सोमवार, 3 जनवरी 2011

जाड़ा

ठंढा ठंढा आया जाड़ा
कोट रजाई लाया जाड़ा
मुनिया गोलू धूप में खेलें
दादी जी को भाया काढ़ा।

आलू गोभी गरम पराठा
नरम साग बजरी का आटा
मटर की घुंघरी और गरम गुड़
कोल्हू का रस लाया जाड़ा।

रात हुई जब ठंढक बढ़ गई
बाबा ने तपनी सुलगाया
घेर के सारे बच्चे बोले
कहो कहानी भागे जाड़ा।

ठंढा ठंढा आया जाड़ा
कोट रजाई लाया जाड़ा।
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(सभी फ़ोटो गूगल से साभार) 

7 टिप्‍पणियां:

  1. जाड़े का आनंद दिलाती हुई सुंदर अभिव्यक्ति-
    शुभकामनायें -

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  2. बच्चों की सुन्दर कविता.
    और क्या कहें:-
    जाड़ा जाड़ा जाड़ा जाड़ा.
    जाड़े ने कर दिया कबाड़ा.

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  3. बहुत सुन्दर कविता| धन्यवाद|

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