमुन चुहिया थी अलबेली
रहती थी वो बिल में अकेली
रोज सुबह जल्दी उठ जाती
झटपट सारे काम निपटाती।

पास पेड़ पर रहता कौवा
तन का काला मन का गंदा
कांव कांव कर खाता कान
और न था उसको कोई काम।

देख देख चुनमुन को जलता
मुंह बना कर हरदम कहता
बड़ी सयानी चुहिया रानी
करती क्यूं हरदम मनमानी।

एक दिन आई जो आंधी
टपके नीचे कौवा भाई
हाय हाय कर लगे चिल्लाने
कोई न आया पास बचाने।

आई दौड़ के चुनमुन चुहिया
दिया दिलासा पोंछा घाव
ठण्ढा पानी तुरत पिलाया
और खिलाया  भाजी पाव।

आंसू भरकर बोला कौवा
मुझको माफ़ करो तुम बहना
तुम तो सच में हो अलबेली
मैं ही था मूरख नादान।
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शिखा दुबे
रेडियो,टी0वी0 की कलाकार एवं ऐंकर शिखा जी एक अच्छी कवियत्री भी हैं। यहां उनका एक रोचक बालगीत प्रकाशित करते हुये खुशी हो रही है।