अनोखी सीख
इसी जंगल में एक सियार रहता था। उसे बन्दर और भालू की यह दोस्ती
फूटी आंख नहीं सुहाती थी। वह हमेशा मौके की तलाश में रहता था कि वह कब बन्दर और भालू
में फूट डालकर उनमें आपस में लड़ाई करवाए।
एक दिन बन्दर अमरूद के एक पेड़ पर बैठा अमरूद कुतर रहा था। अचानक
उसने सोचा कि इस जंगल में फलों के इतने अधिक पेड़ हैं। जंगल के सारे बन्दर, भालू और पक्षी तो इन पेड़ों के फल खाते हैं, लेकिन दूसरे जानवरों को फल नहीं मिल पाते।
अगर जंगल के बीच में भालू की गुफा में फलों की एक दूकान खोल ली जाय तो बहुत चलेगी।
बस यह योजना दिमाग में आते ही वह दौड़ पड़ा भालू की गुफा की तरफ। जब बन्दर भालू की
गुफा में पहुंचा तो भालू आराम कर रहा था। बन्दर ने भालू से कहा--‘‘भालू भाई, इस जंगल में इतने ढेर सारे फलों के पेड़ हैं, लेकिन उनके फल केवल हम लोग ही खा पाते हैं।
जंगल के बाकी सारे जानवरों ने तो उनका स्वाद भी नहीं चखा है। ‘‘
‘‘हां, सो तो है ही। लेकिन ...।” भालू उसकी बात को समझने की कोशिश करता हुआ बोला।
‘‘अगर किसी तरकीब से ये फल सारे जानवरों को मिल जाएं तो ?” बन्दर ने आंखें नचाते हुए पूछा।
‘‘मिल जाएं तो इससे अच्छी बात क्या होगी ? लेकिन इससे हमको क्या मिलेगा ? तुम अपनी पूरी बात तो समझाओ ?” भालू ने कहा।
‘‘अरे फायदा तो बहुत होगा” कहकर बन्दर ने अपनी फलों की दूकान खोलने की
सारी योजना विस्तार से भालू को बताई। भालू जब बन्दर की पूरी योजना सुन चुका तब उसने
कहा--‘‘हां, बन्दर भाई, तुम्हारी योजना बहुत ही बढि़या है। इस दूकान से जंगल के दूसरे
जानवरों को तो फायदा होगा ही, थोड़ा बहुत फायदा हम लोगों को भी हो जाएगा।
और हां, उसी दूकान पर मैं थोड़ा
शहद भी रख लूंगा। आखिर जंगल के जानवरों को मीठे शहद का भी तो स्वाद चखना चाहिए। ‘‘
‘‘तो भालू भाई कब से यह दूकान खोली जाए ?” बन्दर ने उत्सुकता से पूछा-‘‘अरे भाई, शुभ काम में देर किस बात की ? बस, आज गुफा के सामने जमीन
की सफाई बगैरह कर दी जाए। कल चलकर खरगोश पेण्टर से दूकान के नाम का एक बड़ा-सा बोर्ड
बनवा लिया जाय। परसों से हमारी दूकान चालू हो जाएगी।” भालू ने उत्साह से जवाब दिया।
इसके बाद बन्दर और भालू उत्साह के साथ सफाई अभियान में जुट गये।
शाम तक दोनों ने मिलकर भालू की गुफा और उसके सामने के चबूतरे को एकदम साफ कर दिया।
उस काम से फुरसत पाकर दोनों खरगोश पेण्टर के घर पहुंचे। बन्दर ने अपनी सारी योजना खरगोश
को बताई और उससे एक अच्छा-सा बोर्ड तैयार करने को कहा। खरगोश उन दोनों की योजना सुनकर
बहुत खुश हुआ और बोला--‘‘बन्दर भाई, तुम दोनों की
योजना बहुत अच्छी है। मैं कल तक तुम्हारा बोर्ड तैयार कर दूंगा। पर यह तो बताओ कि उस
बोर्ड पर लिखा क्या जाएगा ?”
