सिंहराज को चढ़ा बुखार
टेम्प्रेचर था एक सौ चार
दर्द हुआ फ़िर पेट में भारी
समझ न पाये वे बीमारी।
धीरे धीरे सिर चकराया
सिर चकराते मन घबराया
वैद्य राज हाथी फ़िर आये
जड़ी बूटियां ढेरों लाये।
रात कौन सी दावत छानी
कहां पिया फ़िर तुमने पानी
सच सच तुम बतलाना भाई
सुनी बात तब डांट लगाई।
गंदा खाना --- गंदा पानी
क्यों करते ऐसी नादानी
अगर चाहते सुख से जीना
अच्छा खाना --- अच्छा पीना।
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कवि –कौशल पाण्डेय
हिन्दी अधिकारी
आकाशवाणी,शिवाजीनगर
पुणे—411005
singhraja thodee parheji honi chahiye n
जवाब देंहटाएंयह रचना अपनी एक अलग विषिष्ट पहचान बनाने में सक्षम है।
जवाब देंहटाएंकौशल पाण्डेय जी रचना पसंद आई. आपका आभार!!
जवाब देंहटाएंकविता तो बहुत बढ़िया है!
जवाब देंहटाएंमगर देख लेना कहीम स्वाइन फ्लू तो नही हो गया है।
गंदा खाना --- गंदा पानी
जवाब देंहटाएंक्यों करते ऐसी नादानी
अगर चाहते सुख से जीना
अच्छा खाना --- अच्छा पीना।
ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी! बहुत ही सुंदर और बढ़िया लगा ये कविता!