सोमवार, 10 मार्च 2014

पिंकी के बिल्ले ---।


  पिंकी के घर दो थे बिल्ले
दोनों बड़े चिबिल्ले।
धमा चौकड़ी सबसे करते
राजू दीपू टिल्ले।


पिंकी पढ़ने जैसे बैठे
बगल में बैठें बिल्ले।
गीत शुरू करती ज्यों पिंकी
नाचें दोनों बिल्ले।

इक दिन पिंकी गयी बाजार
साथ थे उसके बिल्ले।
आगे आगे पिंकी चलती
पीछे पीछे बिल्ले।

पिंकी ने थी टिक्की खाई
रबड़ी दोंनों बिल्ले।
पिंकी रास्ता भूल गयी जब
घर ले आये बिल्ले।
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डा0हेमन्त कुमार







बुधवार, 12 फ़रवरी 2014

घमंडी का सिर नीचा

तेज-तेज   जो   चली  हवा,
लगी   सोचने   वह   ऐसा।

मुझमें   बहुत   बड़ी  ताकत,
मुझमें   है   इतनी  हिम्मत।
चाहूं  जड़  से  पेड़  उखाडूं,
चाहूं जिसको  दूर उडा दूं।

तभी  मिला  उसे छोटा पत्थर,
बोला  हवा  से  ऐसे हंसकर।
आओ मुझ  पर जोर लगाओ,
मैं  न  हिलूंगा  मुझे उड़ाओ।

बहुत  हवा  ने  जोर  लगाया,
मगर न वह पत्थर हिल पाया।
और  हवा  ने  तब ये सीखा,
सदा  घमंडी  का  सिर नीचा
0000
डा0अरविन्द दुबे
पेशे से बच्चों के चिकित्सक डा0 अरविन्द दुबे के अन्दर बच्चों को साधने (हैण्डिल करने),उनके मनोभावों को समझने,और रोते शिशुओं को भी हंसा देने की अद्भुत क्षमता है। उनकी इसी क्षमता ने उन्हें लेखक और कवि भी बना दिया। डा0 अरविन्द कविता ,कहानी के साथ हिन्दी में प्रचुर मात्रा में विज्ञान साहित्य भी लिख रहे हैं।



गुरुवार, 16 जनवरी 2014

रंग बिरंगे कपड़े

एक गांव के बाहर खेत में एक सियार रहता था।सियार के साथ उसके दो बच्चे भी रहते थे।एक बार खेत का मालिक किसान खेत जोतने के बाद अपने कुछ कपड़े वहीं भूल गया।किसान के कपड़े सियार को मिल गये।सियार ने कपड़े पहन कर देखा।किसान के कपड़े सियार के शरीर पर ठीक आ गये थे।सियार बहुत खुश हुआ। वह खुशी में जोर जोर से हुआं हुआं कर चिल्लाने लगा।सियार को कपड़े पहने देख कर उसके बच्चे भी कपड़े पहनने की जिद करने लगे।उसका छोटा बच्चा मचलता हुआ बोला,
हुंआ हुंआ हुंआ हुंआ हुंआ हुंआ हुंआ हुंआ।
मेरे बापू अच्छे बापू
कपड़े सुन्दर पहने बापू
दिखते कितने प्यारे बापू।
हम दोनों को ऐसे कपड़े
ला के दे दो प्यारे बापू।
           छोटे को देख उसके बड़े बच्चे ने भी जिद करनी शुरू कर दी।बच्चों की जिद देखकर सियार ने उन्हें बहुत समझाया कि कपड़े आदमी लोग ही पहनते हैं।पर सियार के बच्चे नहीं माने। वे और भी जिद करने लगे कि हमें किसान के बच्चों के कपड़े लाकर दो।
     उनकी जिद से परेशान होकर एक रात सियार कपड़े लाने के लिए गांव की तरफ चल पड़ा।वह बहुत धीरे से गांव में घुसा।वह धीरे-धीरे चलता हुआ किसान के घर में घुस गया।आंगन में उसे किसान के बच्चों के कपड़े दिखायी पड़े।वह चुपके से कपड़े उठा कर खेतों की तरफ भाग गया।
       
किसान के बच्चों के कपड़े पहन कर सियार के बच्चे खुश हो गये।वे खुशी में नाचने और गाने लगे। दोनों बच्चों ने घूम-घूम कर हर सियार को अपने कपड़े दिखलाए।हर जानवर को अपने कपड़े दिखलाए।सभी ने उनके कपड़ों की तारीफ की।
धीरे-धीरे सियार और उसके बच्चों के कपड़े गन्दे होने लगे।कुछ दिनों बाद उनके कपड़े एकदम गन्दे हो गये।फिर भी वे उनको पहने रहते थे।क्योंकि उनके पास पहनने के लिए दूसरे कपड़े तो थे नहीं।न ही वे कपड़ों को साफ करना जानते थे।गन्दे कपड़े पहनने से सियार और बच्चों के शरीर में खुजली होने लगी।जब उनकी खुजली बहुत बढ़ गयी तो वे भागे-भागे डाक्टर भालू के पास गये।सियार ने भालू से अपनी व बच्चों की समस्या बताई।वह अपना शरीर बुरी तरह खुजलाता हुआ बोला,
 भालू भाई भालू भाई,
बात सुनो तुम भालू भाई।
किसान के कपड़े हमने पहने,
रंग बिरंगे कपड़े पहने,
शरीर में खुजली होती है,
हरदम खुजली होती है
जल्दी से कोई उपाय बताओ,
हमको इस आफत से बचाओ।
सियार की बात सुनकर डाक्टर भालू खूब हंसा और उसे समझाता हुआ बोला,
                      सियार राम सियार राम,