‘‘अरे खरगोश भाई, उसमें लिखना क्या है ? हम लोग कोई बहुत भारी दूकान तो खोलेंगे नहीं कि उसके लिए कोई
लम्बा-चैड़ा बोर्ड बनेगा। एक छोटा-सा बोर्ड बना दो और उस पर साफ-साफ लिख दो--‘‘ताजे फल एवं शहद की दूकान बस ...।” भालू ने सलाह दी।
‘‘ठीक है ! फिर मैं कल शाम तक बोर्ड तैयार कर दूंगा।” खरगोश ने बन्दर और भालू से कहा। इसके बाद
बन्दर और भालू अपनी गुफा की तरफ चले गये।
अगले दिन सुबह से शाम तक में बन्दर और भालू ने मिलकर दूकान के
लिए काफी फल एवं शहद इकट्ठा कर लिया। फल और शहद देने के लिए वहां कागज के लिफाफे और
शीशियां तो थी नहीं, इसलिए बन्दर ढेर सारे बरगद के पत्ते तोड़ लाया। शाम को दोनों खरगोश के घर गये और
वहां से दूकान का बोर्ड भी उठा लाए। दूकान का बोर्ड लाकर रात में ही दोनों ने उसे गुफा
के सामने लगा दिया, ताकि अगले दिन सुबह उठकर उन्हें केवल फल और शहद गुफा के अन्दर से लाकर बाहर रखना
पड़े।
दूसरे दिन बन्दर और भालू बहुत सबेरे ही उठ गये और दोनों नाश्ता
वगैरह करने के बाद दूकान पर फल और शहद सजाने में जुट गये। जल्दी-जल्दी उन्होंने गुफा
के बाहर पेड़ के नीचे हर तरह के फल और शहद का घड़ा लाकर रख दिया। अब उधर से जाने वाला
हर जानवर बोर्ड पढ़ता ओर उनके पास जाता तो कुछ-न-कुछ फल जरूर खरीदता। शाम होते-होते
उनकी दूकान खुलने की खबर पूरे जंगल में फैल गई। जो भी जानवर उधर जाता वह उनके इस कार्य
की प्रशंसा करता था।
फलों की दूकान खुलने की सूचना सियार को भी मिली। वह भी उनकी
दूकान देखने आया और शहद तथा फल ले गया। ऊपर से तो सियार ने उनकी दूकान की खूब तारीफ
की, परन्तु मन-ही-मन वह
जल उठा। वह वैसे ही बन्दर और भालू की दोस्ती से काफी ईष्र्या करता था तथा हमेशा उनका
नुकसान करने के चक्कर में रहता था। जब उसने उनकी फलों की दूकान देखी तो उसकी ईष्र्या
और बढ़ गयी। अ बवह उनके बीच फूट डालने के लिए किसी मौके की तलाश में रहने लगा।
एक दिन सबेरे सियार घूमता हुआ उनकी दूकान के सामने से जा रहा
था उसने देखा, भालू दूकान
पर अकेला बैठा था। वह तुरन्त दूकान पर पहुंचा और बड़े प्रेम से उसने भालू को नमस्कार
किया, ‘‘राम-राम, भालू भाई।”
‘‘राम-राम, सियार भाई, ! आओ, बहुत दिनों बाद दिखे हो ?”भालू ने आश्चर्य चकित
होते हुए उसके अभिवादन का उत्तर दिया। वह सोच रहा था कि आज सियार इतने प्रेम से कैसे
बोल रहा है ? जल्दी ही उसको
इसका कारण भी समझ में आ गया जब सियार ने भालू के सामने बन्दर की शिकायत शुरू कर दी।
सियार बोला, ‘‘भालू भाई, बस इधर से जा रहा था तो सोचा तुम्हारी दूकान
भी देखता चलूं। अरे हां, बन्दर राम कहां हैं ?”
