रविवार, 3 मई 2009

बालगीत--भालू पहुँचा मेले में


भालू ले कंधे पर थैला
चला घूमने शहर का मेला
रंग बिरंगे खेल खिलौने
चाट पकौडी ठेलम ठेला।

भालू ने भी लिए गुब्बारे
चार खिलौने सुंदर प्यारे
जब पैसों की आई बारी
भालू को दिख गए सितारे।

पड़ा सोच में भालू भरी
लाऊ कहाँ से अब मैं पैसे
दुकानदार ने उठा ली लाठी
भागा भालू छोड़ के मेला।
००००००००००००००
हेमंत कुमार

5 टिप्‍पणियां:

  1. बच्चों के साथ बड़े भी झूम उठे......

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  2. भालू ले कन्धे पे थैला,

    चला घूमने को मेला।

    बन्दर मामा साथ हो लिया,

    बन करके उसका चेला।

    चाट पकौड़ी जम कर खाई,

    और खाया जम कर खेला।

    फिर दोनों आपस मे बोले,

    अच्छा लगा बहुत मेला।।

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  3. आनंद आ गया हेमंत जी,
    चंपक और पराग पढ़ने के दिन याद आ गए।..लेकिन देखता हूं कि अब तो बच्‍चे का
    र्टून चैनल और आईपीएल से चिपके रह‍ते हैं।

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  4. बहुत ही मज़ेदार कविता है!

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