गुरुवार, 22 जून 2017

खुशियों का गाँव(बाल नाटक)


दृश्य 2
  (मंच पर पार्क का दृश्य।शाम का झुटपुटा।एक कोने में लड़का-1,लड़का-2,लड़की-1और कुछ दूसरे  बच्चे खेलते दिखाई पड़ रहे हैं।कुछ बड़े लोग एक किनारे खड़े कसरत कर रहे।पार्क के एक तरफ से काली,रामू ,दीनू,मल्लिका और सलमा आते हैं।सब खेल रहे बच्चों के पास जाकर कुछ देर उनका खेल देखते रहते हैं।फिर आगे बढ़ कर उनसे बात करते हैं।)
सलमा: सुनो सुनो—क्या तुम लोग हम सब को भी अपने साथ खिलाओगे?
लड़का-1:  नहीं नहीं कभी नहीं।
लड़की-1: नहीं नहीं कभी नहीं
        कभी नहीं,कभी नहीं।
काली: लेकिन क्यूँ?
दीनू: क्या हम तुम्हारा नुकसान करेंगे?
लड़का-1: मैंने तो ऐसा नहीं कहा।
मल्लिका: फिर हमें अपना दोस्त बना कर साथ खिलाने में क्या हर्जा है?
लड़की-1: हम तुम्हें नहीं खिला सकते बस।
लड़का-2: हम तुम्हें अपना साथी नहीं बना सकते बस।
रामू: कोई तो कारण होगा ।
लड़का-1: कारण है पर बताऊंगा नहीं।
रामू: बताना तो पड़ेगा।
मल्लिका: (कुछ सोचकर)तुम्हे क्या लगता है हमें खेलना नहीं आता?
लड़की-1: आता होगा उससे हमें क्या?
रामू: (मुस्कराकर) तुम्हें क्या हम चिता भालू शेर लग रहे?
लड़का-1: (गुस्से में)देखो ज्यादा स्मार्ट मत बनो जब बोल दिया नहीं खिलाना तो नहीं
       खिलाना।
काली: (कुछ सोच कर) क्या हम अच्छे बच्चे नहीं?
(लड़का एक गुस्से में अपने बैट को हाथ में घुमाता हुआ इन सब बच्चों  को घूरता है)
रामू: आखिर कोई तो वजह होगी भाई हमें न खिलाने की।
लड़का-1: (गुस्से में चीख कर)हाँ वजह है---बहुत बड़ी वजह है... ।
मल्लिका: तो वो वजह हमें भी तो बताओ न।
लड़का-1: बता दूँ?
काली: हाँ बता दो।
लड़का-1: (व्यंग्यात्मक मुद्रा में) बुरा तो नहीं मानोगे?
रामू: नहीं,बिलकुल नहीं।
लड़का-2: (थोडा तेज स्वर में)तो सुनो ---हम लोग रहते बिल्डिंगों में,तुम लोग झुग्गी झोपडी वाले।
        (रामू,काली,मल्लिका सब उन बच्चों को आश्चर्य से देखते हैं।और डर कर
        एक दूसरे का हाथ पकड़ लेते हैं।)
लड़की-1: तुम सब पढ़ते हो नगर निगम के सड़े से स्कूल में,और हम सब जाते है कान्वेंट स्कूल में।
       (खेलने वाले सारे बच्चे उनके चारों और घुमने लगते हैं और रामू,काली
      ,मल्लिका सब सिमटने लगते हैं)
लड़का-1: हमारे माँ-बाप के पास है पैसा ---खूब ढेर सारा...इतना सारा इतना सारा कि
       तुम सोच भी नहीं सकते,और तुम सब कंगाल हो निरा कंगाल।
लड़का-२: हम सबके पास खेलने के लिए ढेरों खिलौने,तुम्हारे पास टूटे फूटे बर्तन।
लड़की-1: हमारे कपडे देखो साफ़ साफ़ सुन्दर सुन्दर,तुम्हारे कपडे गंदे चिथड़े।
       (रामू अपने साथियों के साथ और सिकुड़ता जाता है)
लड़का-1: हमारे माँ बाप मालिक हैं,तुम्हारेमाँ बाप हमारे चाकर।
लड़का-2: हमारे पास है ढेरों खुशियाँ,तुम्हारे पास सिर्फ भूख गरीबी ।
लड़का-1: (चीख कर) इसीलिए हम कह रहे हम तुम्हें नहीं खिलाएंगे अपने साथ ---तुम सब चले जाओ  चले जाओ यहाँ से—जाओ जाकर खेलो अपनी गन्दी बस्तियों में ---।
      (दोनों लड़के और लड़की-1 ताली बजाते हुए रामू दीना सलमा के चारों और
      घूमने लगते हैं)
तीनों बच्चे: (गाते हैं)
            हम सब बच्चे बिल्डिंग वाले
            तुम सब झोपड़ पट्टी वाले
            हमारे कपडे अच्छे अच्छे
            तुम सब पहने गंदे वाले
            हमारे पास तो ढेरों खुशियाँ
            तुम्हारे पास दुखों के नाले।
      (उनके गीत का स्वर और तालियाँ तेज होती जाती हैं।सलमा,रामू,कालू सिकुड़ते
      जाते हैं अचानक काली उनके घेरे से बाहर निकलता है अपने दोनों हाथो से
      कानों को बंद करके दर्शकों की तरफ मुंह करके बहुत तेजी से चीखता है)
काली: बस बस --- बंद करो अपनी ये बकवास-----।
      (काली वहीँ अपना माथा पकड़ कर बैठ जाता है।रामू,सलमा सब उसके पास भाग कर आते हैं।बच्चे उसे घेरकर खड़े होते हैं ...सब स्थिर हो जाते हैं।दृश्य फेड आउट होता है।)
                  (क्रमशः)
डा०हेमन्त कुमार   

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (25-06-2016) को "हिन्दी के ठेकेदारों की हिन्दी" (चर्चा अंक-2649) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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