काली कोट में लाल गुलाब,
चाचा तुमको करते याद,
बाल दिवस हम संग मनायें,
बस इतनी सुन लो फ़रियाद।
बचपन क्यों अब रूठा रहता,
हर बच्चा क्यों रोता रहता,
आओ चाचा नेहरू आओ,
सारे जहां को तुम बतलाओ।
खेल खिलौने साथ छीन कर,
क्यूं सब हमें रुलाते हैं,
भारी बस्तों और किताबों,
में हमको उलझाते हैं।
क्या हमने कुछ गलत किया है,
जिसकी हमको सजा मिली है,
चाचा तुमको करते याद,
बाल दिवस हम संग मनायें,
बस इतनी सुन लो फ़रियाद।
बचपन क्यों अब रूठा रहता,
हर बच्चा क्यों रोता रहता,
आओ चाचा नेहरू आओ,
सारे जहां को तुम बतलाओ।
खेल खिलौने साथ छीन कर,
क्यूं सब हमें रुलाते हैं,
भारी बस्तों और किताबों,
में हमको उलझाते हैं।
क्या हमने कुछ गलत किया है,
जिसकी हमको सजा मिली है,
पूनम
आपकी रचना में भाषा का ऐसा रूप मिलता है कि वह हृदयगम्य हो गई है।
जवाब देंहटाएंहँस लें चाहे कितना भी, पर
जवाब देंहटाएंकमी आपकी खलती है !
मन के कोमल कोने में जो
बनकर दर्द सिसकती है !!
बढ़िया रचना.
जवाब देंहटाएंबाल दिवस की बधाई.
सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंइसकी चर्चा यहाँ भी है-
http://anand.pankajit.com/2009/11/blog-post_15.html
बचपन क्यों अब रूठा रहता,
जवाब देंहटाएंहर बच्चा क्यों रोता रहता,
Sundar bal rachna ke liye badhai.
Aaj bachhon ka bachpan lagta hai jaise unse bahut door ho chala chai, unhe samay se pahle hi bada samjhane ki jo kavayad chali hai, yah sochniya hai.
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंaao chacha phir wahi guaab kee khushboo lauta jao
जवाब देंहटाएंबाल दिवस पर उत्तम रचना
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