आज से मैं फ़ुलबगिया के पाठकों के लिये एक बाल उपन्यास “मौत के चंगुल में” का प्रकाशन शुरू कर रहा हूं। इसे मैं सप्ताह में एक बार प्रकाशित करूंगा।इस उपन्यास के लेखक मेरे पिता जी श्री प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव हैं।
मौत के चंगुल में
(बाल उपन्यास)
सनकी वाटसन
आज से कुछ साल पहले!एक दिन सबेरे जैसे ही लोगों ने रेडियो खोला एक भयानक समाचार सुनाई पड़ा--विशाल जहाज एटलस जापान के बंदरगाह याकोहामा और उत्तरी अमरीका के सानफ्रांसिसको के बीच प्रशांत महासागर की गोद से अचानक गायब हो गया है।भयानक समुद्री तूफान के कारण इस जहाज की खोज करना संभव नहीं है।।एटलस जहाज पर दुनिया की सैर के लिए निकले हुए कई देशों के करीब सात सौ अपंग बच्चे तथा उनकी देखभाल के लिए तीस पुरुष और पैंतीस स्त्रियां कुल सात सौ पैंसठ यात्री हैं।दल के नेता हैं प्रो0 वाटसन।
इस समाचार ने दुनिया में तहलका मचा दिया। बच्चों के माता पिता अपने सिर थामकर बैठ गए।वे इस यात्रा पर अपने बच्चों को भेजने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थे।मगर प्रो0 वाटसन का उन पर ऐसा प्रभाव था कि वे मना भी नहीं कर सके।जो लोग इसके खिलाफ थे।उन्होंने कहना शुरु कर दिया---“हम लोग पहले ही कहते थे कि वाटसन की सनक किसी दिन इन बच्चों की जान ले बैठेगी।आखिर वही हुआ न!और चंदा दो उसके स्कूल को!वह मास्टर नहीं हत्यारा है हत्यारा!!”
वाटसन की सनक कैसी थी?क्या वह सचमुच हत्यारा था?आइए इसकी जानकारी हम लोग कुछ और पहले से प्राप्त करें।हर आदमी के भीतर कुछ न कुछ सनक होती है।अपनी सनक के ही पीछे कितने लोग अपने मित्रों में मशहूर हो जाते हैं।ऐसे ही आदमियों में वाटसन की भी गिनती की जा सकती है। वाटसन की सनक कोई मामूली सनक न थी।वह उसके पीछे पागल रहता था।खाना पीना तक भूल कर अपनी सनक पूरी करने के लिए वह दर दर ठोकरें खाता घूमता रहता था।लोग कभी कभी उसकी हंसी उड़ाते।पर वह उस पर ध्यान न देता।
वाटसन को हमेशा बच्चों की तलाश रहती थी। ऐसे वैसे बच्चों की नहीं।अंधे,बहरे, गूंगे, लंगड़े,लूले और बदसूरत बच्चों की।वह उन बच्चों को तलाशता फिरता था,जिन्हें उनके माता पिता अपने सिर का भार समझते थे।जिन बच्चों के सामने परोसी थाली में से कौर उठाकर मुंह तक पहुंचाने के लिए हाथ न थे।जो दूसरों के सहारे के बिना अपनी जगह से इंच भर खिसक भी नहीं सकते थे।उसने ऐसे बच्चों का एक स्कूल खोल रखा था।पता नहीं कहां से उसने अपने जैसे ही सनकी मिजाज के तीन चार दोस्त भी ढूंढ़ लिए थे।जो स्कूल चलाने में उसकी मदद करते थे।
ऐसे अपंग बच्चों का स्कूल चलाना,उनके रहने खाने का प्रबंध करना,उनके मनोरंजन के साधन जुटाना और साथ ही साथ उनके स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना,मामूली काम न था।लेकिन सनकी वाटसन एक प्रकार का सनकी था।इस काम के लिए उसके पास गजब की हिम्मत थी।उसके धैर्य को कभी किसी ने डगमगाते नहीं देखा।जाड़े की ठिठुरती रात हो या आग की तरह तपते गर्मी के दिन,वह इन बच्चों के लिए दौड़ता ही रहता।उसका कमरा एक छोटा मोटा अस्पताल नजर आता था। रात में दो दो -- तीन तीन बार उठ कर वह इन बच्चों के रहने के कमरों के चक्कर लगाता।किसी भी बच्चे की मामूली कराह सुनकर वह बेचैन हो जाता। जब तक उसे मीठी नींद में सुला नहीं देता,वह अपने बिस्तर पर न लौटता।बच्चे उसे अपने माता पिता से बढ़कर मानते थे।उन्हें कभी यह अनुभव ही न होने पाता कि वे अपने घर से बाहर हैं।वाटसन और उसके दोस्त उन बच्चों को पिता का प्यार और मां का दुलार देते।(क्रमशः)
( इस बाल उपन्यास के लेखक मेरे पिता जी श्री प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव जी हिन्दी साहित्य के लिये नये नहीं हैं।आप पिछले छः दशकों से साहित्य सृजन में संलग्न हैं।आपने कहानियों,नाटकों,लेखों,रेडियो नाटकों,रूपकों के अलावा प्रचुर मात्रा में बाल साहित्य की रचना की है। आपकी कहनियों,नाटकों,लेखों की अब तक पचास से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।इसके साथ ही शिक्षा विभाग के लिये निर्मित लगभग तीन सौ वृत्त चित्रों का लेखन कार्य भी किया है।1950 के आस पास शुरू हुआ आपका लेखन एवम सृजन का यह सफ़र आज 82 वर्ष की उम्र में भी जारी है।)
हेमन्त कुमार द्वारा प्रकाशित।
ये आपने बहुत अच्छी शृंखला शुरु की है। इस तरह के साहित्य से ब्लॉगजगत का परिचय होना चाहिए।
जवाब देंहटाएंनमस्कार,
जवाब देंहटाएंउम्र से कोई फ़र्क नहीं होता है, जोश होना चाहिए वो है, ब्यासी साल की उम्र में भी, जय हो आपके पिताजी की।
बहुत रोचक बाल उपन्यास----अगली कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी।
जवाब देंहटाएंहेमंत जी आप और पिता जी के बच्चों के लिए समर्पण पढ़ दिल को सुकून मिला बहुत खुशी हुयी आप का योगदान सराहनीय है बहुत सुन्दर ब्लॉग है-
जवाब देंहटाएंआइये अपना समर्थन और सुझाव हमें भी दें ताकि हम भी आप के इस इच्छा को और अधिक बढ़ावा दे सकें
रोचक बाल उपन्यास -छवियाँ प्यारी
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
बाल झरोखा
http://surenrashuklabhramar5satyam.blogspot.com