रविवार, 17 अक्तूबर 2010

रिक्शा

ट्रिन ट्रिन करके
घण्टी बजाता
तीन पहियों से
चलता जाता
मैं हूं रिक्शा
मैं हूं रिक्शा ।

अम्मा बाबू
दादा दादी
मुन्ना मुन्नी
बड़की छुटकी
सबको मैं हूं
सैर कराता
मैं हूं रिक्शा
मैं हूं रिक्शा ।

पतली गलियां
चौड़ी सड़कें
सब पर मैं तो
चलता जाता
जहां न पहुंचे
मोटर गाड़ी
वहां भी मैं
सबको पहुंचाता ।

मैं हूं रिक्शा
मैं हूं रिक्शा ।
******
हेमन्त कुमार

15 टिप्‍पणियां:

  1. रिक्शा पर कितनी सुंदर कविता... बहुत अच्छी ...

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  2. हेमंत जी आपका प्रयास देखकर अच्‍छा लगा। शुभकामनाएं।

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  3. अले वाह, अब तो मेरा मन रिक्शे पर घूमने का कर रहा है...
    ______________________
    'पाखी की दुनिया' में पाखी की इक और ड्राइंग...

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  4. बहुत ही सुन्दर कविता है!
    --
    चित्र बहुत ही बढिया हैं!
    --
    आपकी पोस्ट को बाल चर्चा मंच में लिया गया है!
    http://mayankkhatima.blogspot.com/2010/10/24.html

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  5. आप को सपरिवार दीपावली मंगलमय एवं शुभ हो!
    मैं आपके -शारीरिक स्वास्थ्य तथा खुशहाली की कामना करता हूँ

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  6. बहुत प्यारी कविता है ...

    आप मेरे ब्लॉग पर पधारे उसके लिए धन्यवाद ...

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  7. बहुत ही सुन्दर कविता.बधाई.नव वर्ष की शुभकामनाएँ.

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