‘‘बन्दर फल तोड़ने गया है। ‘‘ भालू ने उत्तर दिया।
‘‘अच्छा, अच्छा।” सियार ने कहा। फिर इधर-उधर देखकर भालू से बोला, ‘‘भालू भाई, एक बात हैं, बन्दर के साथ
दूकान खोलकर तुमने अच्छा नहीं किया। यहां तो तुम दूकान पर बैठकर नौकरों की तरह सामान
बेचते हो और उधर बन्दर दिन भर फल तोड़ने के नाम पर घूमता-घामता रहता है। और तो और भालू
भाई, जब तुम दूकान पर नहीं
रहते हो तो बन्दर दूकान में से शहद चुरा कर खाता है।”
‘‘तुम्हें ये सब बातें कैसे पता लगीं सियार भाई ? ” भालू ने पूछा। ‘‘अरे भालू भाई, शहद चुराकर खाते हुए तो मैंने उसे अपनी आंखों से देखा है। मैंने
तुम्हें बता दिया अब तुम जैसा उचित समझो करो। ”सियार ने कहा। भालू कुछ और पूछने जा रहा था कि सियार बोला--‘‘अच्छा भालू भाई ! अब मैं चलता हूं। लेकिन
बन्दर को यह जानकारी न हो जाए कि मैंने यह सब बातें तुम्हें बतायी हैं।” सियार इतना कहकर चला गया और भालू यह सोचता
हुआ बैठा रहा कि कहीं बन्दर उसे वास्तव में बेवकूफ तो नहीं बना रहा है ?
सियार भालू को बहकाने के बाद घूमता-घामता बगीचे में बन्दर के
पास पहंुचा। वहां बन्दर फल तोड़ रहा था। बन्दर के पास जाकर सियार ने उसके सामने भालू
की काफी शिकायत की और उसने वही बातें बन्दर से भी कही जो अभी-अभी भालू से कहकर आ रहा
था। बन्दर को भी उसकी बातें सुनकर पहले तो भालू के ऊपर थोड़ा शक हुआ, लेकिन बन्दर भी कम समझदार नहीं था। उसे लगा
कि कहीं ऐसा तो नहीं कि सियार भालू भाई के और मेरे बीच लड़ाई करवाना चाहता हो।
शाम को जब बन्दर और भालू गुफा के सामने मिले तो दोनों ही एक-दूसरे
को शक की नजरों से देख रहे थे। दोनों ही सोच रहे थे कि बात किस तरह से शुरू की जाए
ताकि दूसरे को खराब न लगे। भालू उम्र में बन्दर से थोड़ा बड़ा था। अन्त में वही बन्दर
से बोला, ‘‘ बन्दर भाई, आज यहां सियार आया था।”
‘‘क्या ? यहां सियार आया था? ” बन्दर आश्चर्य से बोला। उसे लगा कि उसका अन्दाज
शायद सही है।
‘‘हां बन्दर भाई, सियार तुम्हारे बारे में कुछ बातें मुझे बता रहा था।” भालू बोला।
‘‘उसने क्या-क्या बातें कही थी भालू भाई ? ” बन्दर जल्दी से बोला। तब भालू ने धीरे-धीरे उसे वे सारी बातें बतायी जो सियार ने
बन्दर के विषय में उससे कही थी। भालू की बातें सुनकर बन्दर हो-हो करके हंसने लगा। हंसी
रूकने पर बन्दर ने उससे कहा -- ‘‘भालू भाई, सियार तो मेरे
पास भी गया था और उसने मुझसे भी यही बातें तुम्हारे बारे में बतायी हैं।”
‘‘क्या ? सियार ने तुमसे भी यही बातें कही है। तब तो मुझे ऐसा लगता है कि हम दोनों में जरूर
लड़ाई लगवाने के चक्कर में है।” भालू भी आश्चर्यचकित होता हुआ बोला।
‘‘ठीक है, भालू भाई सियार को कोई अच्छा-सा सबक देना होगा। तभी उसका दिमाग ठिकाने लगेगा।” बन्दर बोला।
उसके बाद बन्दर और भालू काफी देर तक विचार करते रहे। अन्त में
बन्दर के दिमाग में एक योजना आई और वह खुशी से उछल पड़ा। उसने तुरन्त धीरे-धीरे भालू
को अपनी सारी योजना समझा दी। भालू भी उसकी योजना सुनकर खुश हो गया। दूसरे दिन ही बन्दर
और भालू ने अपनी-अपनी दूकानें अलग कर लीं। बन्दर ने अपनी फल की दूकान अलग कर ली और
भालू ने अपनी गुफा में शहद की दूकान लगा ली। यह देखकर जंगल वालों को बड़ा आश्चर्य हुआ।
