शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

गांव की पुकार


गांव की पुकार

चल बापू
अब लौट चलें हम
फिर से अपने गांव।

बचपन की यदों की गठरी
खुलने को बेताब
सोंधी माटी दरवज्जे की
क्यूँ खोती अपनी ताब
महुआ टपक रहा सोने सा
पर खो गई उसकी आब।
चल बापू
अब लौट चलें हम
फिर से अपने गांव।


गिल्ली डंडा सीसो पाती
छुटपन के सब संगी साथी
बूढ़ी गैया व्याकुल नजरें
रास्ता रही निहार
खेतों में पसरा सन्नाटा
जैसे चढ़ा बुखार।
चल बापू
अब लौट चलें हम
फिर से अपने गांव।

नीम तले की चौरा माई
बरगद बाबा से अब तो बस
करती ये मनुहार
लौटा लो सारे बच्चों को
जो बसे समुंदर पार।
चल बापू
अब लौट चलें हम
फिर से अपने गांव।


गांव छोड़ते बखत तो तूने
आजी से बोला ही होगा
जल्दी ही आऊंगा वापस
पाती भी भेजा होगा
आजी की पथराई आंखें
तुझको रहीं पुकार
चल बापू
अब लौट चलें हम
फिर से अपने गांव।
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डॉ हेमन्त कुमार


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