रविवार, 27 सितंबर 2015

उड़न तश्तरी

उड़न तश्तरी पास में मेरे
अगर कहीं से आती
घर के सारे लोगों को मैं
दुनिया की सैर कराती।
उड़न तश्तरी पास में मेरे
अगर कहीं से आती।

सारा दिन मजदूरी करके
मां हमको खूब पढ़ाती
उसके कपड़े फ़टे भले हों
पर हमको खूब सजाती।
उड़न तश्तरी पास में मेरे
अगर कहीं से आती।


पहाड़ नदी सागर की बातें
खूब हमें ललचाती
पर मां के हाथों के गट्ठे
देख बहुत घबराती।

उड़न तश्तरी पास में मेरे
अगर कहीं से आती
घर के सारे लोगों को मैं
दुनिया की सैर कराती।
000
डा हेमन्त कुमार



3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-09-2015) को "डिजिटल इंडिया की दीवानगी मुबारक" (चर्चा अंक-2113) (चर्चा अंक-2109) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. उड़न तश्तरी पास में मेरे
    अगर कहीं से आती
    घर के सारे लोगों को मैं
    दुनिया की सैर कराती।

    सुंदर बालगीत.

    जवाब देंहटाएं