मूरख तुम हो सियार राम।
किसान के तुमने कपड़े पहने,
रंग बिरंगे कपड़े पहने।
पर कपड़े कितने गन्दे हैं,
आफत के ये पुलिन्दे हैं,
खुजली तुमको होगी ही,
जब कपड़े तुम्हारे गन्दे हैं।
       डाक्टर भालू की बात सुनकर सियार रोने लगा।वह उससे बोला, ‘‘भालू भाई आप इस खुजली से बचने के लिए कोई दवा तो हमें दीजिए।
भालू ने कहा, ‘‘देखो भाई सियार राम, इस खुजली की तो बस एक ही दवा है।
‘‘कौन सी दवा भालू भाई ?”सियार अपना शरीर खुजलाता हुआ बोला।
‘‘तुम इन कपड़ों को उतार कर साफ कपड़े पहनों। और अपने कपड़ों को राज साफ किया करो। साफ कपड़े पहनोगे तो खुजली कभी नहीं होगी।भालू ने उसे समझाया।
‘‘पर भालू भाई अबकी बार मैं कपड़े लेने गया तो किसान मुझे मार ही डालेगा।सियार उदास होकर बोला।
‘‘अरे भइया किसने कहा है कि तुम कपड़े पहनो।कपड़े तो आदमी पहनते हैं।क्योंकि वे उसे साफ करना जानते हैं और सिलना भी।तुम इन कपड़ों को उतार कर फेंक दो और नदी में नहा लो। तुम्हारी खुजली ठीक हो जाएगी।भालू ने उसे फिर से समझाया।
सियार बहुत ध्यान से भालू की बातें सुन रहा था।उसकी समझ में भालू की यह बात आ गयी। उसने अपने और बच्चों के शरीर से गन्दे कपड़े निकाल फेंके।फिर तुरन्त जाकर नदी में खूब नहाया।उसके बच्चों ने भी शरीर की खूब सफाई की।उनकी खुजली ठीक हो गयी।वे फिर आराम से उसी खेत में रहने लगे।

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डा0हेमन्तकुमार

मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

नए साल की नई कहानी

पर्वत -सागर -माटी - पानी
नए साल की  रचो- कहानी ।

खेत हमे दें अन्न ढ़ेर सा
जल से भरें हो पोखर- ताल ।
बाग- बगीचे हरे भरें हों ,
फूलों की  सुरभित जयमाल ।
कोयल गाये गीत ख़ुशी के ,
लगे प्रकृति की  रानी ।
नए साल की  नई कहानी ।

 
नदियां दें  सन्देश सृजन  का
चलते रहना आठों याम
अमृत बरसे बदल बनकर
इंद्रधनुष सी होवे शाम।
हर दिन कथा -कहानी लेकर
आये प्यारी नानी ।
नये साल की सुनो कहानी।

सारा जग अपने घर जैसा
बैर भाव का रहे ना  नाम
 
मिल-  जुल कर दुनिया को बदलें
कठिन नहीं है कोई काम ।
आशा -नव उल्लास बिखेरो
बन जाये हर डगर सुहानी
नए साल की बनो कहानी । ।
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कौशल
  पाण्डेय 
सहायक निदेशक 
आकाशवाणी
गोरखपुर -253001
mob -09389462070


शनिवार, 14 दिसंबर 2013

चंदा मामा

चंदा मामा चंदा मामा
तुम पर संकट आएगा
मैंने टी वी में देखा था
कोई बस्ती वहां बसाएगा।

क्या होगा फ़िर हम बच्चों का
खिलौने कौन दिलाएगा
चर्खा कात रही दादी को
गाने कौन सुनाएगा।


आओ बच्चों मिल जुल कर हम
ऐसी कोई जुगत लगाएं
कहीं छुपा दें उनको सब मिल
दुनिया उनको खोज न पाए।
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यशस्विनी पाण्डेय
हिन्दी शिक्षण और शोध कार्य से जुड़ी यशस्विनी हिन्दी की उभरती हुयी कवियत्री हैं।बड़ों के साथ ही इन्होंने बच्चों के लिये भी गीत लिखे हैं।फ़ुलबगियाब्लाग पर यह इनका पहला बालगीत है।सम्पर्क-- yashaswinipathak@gmail.com





सोमवार, 28 अक्टूबर 2013

एक गिलहरी-----।

बड़े सबेरे मेरे आंगन
एक गिलहरी आती
किट किट कुट कुट
किट किट कुट कुट
अपने दांत बजाती।

उसी समय सारी गौरैया
चूं चूं करती आती
नहीं दिया क्यूं दाना पानी
फ़ुदक फ़ुदक सब गातीं।

झुंड कई चिड़ियों का भी
अपने संग वो लातीं
ढकले में पानी पड़ते ही
सब मिल खूब नहाती।

चावल के दाने मिलते ही
बड़े प्रेम से खातीं
शाम को फ़िर आयेंगे हम सब
कह कर के उड़ जातीं।
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डा0हेमन्त कुमार

शनिवार, 17 अगस्त 2013

बंदर जी ने खींची फ़ोटो

बंदर जी ने एक कैमरा
महंगा खूब खरीदा।
लगे खींचने फ़ोटो सबकी
क्या भालू क्या चीता।

उड़ते उड़ते समाचार फ़िर
सिंहराज तक पहुंचा।
उन्होंने फ़ोटो खिंचवाने का
संदेशा फ़िर भेजा।


लिये कैमरा हीरो बन के
बंदर गुफ़ा में पहुंचा।
नए नए ऐंगिल से उसने
शेर की फ़ोटो खींचा।

फ़िल्म धुली जब कलर लैब में
फ़ोटो एक न आई।
सिंहराज ने जोर जोर से
कानों को उसके खींचा।
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डा0हेमन्त कुमार