उसी दिन से बन्दर और भालू ने आपस में बोलना भी छोड़ दिया और सब जानवरों से एक-दूसरे
की बुराई करने लगे। जब सियार को इस बात का पता चला तो वह बहुत खुश हुआ। वह तो यही चाहता
था।
एक दिन सुबह वह घूमता हुआ बन्दर की दूकान पर गया। बन्दर ने उसे
देखते ही नमस्कार किया और उसे पास बैठाकर उससे बोला, ‘‘सियार भाई, तुम ठीक ही कहते थे। भालू जैसा बेईमान और धूर्त आदमी मुझे कहीं नहीं मिला। मैंने
अब अपनी दूकान अलग कर ली है।”
‘‘हां बन्दर भाई, यह काम तुमने बहुत अच्छा किया। अब तुम आराम से अपनी दूकान के
मालिक रहोगे। अब यह दूकान तुम्हारी है। अगर मेरे लायक कोई सेवा हो तो बताओ।” सियार मुस्कराता हुआ बोला।
‘‘
हां सियार भाई एक काम है। पर उसे तुम कर सकोगे ? ” बन्दर ने धीरे से कहा।
‘‘हां-हां क्यों नहीं ? बस तुम हुक्म करो। ”सियार उत्सुकता से बोला। बन्दर उसके थोड़ा और पास खिसक आया और
धीरे-धीरे उससे बोला, ‘‘ सियार भाई मैं सोच रहा था कि कोई ऐसा इंतजाम करूं कि भालू को शहद बचने के लिए न
मिल पाए। भालू रोज नदी के किनारे वाले बरगद के पेड़ में लगे सबसे बड़े वाले शहद के
छत्ते से शहद निकालकर ले आता है। कल भी दोपहर में वह उसी पेड़ पर से शहद लेने जाएगा।
उसके शहद निकालने से पहले ही अगर तुम वहां जाकर एक बांस से उस छत्ते को नीचे गिरा दो
तो शहद को चींिटयां खा जाएगी और भालू को शहद नहीं मिल पाएगा।” बन्दर की बात सुनकर सियार बहुत खुश हुआ। उसने
कहा, ‘‘अरे बन्दर भाई, यह कौन सा बड़ा काम है ? मैं कल ही इसे कर दूंगा। बस, तुम चलकर मुझे वह छत्ता दिखला दो।” इसके बाद बन्दर ने जाकर सियार को नदी के किनारे
वाले बरगद के पेड़ पर लगा हुआ छत्ता दिखला दिया। फिर दोनों अपने घर वापस लौट गये।
दूसरे दिन सुबह नाश्ता वगैरह करके सियार एक बड़ा-सा बांस लेकर
खुशी से झूमता हुआ नदी के किनारे बरगद के पेड़ के पास पहुंच गया। वह आराम से पेड़ के
नीचे खड़ा होकर बांस से छत्ते को हिलाने लगा। जैसे ही उसने छत्ते को थोड़ा -सा हिलाया, छत्ते में से सैकड़ों मधुमक्खियां निकलकर
उसे काटने लगीं। जब मधुमक्खियों के तेज डंक उसके शरीर में घुसे तब सियार को अपनी गलती
का अहसास हुआ। वह बांस छोड़कर बड़ी जोर से चीखता हुआ एक ओर भागा। इतने में एक पेड़
के पीछे से भालू और बन्दर हंसते हुए निकल आए। इतनी ही देर में मधुमक्खियों ने अपने
डंग गड़ाकर सियार को अधमरा कर दिया था। वह तेजी से चिल्लाता हुआ अपनी मांद की तरफ भाग
गया। बन्दर और भालू भी हंसते हुए अपनी गुफा में वापस चले गये।
अगले दिन से बन्दर और भालू ने अपनी दुकानें फिर एक में मिला
लीं और सियार उसके बाद फिर कभी उनकी दूकान की तरफ नहीं गया।
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डा0हेमन्त कुमार
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बृहस्पतिवार (23-06-2016) को "संवत्सर गणना" (चर्चा अंक-2382) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
vah bahut achchhi bal kahani....
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " यूरोप का नया संकट यूरोपियन संघ... " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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