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बुधवार, 15 अप्रैल 2020

गर्मी आई


(मेरा यह बालगीत अप्रैल 2004 में नेशनल बुक ट्रस्ट की पत्रिका "पाठक मंच बुलेटिन"में प्रकाशित हुआ था)
गर्मी आई


जाड़ा गया लो गर्मी आई,
बरफ मलाई संग ले आई।

दिन छोटे से बड़े हुए अब,
रातें  हो   गईं   छोटी,
बंदर जी ने सिल बट्टे पर,
ठंढाई      है    घोटी।

भालू  भी  क्यों  रहता पीछे,
उसने     ली     अंगड़ाई,
झट  से पहुंचा  नदी  किनारे,
डुबकी    एक      लगाई।

 घोड़े को जब कुछ ना सूझा
उसने  दौड़  लगाई
गधे ने अपने पैर पटक कर
ढेरों  धूल  उडाई।

 जाड़ा  गया  लो  गर्मी आई,
बरफ   मलाई  संग ले आई।
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डा0हेमन्त कुमार



गुरुवार, 4 जनवरी 2018

जाड़ा

जाड़ा ताल ठोंक जब बोला,
सूरज का सिंहासन डोला,
कुहरे ने जब पांव पसारा,
रास्ता भूला चांद बिचारा।

छिपे सितारे ओढ़ रजाई,
आसमान नहिं दिखता भाई,
पेड़ और पौधे सिकुड़े सहमे,
झील में किसने बरफ़ जमाई।

पर्वत धरती सोये ऐसे,
किसी ने उनको भंग पिलाई,
सुबह हुयी सब जागें कैसे,
मुर्गे ने तब बांग लगाई।

जाड़ा ताल ठोंक जब बोला,
सूरज का सिंहासन डोल॥
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डा0हेमन्त कुमार