गुरुवार, 17 जून 2010

काले मेघा आओ ना



काले मेघा आओ ना

गर्मी दूर भगाओ ना।



गगरी खाली गांव पियासा

नदिया से ना कोई आशा।

सूख गये सब ताल तलैया

कैसे गायें छम्मक छैयां।

धरती को सरसाओ ना

काले मेघा आओ ना॥



सुबह सुबह ही सूरज दादा

गुस्सा जाते इतना ज्यादा।

कष्टों की ना कोई गिनती

सुनते नहीं हमारी विनती।

कुछ उनको समझाओ ना

काले मेघा आओ ना॥



हमने तुमको भेजी चिट्ठी

खतम करो अब अपनी छुट्टी।

जल्दी से जल्दी तुम आना

आने की तारीख बताना।

मस्ती के दिन लाओ ना

काले मेघा आओ ना॥

000

कवि-कौशल पांडेय

हिन्दी अधिकारी

आकाशवाणी,पुणे(महाराष्ट्र)













22 टिप्‍पणियां:

  1. समसामयिक और एक सन्दर संदेश देती रचना।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  2. कौशल पांडेय जी की बढ़िया रचना पढ़वाने का आभार.

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  3. मैं तो इसे गुनगुना रही हूँ..कित्ता प्यारा गीत है..बधाई.

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  5. मनभावन होने के कारण
    "सरस पायस" पर हुई "सरस चर्चा" में
    इन्हें देख मन गाने लगता!
    शीर्षक के अंतर्गत
    इस पोस्ट की चर्चा की गई है!

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  6. सामयिक पुकार है ,अब तो बारिश होने भी लगी है ।

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  7. काले मेघा आ गए ....
    बहुत सुन्दर है आपकी कविता!
    _________________

    New post : fathers day card and cow boy

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  8. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। धन्यवाद।

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  9. बहुत ही ख़ूबसूरत और मनभावक बालगीत! उम्दा पोस्ट!

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  10. अरसे बाद कौशल पांडे जी की रचना पढ़ी। आपका आभार।

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  11. बहुत ही प्यारी कविता है सर.


    सादर

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  12. वाह ...बेहतरीन शब्‍द रचना ।

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  13. बहुत प्यारी कविता है, सर।

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