(मेरा यह बालगीत अप्रैल 2004 में नेशनल बुक ट्रस्ट की पत्रिका "पाठक मंच बुलेटिन"में प्रकाशित हुआ था)
गर्मी आई
जाड़ा गया लो गर्मी आई,
बरफ मलाई संग ले आई।
दिन छोटे से बड़े हुए अब,
रातें हो गईं छोटी,
बंदर जी ने सिल बट्टे पर,
ठंढाई है घोटी।
भालू भी क्यों रहता
पीछे,
उसने ली अंगड़ाई,
झट से पहुंचा नदी किनारे,
डुबकी एक लगाई।
उसने दौड़ लगाई
गधे ने अपने पैर पटक कर
ढेरों धूल उडाई।
बरफ मलाई संग ले आई।
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डा0हेमन्त कुमार
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